क्रिस्टिना
क्रिस्टिना
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 208 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | सत्यदेव विद्यालंकार |
क्रिस्टिना (1626-1689 ई.)। स्वीडन की रानी, ब्रांडेंबर्ग के गुस्तावस अडोल्फ्स की एकलौती बेटी; स्टाकहोम में 8 दिसंबर, 1623 को जन्म । 12 वर्ष के रिजेंसी शासन के बाद 1644 ई. में राजगद्दी पर बैठी। वह बहुत प्रतिभासंपन्न और स्वाभिमानिनी थी उसके अनियंत्रित अपव्यय तथा अंतरराष्ट्रीय नीति में अनुचित हस्तक्षेप और लोक-अप्रिय व्यक्तियों के संपर्क ने उसे लोकप्रिय नहीं बनने दिया। उसका दरबार बड़ा वैभवशाली था जिसमें फ्रांसीसी कवि, कलाकार, वैज्ञानिक और दार्शनिक थे।
उसने अपने शासनकाल में जनता को अधिकाधिक नागरिक अधिकार दिए। उसने व्यापार को उन्नत बनाया एवं डेल्स के खदान उद्योग का विकास किया। 1649 में उसने स्कूली शिक्षा को सारे राज्य में अनिवार्य किया। विदेशी विद्वानों को अपने देश में आकर रहने के लिये उत्साहित किया। उसके उदार शासनकाल में विज्ञान और साहित्य की जैसी उन्नति हुई वैसी पहले कभी नहीं हुई थी। वह निस्संतान न रहे, जिससे उसकी मृत्यु के अनंतर उसके उत्तराधिकारी के प्रश्न को लेकर कोई बखेड़ा खड़ा हो, इस उद्देश्य से सिनेट ने उसपर शादी करने के लिये जोर डाला, लेकिन पुरूष जाति के सम्मुख आत्मसमर्पण ने करने के अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए उसने 1650 ई. में चार्ल्स को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और साथ ही चार्ल्स और उसके पुत्रों के लिये स्वीडन की राजगद्दी को वंशपरंपरानुगत बना दिया।
1651 ई. के गर्मी के दिनों में उसके सामने राजगद्दी छोड़ने के लिये प्रस्ताव पेश किया गया और तीन वर्ष बाद, 6 जून, 1654 को उसने राजगद्दी छोड़ दी। शासन से निवृत्त होने पर उसने कला और विज्ञान की साधना में लगकर अपनी प्रतिभा से संसार को चकित करने की चेष्टा की ।
उसने स्वीडन जाकर राज्याधिकार को पुन: प्राप्त करने की दो बार चेष्टा की पर सफल न हो सकी। अत: वह रोम में पोप की छत्रछाया में एकांत जीवन व्यतीत करने लगी। 19 अप्रैल, 1698 को वहीं निर्धन, विस्मृत और उपेक्षित जीवन व्यतीत करते हुए उसकी मृत्यु हुई।
टीका टिप्पणी और संदर्भ