महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 105 श्लोक 13-19

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०७:१५, २१ जुलाई २०१५ का अवतरण ('==पन्चाधिकशततम (105) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)=...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

पन्चाधिकशततम (105) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: पन्चाधिकशततम अध्याय: श्लोक 13-19 का हिन्दी अनुवाद

बड़ा भाई अच्छा काम करने वाला हो या बुरा, छोटे को उसका अपमान नहीं करना चाहिये। इसी तरह यदि स्त्री अथवा छोटे भाई बुरे रास्ते पर चल रहे हों तो श्रेष्ठ पुरूष को जिस तरह से भी उनकी भलाई हो, वही उपाय करना चाहिये। धर्मज्ञ पुरूषों का कहना है कि धर्म ही कल्याण का सर्वश्रेष्ठ साधन है । गौरव में दस आचार्यों से बढ़कर उपाध्याय, दस उपाध्यायों से बढकर पिता और दस पिताओं से बढ़कर माता है। माता अपने गौरव से समूची पृथ्वी को भी तिरस्कृत कर देती है। अतः माता के समान दूसरा कोई गुरू नहीं है । भरतन्नदन। माता का गौरव सबसे बढ़कर है, इसलिये लोग उसका विशेष आदर करते हैं। भारत। पिता की मृत्यु हो जाने पर बड़े भाई को पिता के समान समझना चाहिये । बड़े भाई को उचित है कि वह अपने छोटे भाइयों को जीविका प्रदान करे तथा उनका पालन-पोषण करे। छोटे भाइयों का भी कर्तव्य है कि वे सब-के-सब बड़े भाई के सामने नतमस्तक हों और उसकी इच्छा के अनुसार चलें। बड़े भाई को ही पिता मानकर उनके आश्रय में जीवन व्यतीत करें । भारत। पिता और माता केवल शरीर की सृष्टि करते हैं, किंतु आचार्य के उपदेश से जो ज्ञानरूप नवीन जीवन प्राप्त होता है, वह सत्य, अजर और अमर है। भरतश्रेष्ठ। बड़ी बहिन भी माता के समान है। इसी तरह बड़े भाई की पत्नि तथा बचपन में जिसका दूध पिया गया हो, वह धाय भी माता के समान है।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।