अंत:पुर

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लेख सूचना
अंत:पुर
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 52
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1973 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक भगवतीशरण उपाध्याय।

अंत:पुर प्राचीन काल में हिंदू राजाओं का रनिवास अंतपुर कहलाता था। यही मुगलों के जमाने में जनानखाना या हरम कहलाया। अंतपुर के अन्य नाम भी थे जो साधारणत उसके पर्याय की तरह प्रयुक्त होते थे, यथा- शुद्धांत और अवरोध। शुद्धांत शब्द से प्रकट है कि राजप्रासाद के उस भाग को, जिसमें नारियाँ रहती थीं, बड़ा पवित्र माना जाता था। दांपत्य वातावरण को आचरण की दृष्टि से नितांत शुद्ध रखने की परंपरा ने ही निसंदेह अंतपुर को यह विशिष्ट संज्ञा दी थी। उसके शुद्धांत नाम को सार्थक करने के लिए महल के उस भाग को बाहरी लोगों के प्रवेश से मुक्त रखते थे। उस भाग के अवरुद्ध होने के कारण अंतपुर का यह तीसरा नाम अवरोध पड़ा था। अवरोध के अनेक रक्षक होते थे जिन्हें प्रतीहारी या प्रतीहाररक्षक कहते थे। नाटकों में राजा के अवरोध का अधिकारी अधिकतर वृद्ध ही होता था जिससे अंतपुर शुद्धांत बना रहे और उसकी पवित्रता में कोई विकार न आने पाए। मुगल और चीनी सम्राटों के हरम या अंतपुर में मर्द नहीं जा सकते थे और उनकी जगह खोजे या क्लीब रखे जाते थे। इन खोजों की शक्ति चीनी महलों में इतनी बढ़ गई थी कि वे रोमन सम्राटों के प्रीतोरियन शरीर रक्षकों और तुर्की जनीसरी शरीर रक्षकों की तरह ही चीनी सम्राटों को बनाने-बिगाड़ने में समर्थ हो गए थे। वे चीनी महलों के सारे षड्यंत्रों के मूल में होते थे। चीनी सम्राटों के समूचे महल को अवरोध अथवा अवरुद्ध नगर कहते थे और उसमें रात में सिवा सम्राट के कोई पुरुष नहीं सो सकता था। क्लीबों की सत्ता गुप्त राजप्रासादों में भी पर्याप्त थी।

जैसा संस्कृत नाटकों से प्रकट होता है, राजप्रासाद के अंतपुर वाले भाग में एक नजरबाग भी होता था जिसे प्रमदवन कहते थे और जहाँ राजा अपनी अनेक पत्नियों के साथ विहार करता था। संगीतशाला, चित्रशाला आदि भी वहाँ होती थीं जहाँ राजकुल की नारियाँ ललित कलाएँ सीखती थीं। वहीं उनके लिए क्रीड़ा स्थल भी होता था। संस्कृत नाटकों में वर्णित अधिकतर प्रणय षड्यंत्र अंतपुर में ही चलते थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

सं. ग्रं.- शार्ड्गधरपद्धति, उपवन विनोद; भगवत शरण उपाध्याय इंडिया इन कालिदास।