कोरियायी भाषा और साहित्य
कोरियायी भाषा और साहित्य
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 169 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | जगदीशचंद्र जैन |
कोरियायी भाषा और साहित्य कोरियायी भाषा अल्टाइक कुल की भाषा है जो चीनी की भाँति संसार की प्राचीन भाषाओं में गिनी जाती है। चीनी की भाँति ही यह दाई से बाई ओर को लिखी जाती है। इसका इतिहास कोरिया के इतिहास की तरह ही 4000 वर्ष प्राचीन है। प्राचीन काल में चीनी लोग कोरिया में जाकर बस गए थे, इसलिये वहाँ की भाषा चीनी भाषा से काफी प्रभावित है। चीनी और कोरियायी के अनेक शब्द मिलते जुलते हैं : चीनी (पीकिंग बोली) कोरियायी अर्थ वान मान दस हजार नान नाम दक्षिण मा माल घोड़ा इ इल एक
उस समय कोरिया के विद्वानों की बोलचाल की भाषा तो कोरियायी थी लेकिन वे लिखते थे चीनी में। चीनी लिपि में लिखी जानेवाली कोरियायी भाषा की लिपि हानमून कही जाती थी। जबतक कोई विद्वान चीनी क्लासिक्स का ज्ञाता न हो तब तक वह पूरा विद्वान नहीं माना जाता था। कोरियायी भाषा अपने माधुर्य और कोमलता के लिये प्रसिद्ध है। शिष्टता और विनम्रतासूचक कितने ही आदरवाची शब्द इस भाषा में पाए जाते हैं। कोरिया के लोग अभिवादन के समय आप शांतिपूर्वक आएँ, आप शांतिपूर्वक सोएँ आदि शब्दों का प्रयोग करते हैं।
लिपि का सरलीकरण : सन् 1446 में कोरिया के राजा सेजोंग ने कोरियायी भाषा को सरल बनाने के लिये एक घोषणा की जिसमें कहा गया कि कोरिया की राष्ट्रभाषा चीनी से भिन्न है और चीनी लिपि से उसकी समानता नहीं, इसलिये कोरिया की जनता चीनी भाषा के तरीकों को नहीं अपना सकती। इस समय हारगूल लिपि में 2८ ध्वन्यात्मक अक्षरों का आविष्कार हुआ जिनमें 17 व्यंजन और 11 स्वर स्वीकार किए गए। आगे चलकर व्यंजनों को घटाकर 14 कर दिया गया। धीरे धीरे पुस्तकें और अखबार भी इस लिपि में छपने लगे।
व्याकरण : कोरियायी भाषा का व्याकरण नियमबद्ध और सरल है। एक ही क्रिया बिना किसी परिवर्तन के अनेक रूपों में प्रयुक्त होती है। कोरियायी की वाक्यरचना जापानी की भाँति हैं---(क) वाक्यों में सबसे पहले कर्ता, कर्म और अंत में क्रिया आती है, (ख) विशेषण विशेष्य के पहले आता है, (ग) प्राय: संज्ञाओं और क्रियाओं में वचन और पुरु ष नहीं रहते, (घ) धातु में सहायक धातुओं के प्रत्यय जोड़ने से क्रियारूप बनते हैं।
कोरियायी साहित्य : चीनी आदि भाषाओं के प्राचीन साहित्य की भाँति कोरियायी के प्राचीन साहित्य में भी धार्मिक कर्मकांड की मुख्यता देखने में आती है। नीतिशास्त्र, आचारशास्त्र, तथा कनफ्यूशियस और बौद्धधर्म (ईसवी सन् 369 में चीन से होकर प्रविष्ट) के उपदेश इस साहित्य में प्रधानता से पाए जाते हैं।
14वीं शताब्दी से 19 वीं शताब्दी ईसवी तक कोरियायी साहित्य की दिन पर दिन उन्नति होती गई। 14वीं शताब्दी में कासन नामक एक बौद्ध भिक्षु ने हौंग किल डोंग के साहसपूर्ण कृत्य नामक उपन्यास लिखा। 147८ में सुंगजोंग ने कोरियाई भाषा के आदि से अंत तक सर्वश्रेष्ठ साहित्य का संकलन करने के लिये 23 विद्वानों का एक आयोग नियुक्त किया जिसके फलस्वरूप तौंगमुन नाम का एक संकलन तैयार हुआ जिसमें 500 लेखकों की रचनाएँ संकलित की गईं। इस काल में इतिहास, आयुर्वेद, कृषि आदि पर भी साहित्य का निर्माण हुआ। हानगूल वर्णमाला का आविष्कार भी इसी समय हुआ। 1८वीं सदी में कोरिया में ईसाई धर्म का प्रवेश हुआ। इस समय जन्म, विवाह, मृत्यु, अंत्येष्टि क्रिया, पितृ पूजा और आतिथ्य आदि के संबंध में साहित्य का निर्माण हुआ। 1८वीं 19 वीं सदी में कनफ्यूशियस धर्म के आधार पर अनेक उपन्यासों, कहानियों और नाटकों की रचना हुई। वसंत ऋ तु की सुगंध नामक उपन्यास में एक पत्व्रािता स्त्री का सुंदर चित्रण उपस्थित किया गया। यह साहित्य कोरिया की नई वर्णमाला में लिखा गया।
आधुनिक साहित्य : ईसाई मिशनरियों के साथ साथ कोरिया में पश्चिम के साहित्य और संस्कृति का प्रचार बढ़ा। 1८96 ई. में स्वतंत्र नामक समाचार पत्र का प्रकाशन आरंभ हुआ जिसमें स्वाधीनता, स्वातंत््रय और समानता को आदर्श मानकर कविता, कहानी और उपन्यास प्रकाशित हुए। सन् 1910 में जापान का फिर कोरिया पर अधिकार हो जाने से कोरियायी भाषा के लिखने पढ़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया; फिर भी अपनी भाषा को उन्नत बनाने के लिये वहाँ के प्रगतिशील लेखकों का प्रयत्न जारी रहा। कोरिया सदियों से लगातार साम्राज्यवादी शक्तियों का शिकार रहा है, इसलिये युद्धविरोधी और शांतिमय जीवन का चित्रण करनेवाला साहित्य यहाँ अधिक मात्रा में लिखा गया। यहाँ के लेखक विक्तर ह्यूगो, टालस्टाय, दोस्तेवस्की, कार्लाइल, इमर्सन, मोपासाँ, यर्नर्ड शा, इलियट, आंद्रे ज़ीद आदि पश्चिमी लेखकों से प्रभावित हैं। मार्क्स और एंगेल्स का प्रभाव भी कोरिया के लेखकों पर काफी है।
रजतमय संसार कोरिया का प्रथम आधुनिक उपन्यास माना जाता है जिसे यि-इन-रिक ने 190८ ई. में लिखा था। उसके बाद पुष्पों का रक्त के लेखक यि-हाए-रो और हृदयहीन के लेखक यि-क्वांग-सू आदि उपन्यासकारों ने कोरियायी साहित्य को समृद्ध बनाया। किम किमरिन ने लाल चूहा, छाए मानसिक ने गँदला स्रोत और सिम हुन ने सदा हरित वृक्ष जैसे श्रेष्ठ उपन्यासों की रचना की। आधुनिक कवियों ने पुरानी परंपराओं को छोड़कर नए साहित्य का सर्जन किया। किम यौंग नांग, छोंग इन-बो, यि अन-सांग, यि प्योंग-गि आदि कवियों ने मुक्तक लिखकर नई कविता को समृद्ध बनाया। पांग उंग-मो ने समकालीन कवियों और आन होए-नाम ने आधुनिक कथाकारों का आलोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया। यि ताए-रून ने साहित्यिक निबंध लिखकर साहित्य की श्रीवृद्धि की। सदियों से युद्ध की रणस्थली बने हुए कोरिया में आज अत्यंत द्रुत गति से साहित्य के नवनिर्माण का कार्य हो रहा है जिसमें सैकड़ों राष्ट्रवादी लेखक जनवादी प्रेरणादायक साहित्य का सर्जन करने में जुट हुए हैं। कितने ही नए प्रकाशनगृह इस कार्य को सफल बनाने में लगे हैं।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं.ग्रं.-----कोरियन स्टडीज़ गाइड, यूनिवर्सिटी ऑव कैलिफोर्निया प्रेस, 1954। कोरियन हैंडबुक, फ़ॉरेन लैंग्वेज पब्लिशिंग हाउस, प्यांग यांग, 1959।