महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 110 श्लोक 1-23

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दशाधिकशततम (110) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: दशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुन के प्रोत्साहन से शिखण्डी का भीष्म पर आक्रमण और दोनों सेनाओं के प्रमुख वीरों का परस्पर युद्ध तथा दुःशासन का अर्जुन के साथ घोर युद्ध संजय कहते है- राजन् ! रणभूमि में भीष्म का पराक्रम देखकर अर्जुन ने शिखण्डी से कहा- वीर ! तुम पितामह का सामना करने के लिये आगे बढो। आज भीष्मजी से तुम्हें किसी प्रकार भय नहीं करना चाहिये। मैं स्वयं अपने पैने बाणों द्वारा इनको उत्तम रथ से मार गिराऊँगा। भरतश्रेष्ठ ! जब अर्जुन ने शिखण्डी से ऐसा कहा, तब उसने पार्थ के उस कथन को सुनकर गंगानन्दन भीष्म पर धावा किया। राजन् ! पार्थ का वह भाषण सुनकर धृष्टद्युम्न तथा सुभद्राकुमार महारथी अभिमन्यु - ये दोनों वीर हर्ष और उत्साह में भरकर भीष्म की ओर दौड़े। दोनों वृद्ध नरेश विराट और दु्रपद तथा कवचधारी कुन्तिभोज भी आपके पुत्र के देखते-देखते गंगानन्दन भीष्म पर टूट पड़े।
प्रजानाथ ! नकुल, सहदेव, पराक्रमी धर्मराज युधिष्ठिर तथा दूसरे समस्त सैनिक अर्जुन का उपर्युक्त वचन सुनकर भीष्मजी की ओर बढ़ने लगे। इस प्रकार एकत्र हुए पाण्डव महारथियों पर आपके पुत्रों ने भी जिस प्रकार अपनी शक्ति और उत्साह के अनुसार आक्रमण किया, वह सब बताता हूँ, सुनिये। महाराज ! चित्रसेन ने भीष्म के पास पहूँचने की इच्छा से रण में जाते हुए चेकितान का सामना किया, मानो बाघ का बच्चा बैल का सामना कर रहा हो। राजन् ! कृतवर्मा ने भीष्मजी के निकट पहुँचकर युद्ध के लिये उतावली पूर्वक प्रयत्न करने वाले धृष्टद्युम्न को रोका। महाराज ! भीमसेन भी अत्यन्त क्रोध में भरकर गंगानन्दन भीष्म का वध करना चाहते थे; परंतु सोमदत्त पुत्र भूरिश्रवा ने तुरंत आकर उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया। इसी प्रकार शूरवीर, नकुल बहुत से सायकों की वर्षा कर रहे थे, परंतु भीष्म के जीवन की रक्षा चाहने वाले विकर्ण ने उन्हें रोक दिया। राजन् ! युद्धस्थल में भीष्म के रथ की ओर जाते हुए सहदेव को कुपित हुए शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य ने रोक दिया। भीष्म की मृत्यु चाहने वाले क्रूरकर्मा राक्षस महाबली भीमसेन कुमार घटोत्कच पर बलवान दुर्मुख ने आक्रमण किया। पाण्डवों की प्रसन्नता के लिये भीष्म का वध चाहने वाले सात्यकि को युद्ध के लिये जाते देख आपके पुत्र दुर्योयधन ने रोका। महाराज ! भीष्म के रथ की ओर अग्रसर होने वाले अभिमन्यु को काम्बोराज सुदक्षिण ने रोका। भारत ! एक साथ आये हुए शत्रुमर्दन बूढ़े नरेश विराट और दु्रपद को क्रोध में भरे हुए अश्वत्थामा ने रोक दिया। भीष्म के वध की अभिलाषा रखने वाले ज्येष्ठ पाण्डव धर्म पुत्र युधिष्ठिर को युद्ध में द्रोणाचार्य ने यत्नपूर्वक रोका।
महाराज ! दसों दिशाओं को प्रकाशित करते हुए वेग शाली वीर अर्जुन युद्ध में शिखण्डी को आगे करके भीष्म को मारना चाहते थे। उस समय महाधनुर्धर दुःशासन ने युद्ध के मैदान में आकर उन्हें रोका। राजन् ! इसी प्रकार आपके अन्य योद्धाओं ने भीष्म के सम्मुख गये हुए पाण्डव महारथियों को युद्ध में आगे बढने से रोक दिया। धृष्टद्युम्न अपने सैनिकों से बार बार पुकार पुकारकर कहने लगे- वीरों ! तुम सब लोग उत्साहित होकर एकमात्र महाबली भीष्म पर आक्रमण करो। ये कुरूकुल को आनन्दित करने वाले अर्जुन रणक्षेत्र में भीष्म पर चढाई करते है। तुम भी उन पर टूट पडों। डरो मत। भीष्म तुम लोगों को नहीं पा सकेंगे। इन्द्र भी समरांगण में अर्जुन के साथ युद्ध करने में समर्थ नहीं हो सकते; फिर ये धैर्य और शक्ति से शून्य भीष्म रणक्षेत्र में उनका सामना कैसे कर सकते है? अब इनका जीवन थोड़ा ही शेष रहा है। सेनापति का यह वचन सुनकर पाण्डव महारथी अत्यन्त हर्ष में भरकर गंगानन्दन भीष्म के रथ पर टूट पड़े।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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