ऋष्यश्रृंग

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लेख सूचना
ऋष्यश्रृंग
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 204
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक कैलासचंद्र शर्मा

ऋष्यग एक ऋषि जो काश्यप विभांडक के पुत्र थे। एक बार गंगास्नान के समय उर्वशी अप्सरा को देखकर विभांडक कामातुर हो गए और उनका रेत पानी में गिर पड़ा। शाप से हिरनी बनी एक देवकन्या वहाँ आई और पानी पीते समय वह रेत उसके पेट में चला गया। हिरनी को गर्भ रह गया और इसी गर्भ से ऋष्यग नाम पड़ा। विभांडक ने इन्हें पाला पोसा और वेदवेदांगों की शिक्षा दी। मृग योनि से उत्पन्न होने के कारण ये डरपोक थे और आश्रम के बाहर कभी भी न जाते थे। अत: इन्हें दुनियां का ज्ञान अत्यल्प था। इसी बीच अंग देश में अवर्षण हुआ। तपस्वियों ने अंगेश्वर लोमपाद अथवा रोमपाद को बताया कि ऋष्यग के राज्य में पधारने पर वर्षा होगी। राजा ने कुछ वारांगनाओं को ऋष्यग को ले आने की आज्ञा दी। वारांगनाएँ इन्हें बहकाकर जलमार्ग से अंग राज्य में ले आईं तो जोर से वर्षा हुई। राजा ने अपनी दत्तक पुत्री शांता से इनका विवाह कर दिया। शांता अयोध्यानरेश दशरथ की औरस पुत्री थी। पश्चात्‌ दशरथ ने अपने पुत्रकामेष्टि यज्ञ में रोमपाद की मध्यस्थता को यज्ञ का अध्वर्यु बनाया और उन्हें रामादि चार पुत्रों की प्राप्ति हुई। विज्ञानेश्वर, हेमाद्रि, हलायुध आदि ने इनके द्वारा रचित ऋष्यग स्मृति का उल्लेख किया है। ऋष्यग संहिता नामक ग्रंथ के रचयिता भी ये ही बताए जाते हैं। आचार, अशौच, श्राद्ध तथा प्रायश्चित्त आदि के बारे में इनके विचार मिताक्षरा, अपरार्क, स्मृतिचंद्रिका आदि ग्रंथों में मिल जाते हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ