"श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 42 श्लोक 27-38" के अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: द्विचत्वारिंशोऽध्यायः श्लोक 27-38 का हिन्दी अनुवाद </div>

१४:०३, २३ जुलाई २०१५ का अवतरण

दशम स्कन्ध: द्विचत्वारिंशोऽध्यायः (42) (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: द्विचत्वारिंशोऽध्यायः श्लोक 27-38 का हिन्दी अनुवाद

तब वह बहुत डर गया, उस दुर्बुद्धि को बहुत देरतक नींद न आयी। उसे जाग्रत-अवस्था में तथा स्वपन में भी बहुत-से ऐसे अपशकुन हुए जो उसकी मृत्यु के सूचक थे । जाग्रत-अवस्था में उसने देखा कि जल या दर्पण में शरीर को परछाई तो पड़ती है, परन्तु सिर नहीं दिखायी देता; अँगुली आदि की आड़ ने होने पर भी चन्द्रमा, तारे और दीपक आदि की ज्योतियाँ उसे दो-दो दिखायी पड़ती हैं । छाया में छेद दिखायी पड़ता है और कानों में अँगुली डालकर सुनने पर भी प्राणों का घूँ-घूँ शब्द नहीं सुनायी पड़ता। वृक्ष सुनहले प्रतीत होते हैं और बालू या कीचड़ में अपने पैरों के चिन्ह नहीं दीख पड़ते । कंस ने स्वपनावस्था में देखा कि वह प्रेतों के गले लग रहा है, गधे पर चढ़कर चलता है और विष खा रहा है। उसका सारा शरीर तेल से तर है, गले में जपाकुसुम (अड़हुल)—की माला है और नग्न होकर कहीं जा रहा है । स्वप्न और जाग्रत-अवस्था में उसने इसी प्रकार के और भी बहुत-से अपशकुन देखे। उनके कारण उसे नींद न आयी ।

परीक्षित्! जब रात बीत गयी और सूर्यनारायण पूर्व समुद्र से ऊपर उठे, तब राजा कंस ने मल्ल-क्रीड़ा (दंगल)—का महोत्सव प्रारम्भ कराया । राजकर्मचारियों ने रंगभूमि को भलीभाँति सजाया। तुरही, भेरी आदि बाजे बजने लगे। लोगों के बैठने के मंच फूलों के गजरों, झंडियों, वस्त्र और बंदनवारों से सजा दिये गये । उनपर ब्राम्हण, क्षत्रिय आदि नागरिक तथा ग्रामवासी—सब यथास्थान बैठ गये। राजालोग भी अपने-अपने निश्चित स्थान पर जा डटे । राजा कंस अपने मन्त्रियों के साथ मण्डलेश्वरों (छोटे-छोटे राजाओं) के बीच में सबसे श्रेष्ठ राजसिंहासन पर जा बैठा। इस समय भी अपशकुनों के कारण उनका चित्त घबड़ाया हुआ था । तब पहलवानों के ताल ठोंकने के साथ ही बाजे बजने लगे और गरबीले पहलवान खूब सज-धजकर अपने-अपने उस्तादों के साथ अखाड़े में आ उतरे । चाणूर, मुष्टिक, कूट, शल और तोशल आदि प्रधान-प्रधान पहलवान बाजों की सुमधुर ध्वनि से उत्साहित होकर अखाड़े में आ-आकर बैठ गये । इसी समय भोजराज कंस ने नन्द आदि गोपों को बुलवाया। उन लोगों ने आकर उसे तरह-तरह की भेंटें दीं और फिर जाकर वे एक मंच पर बैठ गये ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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