"महाभारत कर्णपर्व अध्याय 1 श्लोक 19-24" के अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) ('==प्रथम (1) अध्याय: कर्ण पर्व == <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति ६: | पंक्ति ६: | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में जन मेजय वाक्य नामक पहला अध्याय पूरा हुआ।</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में जन मेजय वाक्य नामक पहला अध्याय पूरा हुआ।</div> | ||
+ | {{लेख क्रम |पिछला=महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 1 श्लोक 18|अगला=महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 2 श्लोक 1-15}} | ||
+ | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> |
१०:३०, २५ अगस्त २०१५ का अवतरण
प्रथम (1) अध्याय: कर्ण पर्व
दिजश्रेष्ठ ! फिर दुर्योधन के हितैषी कर्ण के मारे जाने का समाचार सुनकर अत्यन्त दुखी ही उन्होंने अपने प्राण कैसे धारण किये ? कुरूवंशी राजा ने जिसके उपर अपने पुत्रोंकी विजय की आशा बॉध रखी थी, उसके मारे जाने पर उन्होंने कैसे धारण किये ? मैं समझता हॅू कि बडे भारी संकट में पड जाने पर भी मनुष्यों के लिये अपने प्राणोंका परित्याग करना अत्यन्त कठिन है, तभी तो कर्णवध का वृतान्त सुनकर भी राजा धृतराष्ट ने इस जीवन का त्याग नहीं किया। ब्रहमन् ! उन्होंने वृद शान्तनु नन्दन भीष्म, बाहीक, द्रोण, सोमदत्त तथा भूरिश्रवा को और अन्यान्य सुदढों, पुत्रों एवं पौत्रों की भी शत्रुओं द्वारा मारा गया सुनकर भी जो अपने प्राण नहीं छोडे, उससे मुझे यही मालूम होता है कि मनुष्य के लिये स्वेच्छापूर्वक मरना बहुत कठिन है। महामुन ! यह सारा वृतान्त आप मुझसे विस्तारपूर्वक कहें। मैं अपने पूर्वजों का महान् चरित्र सुनकर तृप्त नहीं हो रहा हॅू।
« पीछे | आगे » |