कैरोलाइन द्वीपसमूह
कैरोलाइन द्वीपसमूह
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 143 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्तु |
कैरोलाइन द्वीपसमूह (1901-1965 ई.) पंजाब के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ और नेता। इनका जन्म अमृतसर जिले के कैरो नामक ग्रामक ग्राम में हुआ था। खालसा कालेज से बी. ए. कर अमरीका गए और वहाँ के मिशिगन विश्वविद्यालय से एम. ए. किया; और वहीं वे भारत की राजनीति की ओर अग्रसर हुए। भारतीय, स्वतंत्रता के लिये अमरीका में गदर पार्टी के नाम से जो संस्था स्थापित हुई थी, उसके कार्यों में आप सक्रिय रूप से भाग लेने लगे।
भारत वापस आने पर 1926 ई. में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सम्मिलित हुए और तब से स्वतंत्रता प्राप्त होने तक कांग्रेस के आंदोलनों में निरंतर भाग लेते रहे और जेल गए।
स्वाधीनता के पश्चात आप विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए और अंततोगत्वा वे अपने प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। जिन दिनों से मुख्यमंत्री बने। जिन दिनों से मुख्यमंत्री थे उन दिनों पंजाब की राजनीतिक स्थिति अत्यंत विस्फोटक थी। उन दिनों मास्टर तारासिंह के नेतृत्व में स्वतंत्र पंजाब जोरों से चल रहा था। प्रांत मे एक प्रकार की अराजकता मची हुई थी। कैरो ने अपने सुदृढ़ व्यक्तित्व और राजनीतिक दूरदर्शिता से आंदोलन का सामना किया और उनकी कू टनीति आंदोलन के मुख्य स्तंभ मास्टर तारा सिंह और संत फतह सिंह में फूट उत्पन्न करने में सफल हुई तथा आंदोलन छिन्न भिन्न हो गया। वे एक स्थिर और प्रभावशाली शासक के रूप में उभरकर सामने आए। उन्होंने अपने प्रदेश की आर्थिक अवस्था को विकसित करने का सर्वागीण प्रयास किया। उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में पंजाब में अभूतपूर्व उन्नति की। 1962 ई. में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो कैरो ने अपने प्रदेश से जन और धन से जैसी सहायता की वह अपने आप में एक इतिहास है।
इस प्रकार की महत्ता के बावजूद उनका व्यक्तित्व अपनी मर्यादा बनाए न रख सका। वैयक्तिक पक्षपात और भ्रष्टाचार के आरोप उनपर लगे और उन्हें 1964 ई. में मुख्य मंत्री पद का परित्याग करना पड़ा। उसके कुछ ही दिनों बाद 1965 के आरंभ में एक दिन जब वह मोटर कार द्वारा दिल्ली से वापस लौट रहे थे, मार्ग में कुछ लोगों ने उन्हें गोली मार दी और तत्काल उनकी मृत्यु हो गई।
टीका टिप्पणी और संदर्भ