उरद

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लेख सूचना
उरद
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 138
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक भगवानदास वर्मा

उरद को संस्कृत में माष या बलाढ्य, बँगल में माष या कलाई, गुजराती में अड़द, मराठी में उड़ीद, पंजाबी में माँह तथा लैटिन में फ़ेसिओलस रेडिएटस कहते हैं।

इसका द्विदल पौधा लगभग एक हाथ ऊँचा है और भारतवर्ष में सर्वत्र ज्वार, बाजरा और रुई के खेतों में तथा अकेला भी बोया जाता है। इससे मिलनेवाली दाल भोजन और औषधि, दोनों रूपों में उपयोगी है। बीज की दो जातियाँ होती हैं : (1) काली और बड़ी, जो वर्षा के आरंभ में बोई जाती है और (2) हरी और छोटी, जिसकी बोआई दो महीने पश्चात्‌ होती है।

इसकी हरी फलियों की भाजी तथा बीजों से दाल, पापड़ा, बड़े इत्यादि भोज्य पदार्थ बनाए जाते हैं। आयुर्वेद के मतानुसार इसकी दाल स्निग्ध, पौष्टिक, बलकारक, शुक्र, दुग्ध, मांस और मेदवर्धक; वात, श्वास और बवासीर के रोगों में हितकर तथा शौच को साफ करनेवाली है।

रासायनिक विश्लेषणों से इसमें स्टार्च 56 प्रतिशत, अल्बुमिनाएड्स 23 प्रतिशत, तेल सवा दो प्रतिशत और फास्फोरस ऐसिड सहित राख साढ़े चार प्रतिशत पाई गई है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ