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सर विलियम जोंस अंग्रेज प्राच्य विद्यापंडित और विधिशास्त्री तथा प्राचीन भारत संबंधी सांस्कृतिक अनुसंधानों का प्रारंभयिता। लंदन में २८ सितंबर, १७४६ को जन्म। हैरो, और आक्सफर्ड में शिक्षा प्राप्त की। शीघ्र ही उसने इब्रानी, फारसी, अरबी और चीनी भाषाओं का अभ्यास कर लिया। इनके अतिरिक्त जर्मन, इतावली, फ्रेंच, स्पेनी और पुर्तगाली भाषाओं पर भी उसका अच्छा अधिकार था। नादिरशाह के जीवनवृत का फारसी से फ्रेंच भाषा में उसका अनुवाद १७७० में प्रकाशित हुआ। १७७१ में उसने फारसी व्याकरण पर एक पुस्तक लिखी। १७७४ में 'पोएसिअस असिपातिका कोमेंतेरिओरम लिबरीसेम्स' और १७८३ में 'मोअल्लकात' नामक सात अरबी कविताओं का अनुवाद किया। फिर उसने पूर्वी साहित्य, भाषाशास्त्र और दर्शन पर भी अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी और अनुवाद किए। कानून में भी उसने अच्छी पुस्तकें लिखीं है। उसी 'आन द ला ऑव बेलमेंट्स' (१७८१) विशेष प्रसिद्ध है। १७७४ से उसने अपना जीवन कानून के क्षेत्र में लगाया और १७८३ में बंगाल के उच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में न्यायाधीश नियुक्त हुआ। उसी वर्ष उसे 'सर' की उपाधि मिली। भारत में उसने पूर्वी विषयों के अध्ययन में गंभीर रुचि प्रदर्शित की। उसने संस्कृत का अध्ययन किया और १७८४ में 'बंगाल एशियाटिक सोसाइटी' की स्थापना की जिससे भारत के इतिहास, पुरातत्व, विशेषकर साहित्य और विधिशास्त्र संबंधी अध्ययन की नींव पड़ी। यूरोप में उसी ने संस्कृत साहित्य की गरिमा सबसे पहले घोषित की। उसी के कालिदासीय अभिज्ञान शाकुंतल के अनुवाद ने संस्कृत और भारत संबंधी यूरोपीयदृष्टि में क्रांति उत्पन्न कर दी। गेटे आदि महान्‌ कवि उस अनुवाद से बड़े प्रभावित हुए। कलकत्ते में ही १७ अप्रैल, १७९४ के इस महापंडित का निधन हुआ।  
 
सर विलियम जोंस अंग्रेज प्राच्य विद्यापंडित और विधिशास्त्री तथा प्राचीन भारत संबंधी सांस्कृतिक अनुसंधानों का प्रारंभयिता। लंदन में २८ सितंबर, १७४६ को जन्म। हैरो, और आक्सफर्ड में शिक्षा प्राप्त की। शीघ्र ही उसने इब्रानी, फारसी, अरबी और चीनी भाषाओं का अभ्यास कर लिया। इनके अतिरिक्त जर्मन, इतावली, फ्रेंच, स्पेनी और पुर्तगाली भाषाओं पर भी उसका अच्छा अधिकार था। नादिरशाह के जीवनवृत का फारसी से फ्रेंच भाषा में उसका अनुवाद १७७० में प्रकाशित हुआ। १७७१ में उसने फारसी व्याकरण पर एक पुस्तक लिखी। १७७४ में 'पोएसिअस असिपातिका कोमेंतेरिओरम लिबरीसेम्स' और १७८३ में 'मोअल्लकात' नामक सात अरबी कविताओं का अनुवाद किया। फिर उसने पूर्वी साहित्य, भाषाशास्त्र और दर्शन पर भी अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी और अनुवाद किए। कानून में भी उसने अच्छी पुस्तकें लिखीं है। उसी 'आन द ला ऑव बेलमेंट्स' (१७८१) विशेष प्रसिद्ध है। १७७४ से उसने अपना जीवन कानून के क्षेत्र में लगाया और १७८३ में बंगाल के उच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में न्यायाधीश नियुक्त हुआ। उसी वर्ष उसे 'सर' की उपाधि मिली। भारत में उसने पूर्वी विषयों के अध्ययन में गंभीर रुचि प्रदर्शित की। उसने संस्कृत का अध्ययन किया और १७८४ में 'बंगाल एशियाटिक सोसाइटी' की स्थापना की जिससे भारत के इतिहास, पुरातत्व, विशेषकर साहित्य और विधिशास्त्र संबंधी अध्ययन की नींव पड़ी। यूरोप में उसी ने संस्कृत साहित्य की गरिमा सबसे पहले घोषित की। उसी के कालिदासीय अभिज्ञान शाकुंतल के अनुवाद ने संस्कृत और भारत संबंधी यूरोपीयदृष्टि में क्रांति उत्पन्न कर दी। गेटे आदि महान्‌ कवि उस अनुवाद से बड़े प्रभावित हुए। कलकत्ते में ही १७ अप्रैल, १७९४ के इस महापंडित का निधन हुआ।  
  

१३:१७, २७ अगस्त २०१४ के समय का अवतरण

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सर विलियम जोंस अंग्रेज प्राच्य विद्यापंडित और विधिशास्त्री तथा प्राचीन भारत संबंधी सांस्कृतिक अनुसंधानों का प्रारंभयिता। लंदन में २८ सितंबर, १७४६ को जन्म। हैरो, और आक्सफर्ड में शिक्षा प्राप्त की। शीघ्र ही उसने इब्रानी, फारसी, अरबी और चीनी भाषाओं का अभ्यास कर लिया। इनके अतिरिक्त जर्मन, इतावली, फ्रेंच, स्पेनी और पुर्तगाली भाषाओं पर भी उसका अच्छा अधिकार था। नादिरशाह के जीवनवृत का फारसी से फ्रेंच भाषा में उसका अनुवाद १७७० में प्रकाशित हुआ। १७७१ में उसने फारसी व्याकरण पर एक पुस्तक लिखी। १७७४ में 'पोएसिअस असिपातिका कोमेंतेरिओरम लिबरीसेम्स' और १७८३ में 'मोअल्लकात' नामक सात अरबी कविताओं का अनुवाद किया। फिर उसने पूर्वी साहित्य, भाषाशास्त्र और दर्शन पर भी अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी और अनुवाद किए। कानून में भी उसने अच्छी पुस्तकें लिखीं है। उसी 'आन द ला ऑव बेलमेंट्स' (१७८१) विशेष प्रसिद्ध है। १७७४ से उसने अपना जीवन कानून के क्षेत्र में लगाया और १७८३ में बंगाल के उच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में न्यायाधीश नियुक्त हुआ। उसी वर्ष उसे 'सर' की उपाधि मिली। भारत में उसने पूर्वी विषयों के अध्ययन में गंभीर रुचि प्रदर्शित की। उसने संस्कृत का अध्ययन किया और १७८४ में 'बंगाल एशियाटिक सोसाइटी' की स्थापना की जिससे भारत के इतिहास, पुरातत्व, विशेषकर साहित्य और विधिशास्त्र संबंधी अध्ययन की नींव पड़ी। यूरोप में उसी ने संस्कृत साहित्य की गरिमा सबसे पहले घोषित की। उसी के कालिदासीय अभिज्ञान शाकुंतल के अनुवाद ने संस्कृत और भारत संबंधी यूरोपीयदृष्टि में क्रांति उत्पन्न कर दी। गेटे आदि महान्‌ कवि उस अनुवाद से बड़े प्रभावित हुए। कलकत्ते में ही १७ अप्रैल, १७९४ के इस महापंडित का निधन हुआ।

टीका टिप्पणी और संदर्भ