कोलम
कोलम
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 175 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
कोलम तमिलनाडु मे रंगोली का नाम कोलम है। कोलम वस्तुत: चावल का एक प्रकार है और चावल के आटे से रंगोली की रेखाएँ बनाई जाती हैं इस कारण इसे कोलम कहते हैं। वहाँ स्त्रियाँ नित्य प्रात: काल सारे घर में कोलम पूरती हैं। ब्याह शादी एवं उत्सव आदि के अवसर पर कोलम का विशेष महत्व माना जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर तमिल स्त्रियाँ घर में प्रवेश करने बाले बालक के पैरों को चित्रित करती हैं। संक्राति के अवसर पर स्त्रियाँ अपने घर के द्वार से दूसरे घर के द्वार तक कोलम पूरती हैं और दूसरे घरकी स्त्री उस कोलम की रेखा से जोड़कर एक नया कोलम बनाते हुए नीसरे घर तक ले जाती है। इस प्रकार सारे ग्राम का एक अखंड कोलम तैयार होता है। इस कोलम में नाना प्रकार की आकृतियों का अंकन होता है। विवाह के लिए लड़की देखने के लिये जब लोग आते हैं तो प्राय: वे यह देखते हैं कि वह कोलम की कला में कितनी कुशल है।
कोलम पूरते समय स्त्रियाँ तालसुर से गाती हैं। इस अवसर पर गाए जानेवाले गीत कोलम प्याट्टू कहलाते हैं। इसमें कोलम का पूरना और गाना दोनों एक साथ आरंभ होता है और एक साथ ही समाप्त होता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ