"महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 119 श्लोक 84-97" के अवतरणों में अंतर

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==एकोनविशत्यधिकशततम (119) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)==
 
==एकोनविशत्यधिकशततम (119) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनविशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 80-97 का हिन्दी अनुवाद </div>
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनविशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 84-97 का हिन्दी अनुवाद </div>
  
पाण्डवों तथा अन्य राजाओं ने वज्रके समान बाणों द्वारा आपकी सेनाओं को बलपूर्वक पीड़ितकिया। वहां हमने पाण्डवों का यह अदभुत पराक्रम देखा कि उन्होंने अपने बाणोंकी वर्षा से भीष्म का अनुगमन करने वाले समस्त योद्धाओं को मार भगाया। राजन! उस समय श्‍वेतवाहन कुन्तीपुत्र धनंजय से डरकर उनके तीखे अस्त्र-शस्त्रोंसे पीड़ितहो हमसभी लोग रणभूमि से भागने लगे थे। सौवीर, कितव,प्राच्य, प्रतीच्य, उदीच्य, मालव, अभीषाह, शूरसेन, शिवि, वसाति, षाल्वाश्रय, त्रिगर्त,अम्बष्ठ और केकय- इन सभी देशोंके ये सारे महामनस्वी वीर बाणोंसे घायल और घावोंसे पीड़ितहोने पर भी अर्जुन के साथ युद्धकरने वाले भीष्म को संग्राम में छोड़ न सके। तदनन्तर एकमात्र भीष्म को पाण्डव पक्षीय बहुत-से योजनाओं ने चारों ओर से घेर लिया और समस्त कौरवों को सब ओर से खदेड़कर उनके ऊपर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। राजन! उस समय भीष्म के रथ के समीप ‘मार गिराओ, पकड़ लो, युद्ध करों, टुकडे़-टुकड़े कर डालो’ इत्यादि भयंकर शब्द गूंज रहे थे। महाराज! समर में भीष्म सैकड़ों और हजारों वीरों का वध करके स्वयं इस स्थिति में पहुंच गये थे कि उनके शरीर में दो अंगुल भी ऐसा स्थान नहींरह गया था, जो बाणों से बिद्ध नहीं हुआ हो। इस प्रकार आपकेताऊ भीष्म युद्ध स्थल में अर्जुन केतीखे बाणों से अत्यंत विद्ध हो गये थे- उनका शरीर छिदकर छलनी हो रहा था। वे उसी अवस्था में, जबकि दिन थोड़ा ही शेष था, आपके पुत्रों के देखते-देखते पूर्व दिशा की ओर मस्तक किये रथ से नीचे गिर पड़े। भारत! रथसे भीष्म के गिरते समय आकाश में खड़े हुए देवताओं तथा भूतलवर्ती राजाओं में बड़े जोर से हाहाकार मच गया। महाराज! महात्‍मापितामह भीष्म को रथ से नीचे गिरते देखकर हमसब लोगों के ह्दय भी उनके साथ ही गिर पड़े। वे महाबाहु भीष्म सम्पूर्णधनुर्धरों में श्रेष्ठ थे। वे कटी हुई इन्द्र की ध्वजा के समान पृथ्वी को शब्दायमान करते हुए गिर पडे़। उनके सारे अंगों में सब ओर बाण बिंधे हुए थे। इसलिये गिरने पर भी उनका धरती से स्पर्श नहीं हुआ। रथ से गिरकर बाण शय्या पर सोये हुए पुरूष प्रवर महाधनुर्धर भीष्म के भीतर दिव्यभाव का आवेश हुआ। आकाश से मेघ वर्षा करने लगा, धरती कांपने लगी, गिरते-गिरते उन्होंने देखा, अभी सूर्य दखिक्षायन में हैं (यह मृत्यु के लिये उत्तम समय नहीं है)। भारत! समय का विचार करके वीरवर भीष्म ने अपने होश हवाश को ठीक रखा। उस समय आकाश में सब ओर से यह दिव्य वाणी सुनायी दी। ।महात्मा गंगानन्दन भीष्म सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ, मनुष्यों में सिंह के समान पराक्रमी तथा काल पर भी प्रभुत्व रखने वाले थे। इन्होंने दक्षिणायनमें मृत्यु क्यों स्वीकार की ? उनकी वह बात सुनकर गंगानन्दन भीष्म ने कहा-‘मैं अभी जीवित हूं। ’ कुरूकुल के वृद्ध पितामह भीष्म पृथ्वी पर गिरकर भी उत्तरायण की प्रतीक्षा करते हुए अपने प्राणों को रोके हुए हैं। उनके इस अभिप्राय को जानकर हिमालयनन्दिनी गंगादेवी ने महर्षियों को हंसरूप से वहां भेजा।  
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तदनन्तर एकमात्र भीष्म को पाण्डव पक्षीय बहुत-से योजनाओं ने चारों ओर से घेर लिया और समस्त कौरवों को सब ओर से खदेड़कर उनके ऊपर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। राजन! उस समय भीष्म के रथ के समीप ‘मार गिराओ, पकड़ लो, युद्ध करों, टुकडे़-टुकड़े कर डालो’ इत्यादि भयंकर शब्द गूंज रहे थे। महाराज! समर में भीष्म सैकड़ों और हजारों वीरों का वध करके स्वयं इस स्थिति में पहुंच गये थे कि उनके शरीर में दो अंगुल भी ऐसा स्थान नहींरह गया था, जो बाणों से बिद्ध नहीं हुआ हो। इस प्रकार आपकेताऊ भीष्म युद्ध स्थल में अर्जुन केतीखे बाणों से अत्यंत विद्ध हो गये थे- उनका शरीर छिदकर छलनी हो रहा था। वे उसी अवस्था में, जबकि दिन थोड़ा ही शेष था, आपके पुत्रों के देखते-देखते पूर्व दिशा की ओर मस्तक किये रथ से नीचे गिर पड़े। भारत! रथसे भीष्म के गिरते समय आकाश में खड़े हुए देवताओं तथा भूतलवर्ती राजाओं में बड़े जोर से हाहाकार मच गया। महाराज! महात्‍मापितामह भीष्म को रथ से नीचे गिरते देखकर हमसब लोगों के ह्दय भी उनके साथ ही गिर पड़े। वे महाबाहु भीष्म सम्पूर्णधनुर्धरों में श्रेष्ठ थे। वे कटी हुई इन्द्र की ध्वजा के समान पृथ्वी को शब्दायमान करते हुए गिर पडे़। <br />
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उनके सारे अंगों में सब ओर बाण बिंधे हुए थे। इसलिये गिरने पर भी उनका धरती से स्पर्श नहीं हुआ। रथ से गिरकर बाण शय्या पर सोये हुए पुरूष प्रवर महाधनुर्धर भीष्म के भीतर दिव्यभाव का आवेश हुआ। आकाश से मेघ वर्षा करने लगा, धरती कांपने लगी, गिरते-गिरते उन्होंने देखा, अभी सूर्य दखिक्षायन में हैं (यह मृत्यु के लिये उत्तम समय नहीं है)। भारत! समय का विचार करके वीरवर भीष्म ने अपने होश हवाश को ठीक रखा। उस समय आकाश में सब ओर से यह दिव्य वाणी सुनायी दी। ।महात्मा गंगानन्दन भीष्म सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ, मनुष्यों में सिंह के समान पराक्रमी तथा काल पर भी प्रभुत्व रखने वाले थे। इन्होंने दक्षिणायनमें मृत्यु क्यों स्वीकार की ? उनकी वह बात सुनकर गंगानन्दन भीष्म ने कहा-‘मैं अभी जीवित हूं। ’ कुरूकुल के वृद्ध पितामह भीष्म पृथ्वी पर गिरकर भी उत्तरायण की प्रतीक्षा करते हुए अपने प्राणों को रोके हुए हैं। उनके इस अभिप्राय को जानकर हिमालयनन्दिनी गंगादेवी ने महर्षियों को हंसरूप से वहां भेजा।  
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{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 119 श्लोक 62-83|अगला=महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 119 श्लोक 99-122}}
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==संबंधित लेख==
 
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०९:४९, २५ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

एकोनविशत्यधिकशततम (119) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनविशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 84-97 का हिन्दी अनुवाद

तदनन्तर एकमात्र भीष्म को पाण्डव पक्षीय बहुत-से योजनाओं ने चारों ओर से घेर लिया और समस्त कौरवों को सब ओर से खदेड़कर उनके ऊपर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। राजन! उस समय भीष्म के रथ के समीप ‘मार गिराओ, पकड़ लो, युद्ध करों, टुकडे़-टुकड़े कर डालो’ इत्यादि भयंकर शब्द गूंज रहे थे। महाराज! समर में भीष्म सैकड़ों और हजारों वीरों का वध करके स्वयं इस स्थिति में पहुंच गये थे कि उनके शरीर में दो अंगुल भी ऐसा स्थान नहींरह गया था, जो बाणों से बिद्ध नहीं हुआ हो। इस प्रकार आपकेताऊ भीष्म युद्ध स्थल में अर्जुन केतीखे बाणों से अत्यंत विद्ध हो गये थे- उनका शरीर छिदकर छलनी हो रहा था। वे उसी अवस्था में, जबकि दिन थोड़ा ही शेष था, आपके पुत्रों के देखते-देखते पूर्व दिशा की ओर मस्तक किये रथ से नीचे गिर पड़े। भारत! रथसे भीष्म के गिरते समय आकाश में खड़े हुए देवताओं तथा भूतलवर्ती राजाओं में बड़े जोर से हाहाकार मच गया। महाराज! महात्‍मापितामह भीष्म को रथ से नीचे गिरते देखकर हमसब लोगों के ह्दय भी उनके साथ ही गिर पड़े। वे महाबाहु भीष्म सम्पूर्णधनुर्धरों में श्रेष्ठ थे। वे कटी हुई इन्द्र की ध्वजा के समान पृथ्वी को शब्दायमान करते हुए गिर पडे़।
उनके सारे अंगों में सब ओर बाण बिंधे हुए थे। इसलिये गिरने पर भी उनका धरती से स्पर्श नहीं हुआ। रथ से गिरकर बाण शय्या पर सोये हुए पुरूष प्रवर महाधनुर्धर भीष्म के भीतर दिव्यभाव का आवेश हुआ। आकाश से मेघ वर्षा करने लगा, धरती कांपने लगी, गिरते-गिरते उन्होंने देखा, अभी सूर्य दखिक्षायन में हैं (यह मृत्यु के लिये उत्तम समय नहीं है)। भारत! समय का विचार करके वीरवर भीष्म ने अपने होश हवाश को ठीक रखा। उस समय आकाश में सब ओर से यह दिव्य वाणी सुनायी दी। ।महात्मा गंगानन्दन भीष्म सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ, मनुष्यों में सिंह के समान पराक्रमी तथा काल पर भी प्रभुत्व रखने वाले थे। इन्होंने दक्षिणायनमें मृत्यु क्यों स्वीकार की ? उनकी वह बात सुनकर गंगानन्दन भीष्म ने कहा-‘मैं अभी जीवित हूं। ’ कुरूकुल के वृद्ध पितामह भीष्म पृथ्वी पर गिरकर भी उत्तरायण की प्रतीक्षा करते हुए अपने प्राणों को रोके हुए हैं। उनके इस अभिप्राय को जानकर हिमालयनन्दिनी गंगादेवी ने महर्षियों को हंसरूप से वहां भेजा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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