"श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 33 श्लोक 38-40" के अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: त्रास्त्रिंशोऽध्यायः श्लोक 38-40 का हिन्दी अनुवाद </div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: त्रास्त्रिंशोऽध्यायः श्लोक 38-40 का हिन्दी अनुवाद </div>

१३:५७, २३ जुलाई २०१५ का अवतरण

दशम स्कन्ध: त्रास्त्रिंशोऽध्यायः (33) (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: त्रास्त्रिंशोऽध्यायः श्लोक 38-40 का हिन्दी अनुवाद

व्रजवासी गोपों ने भगवान् श्रीकृष्ण में तनिक भी दोषबुद्धि नहीं की। वे उनकी योगमाया से मोहित होकर ऐसा समझ रहे थे कि हमारी पत्नियाँ हमारे पास ही हैं । ब्रम्हा की रात्रि के बराबर वह रात्रि बीत गयी। ब्राम्हमुहूर्त आया। यद्यपि गोपियों की इच्छा अपने घर लौटने की नहीं थी, फिर भी भगवान् श्रीकृष्ण की आज्ञा से वे अपने-अपने घर चली गयीं। क्योंकि वे अपनी प्रत्येक चेष्टा से, प्रत्येक संकल्प से केवल भगवान् को ही प्रसन्न करना चाहती थीं ।

परीक्षित्! जो धीर पुरुष व्रजयुवतियों के साथ भगवान् श्रीकृष्ण के इस चिन्मय रास-विलास का श्रद्धा के साथ बार-बार श्रवण और वर्णन करता है, उसे भगवान् के चरणों में परा भक्ति की प्राप्ति होती है और वह बहुत ही शीघ्र अपने ह्रदय के रोग—कामविकार से छुटकारा पा जाता है। उसका कामभाव सर्वदा के लिये नष्ट हो जाता है ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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