कोच राजवंश
कोच राजवंश
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 154 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
कोच राजवंश सोलहवीं शती ई. के आरंभ में विशु (विष्णु) नामक एक पराक्रमी व्यक्ति ने विश्वंसह नाम धारण करके आसाम के कतिपय भाग पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। यही विश्वसिंह कोच वंश के संस्थापक हुए। करतोया नदी से बर्नाद्वीप तक के सारे भूभाग पर उनका अधिकार था। उन्होंने नीलांचल पर्वत पर कामाख्या देवी के मंदिर का पुनरुद्वार कराया और उसी समय से उनकी उपासना प्रचलित हुई।
उन्होंने कूचबिहार को अपनी राजधानी बनाया। 1533 ई. में उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके लड़के मल्लदेव नरनारायण के नाम से राजा बने। वे अपने वंश के सर्वश्रेष्ठ राजा एवं पराक्रमी थे। उन्होंने आहोम और काचारी नरेशों को पराजित किया। मणिपुर और जयंतिया नरेशों ने उनकी अधीनता स्वीकार की। उन्होंने अपने राज्य का सुप्रबंध तो किया ही कला और साहित्य के विकास में भी योगदान दिया। उनके समय में वैष्णव धर्म की विशेष उन्नति हुई।
उनके भाई शुक्लध्वज अत्यंत पराक्रमी थे। उन्होंने राजविस्तार में नरनारायण की काफी सहायता की थी। वे अपने अद्भुत पराक्रम और साहस के कारण चीलराज कह जाते थे और लोग उनके नाम से थरथर काँपते थे। उनके लड़के रघु ने 1581 ई. में विद्रोह कर दिया। तब नरनारायण ने उसे सोनकोई (सोंकोश) नदी के पूर्व का भाग देकर शांत किया और कोच राज्य के दो भाग हो गए।
1584 ई. में नरनारायण की मृत्यु हुई और उनके लड़के लक्ष्मीनारायण राजा हुए; किंतु उनके समय में राज्य निर्बल होने लगा। लक्ष्मीनारायण ने मुगलों की सहायता से रघु के पुत्र परीक्षित को पराजित करने का प्रयास किया, किंतु इस प्रयास में वें अपने राज्य का अधिकांश भाग खो बैठे। पूर्वी भाग पर आहोम राजाओं का तथा पश्चिमी भाग पर मुगलों और भूटिया लोगों का अधिकार हो गया। केवल कूचबिहार के आसपास का भूभाग ही उनके पास रह गया। 18वीं शती में यह राज्य अंग्रेजों की छत्रछाया में आया और तबसे उनके भारत छोड़ने तक उनके अधीन बना रहा।
टीका टिप्पणी और संदर्भ