"महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 143 श्लोक 24-44" के अवतरणों में अंतर

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== एक सौ तेतालीसवाँ अध्‍याय: उद्योगपर्व (सेनोद्योग पर्व)==
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==त्रिचत्‍वारिंशदधिकशततम (143) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)==
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत उद्योग पर्व: त्रिचत्‍वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 24-44 का हिन्दी अनुवाद </div>
  
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत उद्योगपर्व: एक सौ तेतालीसवाँ अध्याय: श्लोक 34- 51 का हिन्दी अनुवाद </div>
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सूर्योदय और सूर्यास्‍त दोनों संध्‍याओंके समय एक गीदड़ी महान भय की सूचना देती हुई भयंकर आवाज में रोती है । यह भी कौरवोंकी पराजय का लक्षण है। मधुसूदन ! एक पाँख, एक आँख और एक पैर वाले पक्षी अत्‍यन्‍त भयंकर शब्‍द करते है । यह भी कौरवपक्ष की पराजय का ही लक्षण है। संध्‍याकालमें काली ग्रीवा और लाल पैरवाले भयानक पक्षी सामने आ जाते हैं, वह भी पराजय का ही चिह्र है। मधुसूदन ! दुर्योधन पहले ब्राह्राणोंसे द्वेष करता है;फिर गुरूजनोंसे तथा अपने प्रति भक्ति रखनेवाले भृत्‍योंसे भी द्रोह करने लगता है, यह उसकी पराजय का ही लक्षण है। श्रीकृष्‍ण ! पूर्व दिशा लाल,दिशा शस्‍त्रों के समान रंगवाली (काली), पश्चिम दिशा मिटटी के कच्‍चे बर्तनोंकी भाँति मटमैली तथा उत्‍तर दिशा शंख के समान श्‍वेत दिखायी देती है । इस प्रकार ये दिशाओं के पृथक-पृथक वर्ण बताये गये हैं। माधव !दुर्योधन को इन उत्‍पातों का दर्शन तो होता ही है । उसके लिये सारी दिशाएँ भी प्रज्‍वलित-सी होकर महान भयकी सूचना दे रही हैं। अच्‍युत ! मैंने स्‍वप्‍नके अन्तिम भाग में युधिष्ठिरको एक हजार खंभों वाले महल पर भाइयों सहित चढ़ते देखा हैं। उन सबके सिरपर सफेद पगड़ी और अंगोंमे श्‍वेत वस्‍त्र शोभित दिखायी दिये हैं । मैंने उन सबके आसनों को भी श्‍वेत वर्ण का ही देखा है। जनार्दन ! श्रीकृष्‍ण ! मैंने स्‍वप्‍न के अन्‍त में आपकी इस पृथ्‍वी को भी रक्‍त से मलिन और आंतसे लिपटी हुई देखा है। ‘मैंने स्‍वप्‍न मे देखा, अमित तेजस्‍वी युधिष्ठिर सफेद हड्डियों के ढेर पर बैठे हुए हैं और सोने के पात्र में रक्‍खी हुई घृतमिश्रित खीर को बड़ी प्रसन्‍नता के साथ खा रहे हैं।
  
‘मैंने यह भी देखा कि युधिष्ठिर इस पृथ्‍वी को अपना ग्रास बनाये जा रहे हैं; अत: यह निश्चित है कि आपकी दी हुई वसुन्‍धरा का वे ही उपभोग करेंगे। ‘भयंकर कर्म करने वाले नरश्रेष्‍ठ भीमसेन भी हाथ मे गदा लिये ऊँचे पर्वत पर आरूढ़ हो इस पृथ्‍वी को ग्रसते हुएसे स्‍वप्‍न में दिखायी दिये हैं। अत: यह स्‍पष्‍टरूप से जान पड़ता है कि वे इस महायुद्धमें हम सब लोगों का संहार कर डालेंगे । हृषीकेश ! मुझे यह भी विदित है कि जहाँ धर्म है उसी पक्ष की विजय होती है। ‘श्रीकृष्‍ण ! इसी प्रकार गाण्‍डीवधारी धनंजय भी आपके साथ श्‍वेत गजराजपर आरूढ़ हो अपनी परम कान्तिसे प्रकाशित होते हुए मुझे स्‍वप्‍न में दृष्टिगोचर हुए है।अत: श्रीकृष्‍ण ! आप सब लोग इस युद्ध में दुर्योधन आदि समस्‍त राजाओं का वध कर डालेंगे, इसमें मुझे संशय नहीं है। नकुल, सहदेव तथा महारथी सात्‍यकि- ये तीन नरश्रेष्‍ठ मुझे स्‍वप्‍न में श्‍वेत भुजबन्‍द, श्‍वेत कण्‍ठहार, श्‍वेत वस्‍त्र और श्‍वेत मालाओं से विभूषित हो उत्‍तम नरयान (पालकी) पर चढ़े दिखायी दिये हैं । ये तीनों ही श्‍वेत छत्र और श्‍वेत वस्‍त्रों से सुशोभित थे। जनार्दन ! दुर्योधन की सेनाओं में से मुझे तीन ही व्‍यक्ति स्‍वप्‍न में श्‍वेत पगड़ी से सुशोभित दिखायी दिये हैं । केशव ! आप उनके नाम मुझसे जान लें । वे हैं– अश्रत्‍थामा, कृपाचार्य और यादव कृतवर्मा । माधव ! अन्‍य सब नरेश मुझे लाल पगड़ी धारण किये दिखायी दिये है। महाबाहु जनार्दन ! मैंने स्‍वप्‍न में देखा, भीष्‍म और द्रोणाचार्य दोनों महारथी मेरे तथा दुर्योधन के साथ ऊँट जुते हुए रथपर आरूढ़ हो दक्षिण की ओर जा रहे थे । विभो ! इसका फल यह होगा कि हमलोग थोड़े ही दिनों में यमलोक पहुँच जायेंगे। “मैं” अन्‍यान्‍य नरेश तथा यह सारा क्षत्रिय समाज सब के सब गाण्‍डीव की अग्नि में प्रवेश कर जायेंगे, इसमे संशय नही है। श्रीकृष्‍ण बोले-कर्ण! निश्‍चय ही अब इस पृथ्‍वी का विनाशकाल उपस्थित हो गया है । इसीलिये मेरी बात तुम्‍हारे हृदय तक नही पहूंचती है। तात ! जब समस्‍त प्राणियों का विनाश निकट आ जाता है, तब अन्‍याय भी न्‍याय के समान प्रतीत होकर ह्रदय से निकल नही पाता है।कर्ण बोला– महाबाहु श्रीकृष्‍ण ! वीर क्षत्रियों का विनाश करने वाले इस महायुद्धसे पार होकर यदि हम जीवित बच गये तो पुन: आपका दर्शन करेंगे। अथवा श्रीकृष्‍ण ! अब हमलोग स्‍वर्गमें ही मिलेंगे, यह निश्चितहै । वहाँ आजकी ही भाँति पुन: आपसे हमारी भेंट होगी। संजय कहते हैं- ऐसा कहकर कर्ण भगवान श्रीकृष्‍ण का प्रगाढ़ आलिंगन करके उनसे विदा ले रथ के पिछले भाग से उतर गया। तदनन्‍तर अपने सुवर्णभूषित रथपर आरूढ़ हो राधा-नन्‍दन कर्ण दीनचित्‍त होकर हमलोगों के साथ लौट आया।
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‘मैंने यह भी देखा कि युधिष्ठिर इस पृथ्‍वी को अपना ग्रास बनाये जा रहे हैं; अत: यह निश्चित है कि आपकी दी हुई वसुन्‍धरा का वे ही उपभोग करेंगे। ‘भयंकर कर्म करने वाले नरश्रेष्‍ठ भीमसेन भी हाथ मे गदा लिये ऊँचे पर्वत पर आरूढ़ हो इस पृथ्‍वी को ग्रसते हुएसे स्‍वप्‍न में दिखायी दिये हैं। अत: यह स्‍पष्‍टरूप से जान पड़ता है कि वे इस महायुद्धमें हम सब लोगों का संहार कर डालेंगे । हृषीकेश ! मुझे यह भी विदित है कि जहाँ धर्म है उसी पक्ष की विजय होती है। ‘श्रीकृष्‍ण ! इसी प्रकार गाण्‍डीवधारी धनंजय भी आपके साथ श्‍वेत गजराजपर आरूढ़ हो अपनी परम कान्तिसे प्रकाशित होते हुए मुझे स्‍वप्‍न में दृष्टिगोचर हुए है।अत: श्रीकृष्‍ण ! आप सब लोग इस युद्ध में दुर्योधन आदि समस्‍त राजाओं का वध कर डालेंगे, इसमें मुझे संशय नहीं है। नकुल, सहदेव तथा महारथी सात्‍यकि- ये तीन नरश्रेष्‍ठ मुझे स्‍वप्‍न में श्‍वेत भुजबन्‍द, श्‍वेत कण्‍ठहार, श्‍वेत वस्‍त्र और श्‍वेत मालाओं से विभूषित हो उत्‍तम नरयान (पालकी) पर चढ़े दिखायी दिये हैं । ये तीनों ही श्‍वेत छत्र और श्‍वेत वस्‍त्रों से सुशोभित थे। जनार्दन ! दुर्योधन की सेनाओं में से मुझे तीन ही व्‍यक्ति स्‍वप्‍न में श्‍वेत पगड़ी से सुशोभित दिखायी दिये हैं । केशव ! आप उनके नाम मुझसे जान लें । वे हैं– अश्रत्‍थामा, कृपाचार्य और यादव कृतवर्मा । माधव ! अन्‍य सब नरेश मुझे लाल पगड़ी धारण किये दिखायी दिये है। महाबाहु जनार्दन ! मैंने स्‍वप्‍न में देखा, भीष्‍म और द्रोणाचार्य दोनों महारथी मेरे तथा दुर्योधन के साथ ऊँट जुते हुए रथपर आरूढ़ हो दक्षिण की ओर जा रहे थे । विभो ! इसका फल यह होगा कि हमलोग थोड़े ही दिनों में यमलोक पहुँच जायेंगे।
  
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के एक सौ तेतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div>
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{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 143 श्लोक 1-23|अगला=महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 143 श्लोक 45-51}}
 
 
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत उद्योगपर्व अध्याय 143 श्लोक 1-33|अगला=महाभारत उद्योगपर्व अध्याय 144 श्लोक 1-31}}
 
  
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

०७:१८, १६ जुलाई २०१५ का अवतरण

त्रिचत्‍वारिंशदधिकशततम (143) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

महाभारत उद्योग पर्व: त्रिचत्‍वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 24-44 का हिन्दी अनुवाद

सूर्योदय और सूर्यास्‍त दोनों संध्‍याओंके समय एक गीदड़ी महान भय की सूचना देती हुई भयंकर आवाज में रोती है । यह भी कौरवोंकी पराजय का लक्षण है। मधुसूदन ! एक पाँख, एक आँख और एक पैर वाले पक्षी अत्‍यन्‍त भयंकर शब्‍द करते है । यह भी कौरवपक्ष की पराजय का ही लक्षण है। संध्‍याकालमें काली ग्रीवा और लाल पैरवाले भयानक पक्षी सामने आ जाते हैं, वह भी पराजय का ही चिह्र है। मधुसूदन ! दुर्योधन पहले ब्राह्राणोंसे द्वेष करता है;फिर गुरूजनोंसे तथा अपने प्रति भक्ति रखनेवाले भृत्‍योंसे भी द्रोह करने लगता है, यह उसकी पराजय का ही लक्षण है। श्रीकृष्‍ण ! पूर्व दिशा लाल,दिशा शस्‍त्रों के समान रंगवाली (काली), पश्चिम दिशा मिटटी के कच्‍चे बर्तनोंकी भाँति मटमैली तथा उत्‍तर दिशा शंख के समान श्‍वेत दिखायी देती है । इस प्रकार ये दिशाओं के पृथक-पृथक वर्ण बताये गये हैं। माधव !दुर्योधन को इन उत्‍पातों का दर्शन तो होता ही है । उसके लिये सारी दिशाएँ भी प्रज्‍वलित-सी होकर महान भयकी सूचना दे रही हैं। अच्‍युत ! मैंने स्‍वप्‍नके अन्तिम भाग में युधिष्ठिरको एक हजार खंभों वाले महल पर भाइयों सहित चढ़ते देखा हैं। उन सबके सिरपर सफेद पगड़ी और अंगोंमे श्‍वेत वस्‍त्र शोभित दिखायी दिये हैं । मैंने उन सबके आसनों को भी श्‍वेत वर्ण का ही देखा है। जनार्दन ! श्रीकृष्‍ण ! मैंने स्‍वप्‍न के अन्‍त में आपकी इस पृथ्‍वी को भी रक्‍त से मलिन और आंतसे लिपटी हुई देखा है। ‘मैंने स्‍वप्‍न मे देखा, अमित तेजस्‍वी युधिष्ठिर सफेद हड्डियों के ढेर पर बैठे हुए हैं और सोने के पात्र में रक्‍खी हुई घृतमिश्रित खीर को बड़ी प्रसन्‍नता के साथ खा रहे हैं।

‘मैंने यह भी देखा कि युधिष्ठिर इस पृथ्‍वी को अपना ग्रास बनाये जा रहे हैं; अत: यह निश्चित है कि आपकी दी हुई वसुन्‍धरा का वे ही उपभोग करेंगे। ‘भयंकर कर्म करने वाले नरश्रेष्‍ठ भीमसेन भी हाथ मे गदा लिये ऊँचे पर्वत पर आरूढ़ हो इस पृथ्‍वी को ग्रसते हुएसे स्‍वप्‍न में दिखायी दिये हैं। अत: यह स्‍पष्‍टरूप से जान पड़ता है कि वे इस महायुद्धमें हम सब लोगों का संहार कर डालेंगे । हृषीकेश ! मुझे यह भी विदित है कि जहाँ धर्म है उसी पक्ष की विजय होती है। ‘श्रीकृष्‍ण ! इसी प्रकार गाण्‍डीवधारी धनंजय भी आपके साथ श्‍वेत गजराजपर आरूढ़ हो अपनी परम कान्तिसे प्रकाशित होते हुए मुझे स्‍वप्‍न में दृष्टिगोचर हुए है।अत: श्रीकृष्‍ण ! आप सब लोग इस युद्ध में दुर्योधन आदि समस्‍त राजाओं का वध कर डालेंगे, इसमें मुझे संशय नहीं है। नकुल, सहदेव तथा महारथी सात्‍यकि- ये तीन नरश्रेष्‍ठ मुझे स्‍वप्‍न में श्‍वेत भुजबन्‍द, श्‍वेत कण्‍ठहार, श्‍वेत वस्‍त्र और श्‍वेत मालाओं से विभूषित हो उत्‍तम नरयान (पालकी) पर चढ़े दिखायी दिये हैं । ये तीनों ही श्‍वेत छत्र और श्‍वेत वस्‍त्रों से सुशोभित थे। जनार्दन ! दुर्योधन की सेनाओं में से मुझे तीन ही व्‍यक्ति स्‍वप्‍न में श्‍वेत पगड़ी से सुशोभित दिखायी दिये हैं । केशव ! आप उनके नाम मुझसे जान लें । वे हैं– अश्रत्‍थामा, कृपाचार्य और यादव कृतवर्मा । माधव ! अन्‍य सब नरेश मुझे लाल पगड़ी धारण किये दिखायी दिये है। महाबाहु जनार्दन ! मैंने स्‍वप्‍न में देखा, भीष्‍म और द्रोणाचार्य दोनों महारथी मेरे तथा दुर्योधन के साथ ऊँट जुते हुए रथपर आरूढ़ हो दक्षिण की ओर जा रहे थे । विभो ! इसका फल यह होगा कि हमलोग थोड़े ही दिनों में यमलोक पहुँच जायेंगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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