महाभारत आदि पर्व अध्याय 139 श्लोक 42-58

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एकोनचत्‍वारिंशदधिकशततम (139) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: >एकोनचत्‍वारिंशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 42-58 का हिन्दी अनुवाद

यह बात सुनकर चूहा अत्‍यन्‍त भयभीत होकर बिल में घुस गया। राजन् ! तत्‍पश्चात् भेड़िया भी स्नान करके वहां आ पहुंचा। उसके आने पर गीदड़ ने इस प्रकार कहा- ‘भेड़िया भाई ! आज बाघ तुम पर बहुत नाराज हो गया है, अत: तुम्‍हारी खैर नहीं; वह अभी बाघिन को साथ लेकर यहां आ रहा है। इसलिये अब तुम्‍हे जो उचित जान पड़े, वह करो।’ गीदड़ के इस प्रकार कहने पर कच्‍चा मांस खाने वाला वह भेड़िया दुम दबाकर भाग गया। इतने में ही नेवला भी आ पहुंचा । महाराज ! उस नेवले से गीदड़ ने वन में इस प्रकार कहा- ‘ओ नेवले ! मैंने अपने बाहुबल का आश्रय ले उन सबको परास्‍त कर दिया है वे हार मानकर अन्‍यत्र चले गये। यदि तुझमें हिम्‍मत हो तो पहले मुझसे लड़ ले; फि‍र इच्‍छानुसार मांस खाना’। नेवले ने कहा- जब बाघ, भेड़िया और बुद्धिमान् चूहा- ये सभी वीर तुमसे परास्‍त हो गये, तब तो तुम वीर शिरोमणि हो। मैं भी तुम्‍हारे साथ युद्ध नहीं कर सकता। यों कहकर नेवला भी चला गया । कणिक कहते है- इस प्रकार उन सबके चले जाने पर अपनी युक्ति में सफल हो जाने के कारण गीदड़ का हृदय हर्ष से खिल उठा। तब उसने अकेले ही वह मांस खाया । राजन् ! ऐसा ही अचारण करने वाला राजा सदा सुख से रहता और उन्नति को प्राप्त होता है। डरपोक को भय दिखाकर फोड़ ले तथा जो अपने से शूरवीर हो, उसे हाथ जोड़कर वश में करे । लोभी धन देकर तथा बराबर और कमजोर को पराक्रम से वश में करे। राजन् ! इस प्रकार आपसे नीतियुक्त बर्ताव का वर्णन किया गया। अब दूसरी बातें सुनिये । पुत्र, मित्र, भाई, पिता अथवा गुरु- कोई भी क्‍यों न हो, जो शत्रु के स्‍थान पर आ जायं- शत्रुवत् बर्ताव करने लगें, तो उन्‍हें वैभव चाहने वाला राजा अवश्‍य मार डाले । सौगंध खाकर, धन अथवा जहर देकर या धोखे से भी शत्रु को मार डाले। किसी तरह भी उसकी उपेक्षा न करे। यदि दोनों राजा समान रूप से विजय के लिये यत्नशील हों और उनकी जीत संदेहास्‍पद जान पड़ती हो तो उनमें भी जो मेरे इस नीतिपूर्ण कथन पर श्रद्धा-विश्वास रखता है, वही उन्नति को प्राप्त होता है। यदि गुरु भी घमंड में भरकर कर्तव्‍य और अकर्तव्‍य को न जानता हो तथा बुरे मार्ग पर चलता हो तो उसे भी दण्‍ड देना उचित माना जाता है । मन में क्रोध भरा हो, तो भी ऊपर से क्रोध शून्‍य बना रहे और मुसकरा कर बातचीत करे। कभी क्रोध मेंआकर किसी दूसरे का तिरस्‍कार न करे। भारत ! शत्रु पर प्रहार करने से पहले और प्रहार करते समय भी उससे मीठे वचन ही बोले। शत्रु को मारकर भी उसके प्रति दया दिखाये, उसके लिये शोक करे तथा रोये और आंसू बहाये । शत्रु को समझा-बुझाकर, धर्म बताकर, धन देकर और सद्व्‍यहार करके आश्वासन दे- अपने प्रति उसके मन में विश्वास उत्‍पन्न करे; फि‍र समय आने पर ज्‍यों ही वह मार्ग से विचलित हो, त्‍यों ही उस पर प्रहार करे । धर्म के आचरण को ढ़ोग करने से घोरअपराध करने वाले का दोष भी उसी प्रकार ढक जाता है, जैसे पर्वत काले मेघों की घटा से ढक जाता है


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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