"महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 66 श्लोक 67-78" के अवतरणों में अंतर

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==एकोनसप्‍ततितम (69) अध्याय: कर्ण पर्व ==
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: कर्ण पर्व:एकोनसप्‍ततितम अध्याय: श्लोक 67-78  का हिन्दी अनुवाद</div>
 
  
 
 
अर्जुन उवाच अर्जुन बोले- प्रभो। कोई बहुत बड़ा विद्वान् और परम बुद्धिमान् मनुष्‍य जैसा उपदेश दे सकता है तथा जिसके अनुसार आचरण करने से हम लोगों का हित हो सकता है, वैसा ही आपका यह भाषण हुआ है । श्रीकृष्‍ण। आप हमारे माता-पिता के तुल्‍य हैं। आप ही परमगति और परम आश्रय हैं । तीनों लोकों में कहीं कोई भी ऐसी बात नहीं है, जो आपको विदित न हो; अत: आप ही परम धर्म को सम्‍पूर्ण और यथार्थ रुप से जानते हैं । अब मैं पाण्‍डुनन्‍दन धर्मराज युधिष्ठिर को वध के योग्‍य नहीं मानता। मेरी इस मानसिक प्रतिज्ञा के विषयक में आप ही कोई अनुग्रह (भाई का वध किये बिना ही प्रतिज्ञा की रक्षा का उपाय) बताइये। मेरे मन में यहां कहने योग्‍य उत्तम बात है, इसे पुन: सुन लीजिये ।दशार्हकुलनन्‍दन। आप तो यह जानते ही है कि मेरा व्रत क्‍या है मनुष्‍यों से जो कोई भी मुझसे यह कह दे कि ‘पार्थ। तुम अपना गाण्‍डीव धनुष किसी दूसरे ऐसे पुरुष को दे दो, जो अस्‍त्रों के ज्ञान अथवा बल में तुमसे बढ़कर हो तो केशव। मैं उसे बलपूर्वक मार डालूं। इसी प्रकार भीमसेन को कोई ‘मूंछ दाढ़ीरहित’ कह दे तो वे उसे मार डालेंगे, वृष्णिवीर। राजा युधिष्ठिर ने आपके सामने ही बारंबार मुझ से कहा है कि ‘तुम अपना धनुष दूसरे को दे दो’ । केश्‍व। यदि मैं युधिष्ठिर को मार डालूं तो इस जीव जगत् में थोड़ी देर भी मैं जीवित नहीं रह सकता। यदि किसी तरह पाप से छूट जाऊं तो भी राजा युधिष्ठिर के वध का चिन्‍तन करके जी नहीं सकता। निश्चय ही इस समय मैं किंकर्तव्‍यविमूढ़ होकर पराक्रमशून्‍य और अचेत सा हो गया हूं । धर्मात्‍माओं में श्रेष्‍ठ श्रीकृष्‍ण। संसार के लोगों की समझ में जिस प्रकार मेरी प्रतिज्ञा सच्ची हो जाय और जिस प्रकार पाण्‍डुपुत्र राजा युधिष्ठिर और मैं दोनों जीवित रह सकें, वैसी कोई सलाह आप मुझे देने की कृपा करें । वासुदेव उवाच श्रीकृष्‍ण ने कहा- वीर। राजा युधिष्ठिर थक गये हैं। कर्ण ने युद्धस्‍थल में अपने तीखे बाण समूहों द्वारा इन्‍हें क्षत-विक्षत कर दिया है, इसलिये ये बहुत दुखी हैं। इतना ही नहीं, जब ये युद्ध नहीं कर रहे थे, उस समय भी सूतपुत्र ने इनके ऊपर लगातार बाणों की वर्षा करके इन्‍हें अत्‍यन्‍त घायल कर दिया था । इसीलिये दुखी होने के कारण इन्‍होंने तुम्‍हारे प्रति रोषपूर्वक ये अनुचित बातें कही हैं। इन्‍होंने यह भी सोचा है कि यदि अर्जुन को क्रोध न दिलाया गया तो ये युद्ध में कर्ण को नहीं मार सकेंगे, इस कारण से भी वैसी बातें कह दी हैं । ये पाण्‍डुनन्‍दन राजा युधिष्ठिर जानते हैं कि संसार में पापी कर्ण का सामना करना तुम्‍हारे सिवा दूसरों के लिये असम्‍भव है। पार्थ। इसीलिये अत्‍यन्‍त रोष में भरे हुए राजा ने मेरे सामने तुम्‍हें कटु वचन सुनाये हैं ।
 
 
 
 
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 69 श्लोक 52-66|अगला=महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 66 श्लोक 79-88}}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
==संबंधित लेख==
 
{{सम्पूर्ण महाभारत}}
 
 
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१४:०२, १७ सितम्बर २०१५ के समय का अवतरण