कोको
कोको
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 153 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | सावित्री जायसवाल |
कोकाे उस चूर्ण को कहते हैं जो ककाओ वृक्ष के बीज से बनाया जाता है और पेय के रूप में व्यवहार के रूप में आता है। चॉकलेट भी इसके बीजों से बनते हैं। इस वृक्ष का लैटिन नाम थीओब्रोमा ककाओ (Theobroma cacao) है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा तीनों उपलब्ध हैं। यह बहुत पौष्टिक और सुस्वादु भी है। कोको में थिओब्रोमीन ऐलकालयड होता है, जिससे यह कॉफी (Coffee) की भाँति उत्तेजक है। इसमें थोड़ी मान्ना में कैफिइन (Caffeine) भी पाया जाता है। कोको की भुनी हुई गिरी की औसत संरचना निम्नलिखित है : वसा 50 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट 23 प्रतिशत प्रोटीन 17 प्रतिशत थियोब्रोमीन 1.5 प्रतिशत या कम
जल 5 प्रतिशत
खनिज 3.5 प्रतिशत
इसमें कैलिसियम, लोहा, मैगनीशियम, पोटैसियम और सोडिमय धातुओं के लवण रहते हैं। भूनने के समय इसमें वाष्पशील सुगंधित द्रव्य तैयार होता है।
वनस्पति विज्ञान की दृष्टि में--------ककाओ मूलत: मेक्सिको, केंद्रीय अमरीका तथा दक्षिण अमरीका के समुद्रतट का वृक्ष है। प्राकृतिक अवस्था में यह 50 फु ट तक ऊँचा हो जाता है, परंतु फल तोड़ने की सुविधा के लिये वृक्ष को काट छाटँकर 15-20 फुट तक ही बढ़ने दिया जाता है। आरंभ में इसकी पत्तियाँ ललछौंह रहती हैं, पीछे हरी हो जाती है और फिर सदा हरी बनी रहती है। पत्तियाँ पतली, चमकीली, अंडाकार और एक फुट तक लंबी होती है। फूल बहुत छोटे, हलके गुलाबी रंग के होते हैं, जो वृक्ष के तने और शाखाओं पर लगते हैं, टहनियों पर नहीं। फल छह से नौ इंच तक लंबे और तीन से चार इंच तक चौड़े होते हैं जो चार महीने में पकते हैं। बाहरी छिलका लकड़ी की भाँति होता है, इसका बाहरी रूप चमड़े के समान लगता है। लाल फूल धीरे धीरे नारंगी और फिर भूरे रंग का हो जाता है। फल पहले हरा रहता है और फिर पीला हो जाता है। फलों में 20 से लेकर 50 तक दाने होते हैं। उनके चारों ओर चिपचिपा रस होता है, जो हवा लगने पर सफेद गूदा सा बन जाता है। प्रत्येक बीज का ऊपरी खोल चमड़े की झिल्ली (चर्मपत्र) की भाँति होता है और भीतर दो गिरियाँ होेती हैं।
कृषि-----ककाओ के वृक्ष सूखा, पाला, और तीव्र वायु से नष्ट हो जाते हैं। उनको अच्छी खादवाली मिट्टी चाहिए और आसपास पानी भी एकत्र नहीं होना चाहिए। समुद्रतल से ऊँचाई 2,50 0 फुट से अधिक न हो। बीज पाँच पाँच फुट की दूरीं पर बोए जाते हैं। पौधों को तीन चार वर्ष तक तीव्र धूप तथा सूखे से बचाना पड़ता है। कलिकाओं को चार वर्ष तक नष्ट करते रहते हैं। आठ वर्ष में वृक्ष यौवनावस्था प्राप्त करता है और 10 -12 वर्ष में उसकी उपज अपनी पराकाष्ठा तक पहुँच जाती है। साल भर पुष्प और फल लगते रहते हैं, एक साल में इस प्रकार कई फसलें तैयार होती हैं। यद्यपि पड़े रहने पर ककाओ के वृक्ष 60 -70 वर्ष तक थोड़ा बहुत फल देते रहते हैं, तथापि वृक्ष 25-30 वर्ष के बाद काट दिए जाते हैं।
कोको तैयार करना-----पहले फलों को भारी छुरे से काट लिया जाता है। फिर उन्हें चीर दिया जाता है। तब गुदे में से बीजों को निकाल लिया जाता है। चार पाँच दिनों तक गूदे को फफदने (या सड़ने) दिया जाता है, जिससे बीज भूरे रंग के हो जाते हैं और कड़वाहट के बदले सुगंधि आ जाती है। तदनंतर बीजों को धूप में सुखा लिया जाता है।
सूखे बीजों को मशीन में डालकर ऊपर की खोल और भीतर के कड़े मूलक के तोड़ डालते हैं और गिरी को अलग कर लेते हैं। फिर घूमते हुए ढोलों में गिरी को भूना जाता है, जिससे सुगंध वसा तथा प्रोटीन बढ़ता है और साथ ही कड़वाहट, जो टैनिन के कारण होती है, घटती है। तब उसे मशीन से चूर कर लिया जाता है, जिससे उसका छिलका हट जाता है। तदुपरांत बीजों को पीसा जाता है, जिससे लपसी के समान द्रव्य बन जाता है। ठंढी होने पर यह लपसी जम जाती है। इसे द्रवचालित संपीडकों से दबाकर पर्याप्त तेल निकाल दिया जाता है, जो ककाओ बटर (मक्खन) कहा जाता है। इस खली में केवल लगभग 18 प्रतिशत तेेल रहने दिया जाता है। इस खली के महीन चूर्ण को कोको कहते हैं। खली में चीनी और सुगंध के लिये वैनिला मिलाने पर चॉकलेट बनता है। यदि दुग्धचूर्ण भी मिला दिया जाए तो दुग्ध चॉकलेट (Milk chocolate) बनता है। कुछ देशों में बहुत गाढ़े रंग के कोको का प्रचलन है, जो कोको में थोड़ा क्षार मिलाने से प्राप्त होता है।
संयुक्त राज्य (अमरीका) में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष लगभग ढाई सेर कोको की खपत है। औषधिनिर्माण में ककाओ मक्खन का विशेष उपयोग होता है, क्योंकि यह न शीघ्र चिकटता है और न खट्टा होता है।
पेय बनाना----डेढ़ चम्मच (चाय के चम्मच से नापकर) कोको लें और थोड़े से ठंढे पानी में अच्छी तरह मिलाकर एक रूप कर लें। फिर आधा पाव पानी और आधा पाव दूध (या पाव भर दूध) को खौलाएँ और उसे पानी में मिले कोको में डाल दें और बराबर चलाते रहें। तब इच्छानुसार चीनी छोड़ लें।
टीका टिप्पणी और संदर्भ