आधर्षण
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आधर्षण
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 372 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्री कृष्ण अग्रवाल |
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आधर्षण अटेंडर; अंग्रेजी विधि प्रणाली में सामान्य कानून के अंतर्गत, मृत्यु दंडोदश के पश्चात् जब यह प्रत्यक्ष हो जाता था कि अपराधी जीवित रहने योग्य नहीं है तब उसको (अटेंड) कहा जाता था और इस कार्यवाही को अटेंडर कहते थे। अटेंडर का अर्थ है आर्धषण। आर्धषण की कार्यवाही मृत्युदंडादेश के पश्चात् अथवा मृत्युदंडादेशतुल्य परिस्थिति में हुआ करती थी। निर्णय के बिना, केवल दोषसिद्धि के आधार पर, आधार्षण नहीं हो सकता था।
आधर्षण के परिणामस्वरूप अपराधी की समस्त चल या अचल संपति का राज्य द्वारा अपहरण हो जाता था; वह संपति के उत्तराधिकार से स्वयं तो वंचित हो ही जाता था, उसके उत्तराधिकारी भी उसकी संपति नहीं पा सकते थे। इसको रक्तभ्रष्टता कहते थे। परंतु सन् 1870 के 'फॉरफीचर ऐक्ट' के अंतर्गत आधर्षण अथवा संपतिअपहार या रक्तभ्रष्टता वर्जित हो गई और अब अटेंडर सिद्धांत का कोई विशेष महत्व नहीं रहा।
विल्स ऑव अटेंडर - आधर्षण विधेयक द्वारा संसद् न्यायप्रशासन का कार्य करता था। कार्यवाही अन्य विधेयको के समान ही होती थी। अतंर इतना था कि इसमें वे पक्ष, जिनके विरुद्ध विधेयक होता था, संसद् के समक्ष वकील द्वारा उपस्थ्ति हो सकते तथा साक्ष्य प्रस्तुत कर सकते थे। प्रथम आधर्षण विधेयक सन् 1459 ई. में परित हुआ था और अंतिम विधेयक सन् 1798 ई. में।
टीका टिप्पणी और संदर्भ