"महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 124 श्लोक 52-62" के अवतरणों में अंतर

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== एक सौ चौबीसवाँ अध्‍याय: उद्योगपर्व (सेनोद्योग पर्व)==
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==चतुर्विंशत्‍यधिकशततम (124) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)==
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: उद्योग पर्व: चतुर्विंशत्‍यधिकशततम अध्याय: श्लोक  52-62 का हिन्दी अनुवाद</div>
  
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: उद्योगपर्व: एक सौ चौबीसवाँ अध्याय: श्लोक 45- 62 का हिन्दी अनुवाद</div>
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‘भरतश्रेष्ठ ! यह नरसन्हार करने से तुम्हें क्या लाभ होगा ? तुम अपने पक्ष में किसी ऐसे पुरुष को ढूंढ निकालो, जो उस अर्जुन पर विजय पा सके, जिसके जीते जाने पर तुम्हारे पक्ष की विजय मान ली जाये। ‘जिन्होने खानडववन में गन्धर्वों, यक्षों, असुरों और नागों सहित सम्पूर्ण देवताओं को जीत लिया था, उन अर्जुन के साथ कौन मनुष्य युद्ध कर सकेगा ? ‘इसके सिवा विराटनगर में जो बहुत से महारथी योद्धाओं के साथ एक अर्जुन के युद्ध की अत्यंत अद्भुत घटना सुनी जाती है, वह एक ही युद्ध के भावी परिणाम को बताने के लिए प्रयाप्त है ‘जिन्होंने युद्ध में साक्षात् महादेव शिव को अपने पराक्रम से संतुष्ट किया है, अपनी मर्यादा से कभी च्युत न होनेवाले उन अजेय, दुर्धर्ष एवं विजयशील बलशाली वीर अर्जुन को तुम युद्ध में जीतने की आशा रखते हो, यह बड़े आश्चर्य की बात है ! ‘फिर मैं जिसका सारथी बनकर साथ रहूँ और वह अर्जुन प्रतिपक्षी होकर युद्ध के लिए आए, उस समय साक्षात् इंद्र ही क्यों न हों, कौन अर्जुन के साथ युद्ध करना चाहेगा ? ‘जो समरभूमि में अर्जुन को जीत सकता है, वह मानो अपनी दोनों भुजाओं पर पृथ्वी को उठा सकता है, कुपित होने पर इस समस्त प्रजा को दग्ध कर सकता है और देवताओं को स्वर्ग से नीचे गिरा सकता है। ‘दुर्योधन ! अपने इन पुत्रों, भाइयों, कुटुंबीजनों और सगे-संबंधियों की और तो देखो । ये श्रेष्ठ भरतवंशी तुम्हारे कारण नष्ट न हो जाएँ। ‘नरेश्वर ! कौरववंश बचा रहे, इस कुल का पराभव न हो और तुम भी अपनी कीर्ति का नाश करके कुलघाती न कहलाओ ‘महारथी पांडव तुम्हीं को युवराज के पद पर स्थापित करेंगे और तुम्हारे पिता राजा धृतराष्ट्र को महाराज के पद पर बनाए रखेंगे ‘तात ! अपने घर में आने को उद्यत हुई राजलक्ष्मी का अपमान न करो । कुंती के पुत्रों को आधा राज्य देकर स्वयं विशाल संपती का उपभोग करो। पांडवों के साथ संधि करके और अपने हितैषी सुहृदयों की बात मानकर मित्रों के साथ प्रसन्नतापूर्वक रहते हुए तुम दीर्घकाल तक कल्याण भागी बने रहोगे’।
 
 
‘भारत ! तुम दु:शासन, दुर्विषह, कर्ण और शकुनि- इन सब पर अपने ऐश्वर्य का भार रखकर उन्नति की इच्छा रखते हो ? ‘भरतनंदन ! ये तुम्हें ज्ञान, धर्म और अर्थ की प्राप्ति
 
कराने में समर्थ नहीं हैं और पांडवों के सामने पराक्रम प्रकट करने में भी ये असमर्थ ही हैं। ‘तुम्हारे सहित ये सब राजा लोग भी युद्ध में कुपित हुए भीमसेन के मुख की ओर आँख उठाकर देख ही नहीं सकते। ‘तात ! तुम्हारे निकट जो यह समस्त राजाओं की सेना एकत्र हुई है, यह तथा भीष्म, द्रोण, कर्ण, कृपाचार्य, सोमदत्तपुत्र भूरिश्रवा, अश्वत्थामा और जयद्रथ- ये सभी मिलकर भी अर्जुन का सामना करने में समर्थ नहीं हैं। ‘सम्पूर्ण देवता और असुर भी युद्ध में अर्जुन को जीत नहीं सकते । वे समस्त मनुष्यों और गन्धर्वों के द्वारा भी अजेय हैं, अत: तुम युद्ध का विचार मत करो। ‘राजाओं की इन सम्पूर्ण सेनाओं में किसी ऐसे पुरुष पर दृष्टिपात तो करो, जो युद्ध में अर्जुन का सामना करके कुशलपूर्वक अपने घर लौट सके ? ‘भरतश्रेष्ठ ! यह नरसन्हार करने से तुम्हें क्या लाभ होगा ? तुम अपने पक्ष में किसी ऐसे पुरुष को ढूंढ निकालो, जो उस अर्जुन पर विजय पा सके, जिसके जीते जाने पर तुम्हारे पक्ष की विजय मान ली जाये। ‘जिन्होने खानडववन में गन्धर्वों, यक्षों, असुरों और नागों सहित सम्पूर्ण देवताओं को जीत लिया था, उन अर्जुन के साथ कौन मनुष्य युद्ध कर सकेगा ? ‘इसके सिवा विराटनगर में जो बहुत से महारथी योद्धाओं के साथ एक अर्जुन के युद्ध की अत्यंत अद्भुत घटना सुनी जाती है, वह एक ही युद्ध के भावी परिणाम को बताने के लिए प्रयाप्त है ‘जिन्होंने युद्ध में साक्षात् महादेव शिव को अपने पराक्रम से संतुष्ट किया है, अपनी मर्यादा से कभी च्युत न होनेवाले उन अजेय, दुर्धर्ष एवं विजयशील बलशाली वीर अर्जुन को तुम युद्ध में जीतने की आशा रखते हो, यह बड़े आश्चर्य की बात है ! ‘फिर मैं जिसका सारथी बनकर साथ रहूँ और वह अर्जुन प्रतिपक्षी होकर युद्ध के लिए आए, उस समय साक्षात् इंद्र ही क्यों न हों, कौन अर्जुन के साथ युद्ध करना चाहेगा ? ‘जो समरभूमि में अर्जुन को जीत सकता है, वह मानो अपनी दोनों भुजाओं पर पृथ्वी को उठा सकता है, कुपित होने पर इस समस्त प्रजा को दग्ध कर सकता है और देवताओं को स्वर्ग से नीचे गिरा सकता है। ‘दुर्योधन ! अपने इन पुत्रों, भाइयों, कुटुंबीजनों और सगे-संबंधियों की और तो देखो । ये श्रेष्ठ भरतवंशी तुम्हारे कारण नष्ट न हो जाएँ। ‘नरेश्वर ! कौरववंश बचा रहे, इस कुल का पराभव न हो और तुम भी अपनी कीर्ति का नाश करके कुलघाती न कहलाओ ‘महारथी पांडव तुम्हीं को युवराज के पद पर स्थापित करेंगे और तुम्हारे पिता राजा धृतराष्ट्र को महाराज के पद पर बनाए रखेंगे ‘तात ! अपने घर में आने को उद्यत हुई राजलक्ष्मी का अपमान न करो । कुंती के पुत्रों को आधा राज्य देकर स्वयं विशाल संपती का उपभोग करो। पांडवों के साथ संधि करके और अपने हितैषी सुहृदयों की बात मानकर मित्रों के साथ प्रसन्नतापूर्वक रहते हुए तुम दीर्घकाल तक कल्याण भागी बने रहोगे’।
 
 
   
 
   
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योग पर्व के अंतर्गत भगवद्यान पर्व में भग्वद्वाक्यसंबंधी एक सौ चौबीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योग पर्व के अंतर्गत भगवद्यान पर्व में भग्वद्वाक्यसंबंधी एक सौ चौबीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div>
 
                                                                                            
 
                                                                                            
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत उद्योगपर्व अध्याय 124 श्लोक 26-44|अगला=महाभारत उद्योगपर्व अध्याय 125 श्लोक 1-27}}
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{महाभारत}}
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१५:०६, २४ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

चतुर्विंशत्‍यधिकशततम (124) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: चतुर्विंशत्‍यधिकशततम अध्याय: श्लोक 52-62 का हिन्दी अनुवाद

‘भरतश्रेष्ठ ! यह नरसन्हार करने से तुम्हें क्या लाभ होगा ? तुम अपने पक्ष में किसी ऐसे पुरुष को ढूंढ निकालो, जो उस अर्जुन पर विजय पा सके, जिसके जीते जाने पर तुम्हारे पक्ष की विजय मान ली जाये। ‘जिन्होने खानडववन में गन्धर्वों, यक्षों, असुरों और नागों सहित सम्पूर्ण देवताओं को जीत लिया था, उन अर्जुन के साथ कौन मनुष्य युद्ध कर सकेगा ? ‘इसके सिवा विराटनगर में जो बहुत से महारथी योद्धाओं के साथ एक अर्जुन के युद्ध की अत्यंत अद्भुत घटना सुनी जाती है, वह एक ही युद्ध के भावी परिणाम को बताने के लिए प्रयाप्त है ‘जिन्होंने युद्ध में साक्षात् महादेव शिव को अपने पराक्रम से संतुष्ट किया है, अपनी मर्यादा से कभी च्युत न होनेवाले उन अजेय, दुर्धर्ष एवं विजयशील बलशाली वीर अर्जुन को तुम युद्ध में जीतने की आशा रखते हो, यह बड़े आश्चर्य की बात है ! ‘फिर मैं जिसका सारथी बनकर साथ रहूँ और वह अर्जुन प्रतिपक्षी होकर युद्ध के लिए आए, उस समय साक्षात् इंद्र ही क्यों न हों, कौन अर्जुन के साथ युद्ध करना चाहेगा ? ‘जो समरभूमि में अर्जुन को जीत सकता है, वह मानो अपनी दोनों भुजाओं पर पृथ्वी को उठा सकता है, कुपित होने पर इस समस्त प्रजा को दग्ध कर सकता है और देवताओं को स्वर्ग से नीचे गिरा सकता है। ‘दुर्योधन ! अपने इन पुत्रों, भाइयों, कुटुंबीजनों और सगे-संबंधियों की और तो देखो । ये श्रेष्ठ भरतवंशी तुम्हारे कारण नष्ट न हो जाएँ। ‘नरेश्वर ! कौरववंश बचा रहे, इस कुल का पराभव न हो और तुम भी अपनी कीर्ति का नाश करके कुलघाती न कहलाओ ‘महारथी पांडव तुम्हीं को युवराज के पद पर स्थापित करेंगे और तुम्हारे पिता राजा धृतराष्ट्र को महाराज के पद पर बनाए रखेंगे ‘तात ! अपने घर में आने को उद्यत हुई राजलक्ष्मी का अपमान न करो । कुंती के पुत्रों को आधा राज्य देकर स्वयं विशाल संपती का उपभोग करो। पांडवों के साथ संधि करके और अपने हितैषी सुहृदयों की बात मानकर मित्रों के साथ प्रसन्नतापूर्वक रहते हुए तुम दीर्घकाल तक कल्याण भागी बने रहोगे’।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योग पर्व के अंतर्गत भगवद्यान पर्व में भग्वद्वाक्यसंबंधी एक सौ चौबीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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