कोरी
कोरी
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 170 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
कोरी उत्तर प्रदेश, एवं मध्य प्रदेश में बसनेवाली एक जाति जिसका मुख्य उद्योग कपड़ा बुनना है। इनकी उत्पत्ति के संबंध में एक अनुश्रुति प्रचलित है। कहा जाता है कि एक दिन कबीर गंगा स्नान करने जा रहे थे। मार्ग में एक युवती जा रही थी। उसने उन्हें प्रणाम किया। कबीर ने उसे आशीर्वाद दिया----पुत्रवती भव। युवती कुमारी थी। कबीर का आशीर्वाद निष्फल हो सकता था। अत: उस युवती के हाथ में एक फोड़ा निकला और जब वह फूटा तो उसमें से एक बालक निकला। इसी बालक की संतान यह जाति है और कुमारी से जन्म होने के कारण उनका नाम कोरी पड़ा। अहारवार, बैस, भडौरी, भाइनहार, बंकार, धामन, जइसवार, जाटवा, ज्यूरिया करीरवंसी, कैथिया, कामारिया, कनौजिया, कोरचामरा, कुष्टा, माहुटे, परसूतिया, साकरवार, संखवार, आदि इसकी अनेक उपजातियाँ हैं।
ये मूलत: हिंदू धर्म के अनुयायी हैं। अवध प्रदेश के कोरी अधिकांशत: रामदासी अथवा शिवनारायणी संप्रदाय के माननेवाले हैं। बिजनौर के आसपास के निवासी कबीरपंथी हैं। कुछ लोग जाहिर पीर की उपासना करते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ