"श्रीमद्भागवत महापुराण तृतीय स्कन्ध अध्याय 6 श्लोक 35-40" के अवतरणों में अंतर
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११:०१, २२ सितम्बर २०१५ के समय का अवतरण
तृतीय स्कन्ध: षष्ठ अध्यायः (6)
विदुरजी! यह विराट् पुरुष काल, कर्म और स्वभाव शक्ति से युक्त भगवान् की योगमाया के प्रभाव को प्रकट करने वाला है। इसके स्वरुप का पूरा-पूरा वर्णन करने का कौन साहस कर सकता है। तथापि प्यारे विदुजी! अन्य व्यावहारिक चर्चाओं से अपवित्र हुई अपनी वाणी को पवित्र करने के लिये, जैसी मेरी बुद्धि है और जैसा मैंने गुरु मुख से सुना है वैसा, श्रीहरि का सुयश वर्णन करता हूँ। महापुरुषों का मत है कि पुण्यश्लोकशिरोमणि श्रीहरि के गुणों का गान करना ही मनुष्यों की वाणी का तथा विद्वानों के मुख से भगवत्कथामृत का पान करना ही उनके कानों का सबसे बड़ा लाभ है। वत्स! हम ही नहीं, आदिकवि श्रीब्रम्हाजी ने एक हजार दिव्य वर्षों तक अपनी योग परिपक्व बुद्धि से विचार किया; तो भी क्या वे भगवान् की अमित महिमा का पार पा सके ? अतः भगवान् की माया बड़े-बड़े मायावियों को भी मोहित कर देने वाली है। उसकी चक्कर में डालने वाली चाल अनन्त है; अतएव स्वयं भगवान् भी उसकी थाह नहीं लगा सकते, फिर दूसरों की तो बात ही क्या है। जहाँ न पहुँचकर मन के सहित वाणी भी लौट आती है तथा जिनका पार पाने में अहंकार के अभिमानी रूद्र तथा अन्य इन्द्रियाधिष्ठाता देवता भी समर्थ नहीं हैं, उन श्रीभगवान् को हम नमस्कार करते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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