महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 119 श्लोक 62-83

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०९:३८, २५ अगस्त २०१५ का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

एकोनविशत्यधिकशततम (119) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनविशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 62-83 का हिन्दी अनुवाद

‘ये मेरे प्राणों मेंव्यथा उत्पन्न कर देते हैं। अहितकारी यमदूतों के समान मेरे प्राणोंका विनाश सा कर रहे हैं।ये शिखण्डी के बाण कदापि नहीं हो सकते। ‘इनका स्पर्श गदा और परिघ की चोट के समान प्रतीत होता है, ये क्रोध में भरे हुए प्रचण्ड विषवाले सर्पो के समान डस लेते हैं। ये शिखण्डी के बाण नहीं हैं। ‘ये बाण मेरे मर्म स्थानों में प्रवेश कर रहे हैं, अतः शिखण्डी के नहीं हैं। ये अर्जुन के बाण हैं। ये शिखण्डी के बाण नहीं हैं। जैसे केंकडी के बच्‍च्‍ो अपनी माता का उदर विदीर्णकरके बाहर निकलते हैं, उसी प्रकार ये बाण मेरे सम्पूर्ण अंगोंको छेदे डालते हैं। ‘गाण्डीवधारी वीर वीर कपिध्वज अर्जुन को छोड़कर अन्य सभी नरेशअपने प्रहारों द्वारा मुझे इतनी पीड़ा नहीं दे सकते।
भारत! ऐसा कहते हुए शान्तनुनन्दन भीष्म ने पाण्डवों की ओर इस प्रकार देखा, मानो उन्हें भस्म कर डालेंगे। फिर उन्होनें अर्जुन पर एक शक्ति चलायी, परंतु अर्जुन ने तीन बाणों द्वारा उनकी उस शक्ति को तीन जगह से काट गिराया। भरतनन्दन! समस्त कौरवों वीरों के देखते-देखते गंगानन्दन भीष्म ने मृत्यु अथवा विजय इन दोनों में से किसी एककावरण करने केलिये अपने हाथ में सुवर्णभूषित ढाल और तलवार ले ली। परंतु वे अभी अपने रथ से उतर भी नहीं पाये थे कि अर्जुन ने अपने बाणों द्वारा उनकी ढाल के सौ टुकडे़ कर दिये, यह एक अदभुत सी बात हुई। इसी समय राजा युधिष्ठिर ने अपने सैनिकों को आज्ञा दी- ‘वीरों! गंगानन्दन भीष्म पर आक्रमण करो। उनकी ओर से तुम्हारे मन में तनिक भी भय नहीं होना चाहिये’। तदनन्तर वे पाण्डव सैनिक सब ओर से तोमर, प्रास, बाणसमुदाय, पटिष्य, खड़ग, तीखें नाराच, वासदन्त तथा भल्लों का प्रहार करते हुए एकमात्र भीष्म की ओर दौड़े। तदनन्तर पाण्डवों की सेना मेंघोर सिंहनाद हुआ।
इसी प्रकार भीष्म कीविजय चाहने वाले आपके पुत्र भी उस समय गर्जना करने लगे। आपके सैनिक एकमात्र भीष्म की रक्षा और सिंहनाद करने लगे। वहां आपके योद्धाओं का शत्रुओं के साथ भयंकर युद्ध हुआ। राजेन्द! दसवें दिन भीष्म और अर्जुन के संघर्ष में दो घड़ी तक ऐसा दृष्य दिखायी दिया, मानों समुद्र में गंगाजी के गिरते समय उनकेजल में भारी भंवर उठ रहीं हो। उस समय एक दूसरे को मारने वाले युद्ध परायण सैनिकों के रक्त से रंजित हो वहां की सारी पृथ्वी भयानक हो गयी थी। यहां ऊंची और नीची भूमिका भी कुछज्ञान नहींहो पाता था, दसवें दिन के उस युद्ध में अपने मर्मस्थानों के विदीर्ण होते रहने पर भी भीष्मजी दस हजार योद्धाओं को मारकर वहां खड़े हुए थे। उस समय सेना केअग्रभाग में खडे हुए धनुर्धर अर्जुन ने कौरव सेना के भीतर प्रवेश करके आपके सैनिकों को खदेड़ना आरम्भ किया। पाण्डवों तथा अन्य राजाओं ने वज्रके समान बाणों द्वारा आपकी सेनाओं को बलपूर्वक पीड़ितकिया। वहां हमने पाण्डवों का यह अदभुत पराक्रम देखा कि उन्होंने अपने बाणोंकी वर्षा से भीष्म का अनुगमन करने वाले समस्त योद्धाओं को मार भगाया। राजन! उस समय श्‍वेतवाहन कुन्तीपुत्र धनंजय से डरकर उनके तीखे अस्त्र-शस्त्रोंसे पीड़ितहो हमसभी लोग रणभूमि से भागने लगे थे। सौवीर, कितव,प्राच्य, प्रतीच्य, उदीच्य, मालव, अभीषाह, शूरसेन, शिवि, वसाति, षाल्वाश्रय, त्रिगर्त,अम्बष्ठ और केकय- इन सभी देशोंके ये सारे महामनस्वी वीर बाणोंसे घायल और घावोंसे पीड़ितहोने पर भी अर्जुन के साथ युद्धकरने वाले भीष्म को संग्राम में छोड़ न सके।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।