आदिपाप

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लेख सूचना
आदिपाप
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 369
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक रेवरेंड कामिल बुल्के

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आदिपाप ईसाई धर्म का एक मूलभूत सिद्धांत है कि सब मनुष्य रहस्यात्मक रूप से प्रथम मनुष्य आदम के पाप के भागी बनकर 'ओरिजिनल सिन' अर्थात्‌ आदिपाप की दशा में जन्म लेते हैं; जिससे वे अपने ही प्रयत्न द्वारा मुक्ति प्राप्त करने में असमर्थ हैं। ईसा ने आदम के उस पाप का तथा मानव जाति के अन्य सब पापों का प्रायश्चित करके मुक्ति का द्वार खोल दिया।

बाइबिल के प्रथम ग्रंथ में इसका वर्णन किया गया है। आदम ने ईश्वर के आदेश का उल्लंघन किया और फलस्वरूप ईश्वर की मित्रता खो बैठा। इसी कारण मानव जाति की दुर्गति हुई और संसार में मृत्यु, दु:ख और विषयवासना का प्रवेश हुआ।[१] फिर भी यहूदी धर्म में आदिपाप की शिक्षा नहीं मिलती। इसका सर्वप्रथम प्रतािपादन बाइबिल के उत्तरार्ध में हुआ है।[२] आदिपाप का तत्व इसमें है कि आदम के पाप के कारण समस्त मानव जाति ईश्वर की मित्रता से वंचित हुई थी। इसका परिणाम यह हुआ कि मुनष्य मृत्यु, दु:ख और विषयवासना का शिकार बन गए, यद्यपि कैथोलिक गिरजा उन लोगों का विरोध करता है जो लूथर, कैलविन आदि के समान सिखलाते हैं कि आदिपाप के फलस्वरूप मनुष्य का स्वभाव पूर्ण रूप से दूषित हुआ है।[३]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. द्र. 'आदम'
  2. द्र. रोमियों के नाम संत पौल्स कापत्र, अध्याय 5
  3. सं.ग्रं.-जे. फ्यूडोर्फ़र : एर्बसुंडे यूनिट एर्ब्तोद फीम एपोस्टल पौल्स, मंस्टर, आइ.डब्ल्यू., 1927।