अन्नादुरै, कांजीवरम्‌ नटराजन

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लेख सूचना
अन्नादुरै, कांजीवरम्‌ नटराजन
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 130
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1973 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक लाल बहादुर पांडेय।

अन्नादुरै, कांजीवरम्‌ नटराजन तमिलनाडु के लोकप्रिय नेता, अपने प्रदेश के प्रथम गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री एवं द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम दल के संस्थापक थे। इनका जन्म 15 सितंबर, 1909 को कांजीवरम्‌ के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था मद्रास विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात्‌ उन्होंने अपना जीवन एक शिक्षक के रूप में प्रारंभ किया, पर शीघ्र ही ये पत्रकारिता के क्षेत्र में आ गए। तमिल जागरण में इनके निबंधों ने महत्वपूर्ण योगदान किया। श्री अन्नादुरै ने 'जस्टिस' नामक तमिल पत्र के सहायक संपादक एवं बाद में 'विदुघलाई' नामक पत्र के संपादक के पद पर कार्य किया। इन्होंने सन्‌ 1942 में तमिल साप्ताहिक 'द्रविड़नाड़' सन्‌ 1957 में अंग्रेजी साप्ताहिक 'होमलैंड' तथा एक वर्ष पश्चात्‌ 'होमरूल' नामक पत्रिका निकाली थी। ये हिंदी के प्रबल विरोधी तथा तमिल भाषा और साहित्य के पुनरुत्थानकर्ता थे।

श्री अन्नादुरै प्रारंभ में द्रविड़ कड़गम के सदस्य थे, पर अपने राजनीतिक गुरु से असंतुष्ट होने के कारण इन्होंने सन्‌ 1949 में अपने सहयोगियों के साथ द्रविड़ कड़गम से संबंध विच्छेद कर लिया और द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम की स्थापना की। सन्‌ 1957 में विधानसभा का सदस्य निर्वाचित होने के पश्चात्‌ अन्नादुरै सक्रिय राजनीति में आए। इन्होंने द्रविड़ों के लिए पृथक्‌ 'द्रविड़स्तान' का नारा दिया और प्रदेश से कांग्रेस शासन को समाप्त करने का व्रात लिया। द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम ने इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अनेक आंदोलन किए। दस वर्ष पश्चात्‌ राज्य की बागडोर अन्नदुरै के हाथ में आ गई। यद्यपि इनकी असामयिक मूत्यु ने इन्हें मुख्य मंत्री के रूप में दो वर्ष से भी कम अवधि तक प्रदेशवसियों की सेवा करने का ही अवसर दिया, तथापि यह अल्पावधि भी अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण रही है।

ये प्रतिभासंपन्न राजनेता, कुशल प्रशासक एवं सिद्धहस्त समाजशिल्पी थे। जनतांत्रिक मूल्यों की प्रतिष्ठापना और पददलितों के उत्थान के लिए ये जीवन पर्यंत संघर्षरत रहे। इनके सबल नेतृत्व में कड़गम ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। ये जीवनपर्यंत दल के महासचिव बने रहे। दल पर अपने असाधारण प्रभाव के कारण ही ये दल की पृथक्तावादी नीतियों को राष्ट्रीय अखंडता के हित में रचनात्मक मोड़ देने में सफल रहे। सन्‌ 1962 में चीनी आक्रमण के समय श्री अन्नादुरै ने कड़गम से सदस्यों को राष्ट्रीय सुरक्षा में हर संभव योगदान करने के लिए प्रोत्साहित किया। ये दल के अतिवादियों को शनै: शनै: सहिष्णुता के मार्ग पर ला रहे थे। प्रारंभ में कड़गम में उत्तर भारतीय एवं ब्राह्मणों का प्रवेश निषिद्ध था, पर अन्नाकी प्रेरणा से द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम के सिद्धांतों में विश्वास रखनेवालों के लिए दल की सदस्यता का द्वार खुल गया। संविधान की होली खेलने की योजना बनानेवालों के नेता ने तमिलनाडु का मुख्यमंत्रित्व ग्रहण करते समय संविधान में पूर्ण निष्ठा व्यक्त की। कड़गम के सत्तारूढ़ होने पर केंद्र से विरोध के संबंध में अनेक आशंकाएँ व्यक्त की गई थीं, पर श्री अन्नादुरै ने किसी प्रकार का संवैधानिक संकट नहीं उत्पन्न होने दिया। उनका हिंदीविरोध अवश्य चिंत्य था, लेकिन जिस प्रकार उनके दृष्टिकोण क्रमिक परिवर्तन आ रहा था और क्षेत्रीयता के संकुचित मोह का स्थान राष्ट्रीयता की भावना लेती जा रही थी, उससे यह अनुमान हो चला था कि भविष्य में उनका हिंदीद्रोह भी समाप्त हो जाएगा और तमिलनाडु के विद्यालयों में त्रिभाषा सिद्धांत के अनुसार हिंदी की पढ़ाई प्रारंभ हो जाएगी।

श्री अन्नादूरै राजकाज में क्षेत्रीय भाषा के प्रयोग के पक्षपाती थे। इन्होंने अपने प्रदेश में तमिल के प्रयोग को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया। मद्रास राज्य का नामकरण तमिलनाडु करने का श्रेय भी इन्हीं को है। तमिलनाडु का मुख्यमंत्रित्व ग्रहण करने के पूर्व राज्यसभा के सदस्य के रूप में भी इन्होंने ख्याति प्राप्त की थी। सन्‌ 1967 के महानिर्वाचन में तमिलनाडु में द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम की अभूतपूर्व सफलता ने अन्ना को अपने दल को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठापित करने की प्रेरणा प्रदान की थी। यदि असमय ही ये कालकवलित न हो गए होते तो संभवत: भविष्य में द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम का स्थान भारत मुन्नेत्र कड़गम ने ले लिया होता। कैंसर के असाध्य रोग से पीड़ित अन्नादुरै की इहलीला 3 फरवरी 1969 को समाप्त हो गई।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ