कोयला खनन
कोयला खनन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 166 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
कोयला खनन (Coal Mining) भारत में कोयले के खनन का प्रारंभ विलियम जोन्स (William Jones) ने दामलिया (रानीगंज) के समीप सन् 1815 में किया। उस समय ईषाएँ (shafts) खोदी गई और उनसे कोयला निकाला गया। जोंस ने बेल पिट रीति (Bell Pit Method) से भी कोयले की कुछ खुदाई कराई थी।
ईषा खुदाई पर लागत कम होने के कारण, और कोयले की माँग बढ़ने के साथ ईषाओं द्वारा सँकरे कोयला स्तरों (narrow seams) का पर्याप्त विकास हुआ। 19वीं शताब्दी के मध्य में समझा जाता था कि अधिक सुरंगों से अधिक कोयला प्राप्त होगा। उन दिनों कोयले को धरातल तक लाने के लिये वे विधियाँ प्रयुक्त होती थीं जो कुएँ से जल खींचने में की जाती हैं, अर्थात् इसमें बैल तथा मानव शक्ति का उपयोग किया जाता था। जब यातायात के साधन बढ़े और सँकरे स्तरों तक पहुँचना संभव हो सकता तब वहन प्रवणकों (Carrying out inclines) का विकास हुआ।
1855-56 ई. में रेलें तथा नदियों में यातायात के साधन उपलब्ध हुए। कोयले की कुछ खानों तक पटरी भी बिछा दी गई तथा कलकत्ता के समीप विद्यावती (Bidyabatti) में ईस्ट इंडियन रेलवे पर कोयले का एक संग्रह केंद्र (coal depot) भी स्थापित किया गया। उस समय बंगाल में खनन कार्य सर्वाधिक वृद्धि पर था। फलत: सन् 1860 में रानीगंज कोयला क्षेत्र से भारत के कुल उत्पादन का 88% कोयला निकला। सन् 1900 में रानीगंज क्षेत्र का उत्पादन घटकर 25.5 लाख टन हो गया जबकि भारत का कुल उत्पादन 65.5 लाख टन था। सन् 1906 तक झरिया क्षेत्र (बिहार) का उत्पादन रानीगंज से बढ़ गया। द्रुत गति से कोयला उद्योग का विकास होने के फलस्वरूप 1914 ई. में उत्पादन 165 लाख टन तक पहुँच गया, जिसमें 91.5 लाख टन झरिया और 50 लाख टन रानीगंज का उत्पादन सम्मिलित है।
कोयला खानों का विद्युतीकरण एवं यंत्रीकरण (Electrification and machanisation of coal mines)----भारत में कोयले की खानों में सर्वप्रथम वाष्प पंप का प्रयोग 19वीं शताब्दी में प्रारंभ में किया गया था किंतु विद्युद्धिकास से ही खानों का विधिपूर्वक यंत्रीकरण संभव हुआ। 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में यंत्रीकरण की गति अत्यंत मंद थी तथा यह स्थिति सन् 1938 तक रही। इसके पश्चात् यंत्रीकरण का वास्तविक विकास प्रारंभ हुआ।
विद्युच्छक्ति वितरण की चरम स्थिति सन् 1952 में आई जब दामोदर घाटी योजना से खानों में प्रयुक्त वुिद्यच्छक्ति में पर्याप्त वृद्धि हुई।
आज भारत की कोयले की सभी बड़ी खानें या तो पूर्ण रूप से विद्युतित हैं अथवा कुंचीयन अभियंत्र (Winding Engine) को छोड़कर अन्य कार्यों में वहाँ विद्युच्छक्ति का उपयोग होता है। कुछ खानों में, जहाँ घटिया कोयला प्राप्य हैं, उसका उपयोग वाष्प बनाने में होता है और इस प्रकार उत्पन्न वाष्प का वहाँ अनेक कार्यों में प्रयोग करते हैं। विद्युच्छक्ति उपभोक्ताओं को पर्याप्त मात्रा में 11 किलोवोल्ट (K.V.) तथा 3.3 किलोवोल्ट पर वितरित की जाती है, उसे वे आवश्यकतानुसार रूपांतरित कर लेते हैं। सामान्य पारषेण (transmission) में मुख्य वितरक बिंदुओं का वोल्टेज साधारणतया 3,300 वोल्टा होता है।
कोयला खानों में आपत्कालीन सेवाएँ (Rescue services in collieries)----जब प्राकृतिक आपत्तियों के कारण साधारण खनन कार्य रुक जाता है, जैसे आग अथवा विस्फोट आदि उस समय आपत्कालीन दल की सेवाओं की आवश्यकता होती है। यह दल खनन सैन्य संस्था (Mining Military Force) के नाम से भी अभिहित किया जा सकता है। इसका मुख्य कार्य उन लोगों की जीवनरक्षा करना है जो इन आपत्कालीन कठिनाइयों से पीड़ित हों। खनिज संपत्ति की रक्षा का भार भी इसी दल पर है।
भारत के कोयला क्षेत्रों में सर्वप्रथम स्वयंधारित श्वासयंत्र का प्रयोग, सन् 1937 में आग, वाति तथा विस्फोट द्वारा संकट पड़ने पर बराकर कोल कं. लि. ने किया था। उस समय उन्होंने झरिया क्षेत्र से अपनी एक खान की पुन: प्राप्ति की, जो विस्फोट के परिणामस्वरूप बंद हो चुकी थी।
विस्फोट के कारण ध्वस्त वायुसंचालन को पुन: स्थापित करने तथा नष्टभ्रष्ट रोधनों (Stoppings) का जीर्णोद्वार करने के लिये अभी तक आभ्यंतरिक स्थितियों के ज्ञान के बिना ही वायु का प्रवेश कराया जाता था। ये कठिनाइयाँ अब बहुत कुछ सरल हो गई हैं; तथा सुरक्षा एवं पुन: प्राप्ति (recovery) कार्य पर्याप्त सुगमता से संचालित होता है।
सर्वप्रथम भारत सरकार ने सन् 1939 में पूर्ण रूप से प्रशिक्षित एवं सज्जित (equipped) सुरक्षा दलों सहित सुरक्षा स्टेशनों की स्थापना करने का निश्चय किया जिससे कोयला क्षेत्रों में किसी भी आपतकालीन स्थिति का सामना किया जा सके। सन् 1942 में रानीगंज तथा झरिया में दो सुरक्षा स्टेशनों की स्थापना की गई।
वर्तमान केंद्रीय प्रणाली (Existing Central System)-----इस प्रणाली के अंतर्गत एक अधीक्षक (Superintendent) तथा दो शिक्षकों के अतिरिक्त प्रशिक्षितों का एक दल होता है, जो यंत्रों का प्रयोग भली प्रकार जानता है तथा प्रत्येक सुरक्षा स्टेशन (रानीगंज एवं झरिया) पर स्थायी रूप से रहता है। किसी भी खान की आपातकालीन याचना पर इस प्रशिक्षित दल की सेवाएँ अत्यंत अल्प समय में कोयला क्षेत्र के किसी भी भाग में प्राप्त की जा सकती हैं। इन स्थायी सुरक्षा दलों के अतिरिक्त दोनों कोयला क्षेत्र की कोयले की खानों में लगभग 500 प्रशिक्षित व्यक्ति रहते हैं, जो सहायता के लिये सूचना मिलने पर आ सकते हैं।[१]
अभी कुछ वर्ष पहले तक कोयला खनन का कार्य कुछ व्यक्ति या कंपनियाँ करती थी। अब इस उद्योग का राष्ट्रीकरण कर दिया गया है। इसके लिये भारत सरकार ने एक कारपोरेशन की स्थापना की है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वि. सा. दु.