महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 163 श्लोक 1-16

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एक सौ तिरेसठवाँ अध्‍याय: उद्योगपर्व (उलूकदूतागमनपर्व)

महाभारत: उद्योगपर्व: एक सौ तिरेसठवाँ अध्याय: श्लोक 1- 31 का हिन्दी अनुवाद

पाँचों पाण्‍डवों, विराट, द्रुपद, शिखण्‍डी और ध्रष्‍टद्युम्न संदेश लेकर उलूकका लौटना और उलूककी बात सुनकर दुर्योधनका सेनाको युद्धके लिये तैयार होनेका आदेश देना । संजय कहते हैं—भरतश्रेष्‍ठ! दुर्योधन के पूर्वोक्‍त वचनको सुनकर महायशस्‍वी अर्जुनने क्रोधसे लाल आँखें करके शकुनिकुमार उलूककी ओर देखा। तत्‍पश्‍चात्‍ अपनी विशाल भुजाको ऊपर उठाकर श्रीकृष्‍णकी ओर देखते हुए उन्‍होंने कहा-जो अपने ही बल-पराक्रमका भरोसा करके शत्रुओंको ललकारता है और उनके साथ निर्भय होकर युद्ध करता है, वही पुरूष कहलाता है। जो दूसरेके पराक्रम का आश्रय ले शत्रुओंको युद्धके लिये बुलाता है, वह क्षत्रबन्‍धु असमर्थ होनेके कारण लोकमें पुरूषाधम कहा गया है। मूढ ! तू दूसरोंके पराक्रमसे ही अपनेकोबल-पराक्रम से सम्‍पन्‍न मानता है और स्‍वयं कायर होकर दूसरोंपर आक्षेप करना चाहता हैजो समस्‍त राजाओं वृद्ध, सबके प्रति हितबुद्धि रखने वाले, जितेन्द्रिय तथा महाज्ञानी हैं, उन्‍हीं पितामहको तू मरणके लिये रणकी दीक्षा दिलाकर अपनी बहादुरीकी बातें करता है। खोटी बुद्धिवाले कुलांगार ! तेरा मनोभाव हमने समझ लिया है । तू जानता है कि पाण्‍डवलोग दयावश गंगानन्‍दन भीष्‍मका वध नहीं करेंगे। ध्रतराष्‍ट्र ! तू जिनके पराक्रमका आश्रय लेकर बडी-बडी बातें बनाता है, उन पितामह भीष्‍मको ही मैं सबसे पहले तेरे समस्‍त धनुर्धरों देखते-देखते मार डालूंगा। उलूक ! तू भरतवंशियोंके यहाँ जाकर ध्रतराष्‍ट्र दुर्योधनसे कह दे कि सव्‍यसाची अर्जुनने ‘बहुत अच्‍छा’ कह कर तेरी चुनौति स्‍वीकार कर ली है। आजकी रात बीतते ही युद्ध आरम्‍भ हो जायेगा। सत्‍यप्रतिज्ञ और महान्‍ शक्तिशाली भीष्‍मजीने कौरव सैनिकोंके बीचमें उनका हर्ष बढाते हुए जो यह कहा था कि मैं सृंजय वीरोंकी सेनाका तथा शाल्‍वदेशके सैनिकोंका भी संहार कर डालूंगा । इन सबके मारनेकी भार मेरे ही ऊपर है। दुर्योधन ! मैं द्रोणाचार्य के बिना भी सम्‍पूर्ण जगत का संहार कर सकता हूँ; अत: तुम्‍हें पाण्‍डवोंसे कोई भय नहीं है। भीष्‍मके इस वचनसे ही तूने अपने मनमें यह धारणा बना ली है कि राज्‍य मुझे ही प्राप्‍त होगा और पाण्‍डव भारी विपत्तिमें पड़ जायेंगें। सत्‍प्रतिज्ञ और महान्‍ शक्तिशाली भीष्‍मजीने कौरव सैनिकोंके बीचमें उनका हर्ष बढाते हुए जो यह कहा था कि मैं सृंजय वीरोंकी सेनाका तथा शाल्‍वदेशके सैनिकोंका भी संहार कर डालूंगा । इन सबके मारनेका भार मेरे ही ऊपर है । दुर्योधन ! मैं द्रोणाचार्य के बिना भी सम्‍पूर्ण जगत्‍ का संहार कर सकता हूं; अत: तुम्‍हें पाण्‍डवोंसे कोई भय नहीं है। भीष्‍मके इस वचनसे ही तूने अपने मनमें यह धारणा बना ली है कि राज्‍य मुझे ही प्राप्‍त होगा और पाण्‍डव भारी विपत्तिमे पड़ जायेंगे। ‘इसीलिये तू घमंडसे भरकर अपने ऊपर आये हुए वर्तमान संकटको देख पाता है, अत: मैं सबसे पहले तेरे सेनासमूहमें प्रवेश करके कुरू‍कुलके वृद्ध पुरूष भीष्‍मका ही तेरी आँखोंके सामने वध करूंगा। तू सूर्योदय के समय सेनाको सुसज्जित करके ध्‍वज और रथसे सम्‍पन्‍न हो सब ओर द्रष्टि रखते हुए सत्‍यप्रतिज्ञ भीष्‍म की रक्षा कर । मैं तेरे सैनिकोंके देखते-देखते तेरे लिये आश्रय बने हुए इन भीष्‍मजीको बाणों द्वारा मारकर रथसे नीचे गिरा दूंगा। कल सवेरे पितामहको मेरे द्वारा चलाये हुए बाणोंके समूहसे व्‍याप्‍त देखकर दुर्योधनको अपनी बढ-बढकर कही हुर्इ बातोंका परिणाम ज्ञात होगा। सुयोधन ! क्रोधमें भरे हुए भीमसेनने उस क्षुद्र विचार वाले, अधर्मज्ञ, नित्‍य वैरी, पापबुद्धि ओर क्रूरकर्मा तेरे भाई दु:शासनके प्रति जो बात कही है, उस प्रतिज्ञाको तू शीघ्र ही सत्‍य हुई देखेगा। दुर्योधन ! तू अभिमान, दर्प, क्रोध, कटुभाषण, निष्‍ठुरता, अहंकार, आत्‍मप्रशंसा, क्रूरता, तीक्ष्‍णता, धर्मविद्वेष, अधर्म, अतिवाद, वृद्ध पुरूषोंके अपमान तथा टेढी आँखोंसे देखनेका और अपने समस्‍त अन्‍याय एवं अत्‍याचारों का घोर फल शीघ्र ही देखेगा। मूढ नारधम ! भगवान श्रीकृष्‍ण के साथ मेरे कुपित होने पर तू किस कारण से जीवन तथा राज्‍य की आशा करता है। भीष्‍म, द्रोणाचार्य तथा सूतपुत्र कर्णके मारे जानेपर तू अपने जीवन, राज्‍य तथा पुत्रोंकी रक्षाकी ओरसे निराश हो जायेगा। सुयोधन ! तू अपने भाइयों और पुत्रोंका मरण सुनकर और भीमसेनके हाथसे स्‍वयं भी मारा जाकर अपने साथी को याद करेगा। शकुनिपुत्र ! मैं दूसरी बार प्रतिज्ञा करना नहीं जानता। तुझसे सच्‍ची बात कहता हूं । यह सब कुछ सत्‍य होकर रहेगा ।तत्‍पश्‍चात युधिष्ठिर ने भी धूर्त जुआरीके पुत्र उलूकसे इस प्रकार कहा—वत्‍स उलूक ! तू दुर्योधनके पास जाकर मेरी यह बात कहना-सुयोधन ! तुझे अपने आचरणके अनुसार ही मेरे आचरण को नहीं समझना चाहिये। मैं दोनोंके बर्तावका तथा सत्‍य और झूठका भी अन्‍तर समझता हूं। मैं तो कीडों और चीटियों को भी कष्‍ट पहुंचाना नहीं चा‍हता; फिर अपने भाई-बन्‍धुओं अथवा कुटुम्‍बीजनोंके वधकी कामना किसी प्रकार भी कैसे कर सकता हूं । परंतु तेरा मन लोभ और तृष्‍णा में डूबा हुआ है। तू मूर्खता के कारण अपनी झूठी प्रशंसा करता है और भगवान श्रीकृष्‍ण के हितकारण वचनको भी नहीं मान रहा है। अब इस समय अधिक कहनेसेक्‍या लाभ तू अपने भाई-बन्‍धुओंके साथ आकर युद्ध कर। उलूक ! तू मेरा अप्रिय करनेवाले दुर्योधनसे कहना—तेरा संदेश सुना ओर उसका अभिप्राय समझ लिया । तेरी जैसी इच्‍छा है, वैसा ही हो। तदन्‍तर भीमसेनने पुन: राजकुमार उलूकसे यह बात कही–उलूक ! तू दुर्बुद्धि, पापात्‍मा, शठ, कपटी, पापी तथा दुराचारी दुर्योधनसे मरे यह बात भी कह देना।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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