महाभारत वन पर्व अध्याय 190 श्लोक 47-73

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नवत्यधिकशततम (190) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या पर्व)

महाभारत: वन पर्व: नवत्यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 47-73 का हिन्दी अनुवाद

राजन्! उस समय कोई किसीका उपदेश नहीं सुनेगा और न कोई किसीका गुरू ही होगा। सारा जगत् अज्ञानमय अन्धकारसे आच्छादित हो जायगा। उस समय युगान्तकाल उपस्थित होनेपर लोगोंकी आयु अधिक-से-अधिक सोलह वर्षकी होगी, उसके बाद वे प्राणत्याग कर देंगे। पांचवें या छठे वर्षमें स्त्रियां बच्चे पैदा करने लगेंगी और सात-आठ वर्षके पुरूष संतानोत्पादनमें प्रवृत हो जायंगे। नृपश्रेष्ठ! युगान्तकाल आनेपर स्त्री अपने पतिसे और पति अपनी स्त्रीसे संतुष्ट नहीं होंगे। कलियुगके अन्तभागमें लोगोंके पास धन थोड़ा रहेगा और लोग दिखावेके लिये साधुवेष धारण करेंगे। हिंसाका जोर बढ़ेगा और कोई किसीको कुछ देनेवाला नहीं रहेगा। युगक्षयकालमें सभी देशोंके लोग अन्न बेचेंगे। ब्राह्मण वेदविक्रय करेंगे और स्त्रियां वेश्यावृत्ति अपना लेंगी। युगान्तरकालके मनुष्य म्लेच्छों-जैसे आचारवाले और सर्वभक्षी यानी अभक्ष्यका भी लक्षण करनेवाले हो जायंगे। वे प्रत्येक कर्ममें अपनी कू्ररताका परिचय देंगे, इसमें संशय नहीं हैं। भरतश्रेष्ठ! युगान्तरकालमें धनके लिये क्रय-विक्रयके समय सभी सबको ठगेंगे। क्रियाके तत्वको न जानकर भी लोग उसे करनेमें प्रवृत्त होंगे। युगान्तरकालके सभी मानव स्वेच्छाचारी हो जायंगे। सभी स्वभावतः कू्रर और एक दूसरेपर मिथ्या कलंक लगानेवाले होंगे। युगान्तकाल उपस्थित होनेपर सब लोग बगीचों और वृक्षोंको कटवा देंगे और ऐसा करते समय उनके मनमें पीड़ा नहीं होगी। प्रत्येक मनुष्यके जीवनधारणमें भी शंका हो जायगी। अर्थात् प्रत्येक मनुष्यका जीवन धारण करना कठिन हो जायगा। राजन्! सब लोग लोभके वशीभूत होंगे और ब्राह्मणोंका धन उपभोग करनेका जिनका स्वभाव पड़ गया हैं, वे धनके लिये ब्राह्मणोंको मार भी ड़ालेंगे। शूद्रोंके सताये हुए ब्राह्मण भयसे पीडि़त हो हाहाकार करने लगेंगे और अपने लिये कोई रक्षक न मिलनेके कारण सारी पृथ्वीपर निश्चय ही भटकते फिरेंगे। जब दूसरोंके जीवनका विनाश करनेवाले कू्रर, भयंकर तथा जीवहिंसक मनुष्य पैदा होने लगें, तब समझ लेना चाहिये कि युगान्तकाल उपस्थित हो गया। कुरूकुलतिलक युधिष्ठिर! अत्याचारियोंसे ड़रे हुए ब्राह्मण इधर-उधर भागकर नदियों, पर्वतों तथा दुर्गम स्थानोंका आश्रय लेंगे। राजन्! श्रेष्ठ ब्राह्मण भी लुटेरोंसे पीडि़त होकर कौओंकी तरह कांव-कांव करते फिरेंगे। दुष्ट राजाओंके लगाये हुए करोंके भारसे सदा पीडि़त होनेके कारण वे धैर्य छोड़कर चल देंगे और शूद्रोंकी सेवा-शुश्रूषामें लगे रहकर धर्मविरूद्ध कार्य करेंगे। भूपाल! भयंकर कलियुगके अन्तमें जगत्की यही दशा होगी। शूद्र धर्मोंपदेश करेंगे ओर ब्राह्मणलोग उनकी सेवामें रहकर उसे सुनेंगे तथा उसीको प्रामाणिक मानकर उसका पालन करेंगे। समस्त लोकका व्यवहार विपरीत और उलट-पुलट हो जायगा। उंच नीच और नीच-उंच हो जायंगे। लोग हड्डी जड़ी हुई दीवारोंकी तो पूजा करेंगे और देवविग्रहोंको त्याग देंगे। युगान्तरकालमें शूद्र द्विजातियोंकी सेवा नहीं करेंगे। वह समय आनेपर महर्षियोंके आश्रमोंमें, ब्राह्मणोंके घरोंमें, देवस्थानोंमें, चौत्यवृक्षोंके आस-पास और नागालयोंमें जो भूमि होगी, उसपर हड्डी जड़ी हुई दीवारोंका चिह्न तो उपलब्ध होगा; परंतु देवमन्दिर उस भूमिकी शोभा नहीं बढ़ायेंगे। यह सब युगान्तका लक्षण समझना चाहिये। जब सब मानव सदा भयंकर स्वभाववाले, धर्महीन, मांसखोर और शराबी हो जायंगे, उस समय युगका संहार होगा। महाराज! जब फूल-में-फूल फल-में-फल लगने लगेगा, उस समय युगका संहार होगा। युगान्तकालमें मेघ असमयमें ही वर्षा करेंगे। मनुष्योंकी सारी क्रियाएं क्रमसे विपरीत होंगी। शूद्र ब्राह्मणोंके साथ विरोध करेंगे। सारी पृथ्वी थोड़े ही समयमें म्लेच्छोंसे भर जायगी। ब्राह्मणलोग करोंके भारसे भयभीत होकर दसों दिशाओंकी शरण लेंगे। सारे जनपद एक-जैसे आचार और वेशभूषा बना लेंगे। लोग बेगार लेनेवालों और कर लेनेवालोंसे पीडि़त हो एकान्त आश्रमोंमें चले जायंगे और फल-मूल खाकर जीवननिर्वाह करेंगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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