क्रीट
क्रीट
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 209 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | भगवतारण उपाध्याय |
क्रीट का प्राचीनतम नगर और राजधानी क्नोसस था, जो द्वीप के उत्तरी सागरतट पर पहाड़ों में बसा था। उसके और दक्षिणवर्ती फ़ीस्तस् के खंडहरों से उस सभ्यता के इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ा है। क्नोसस में एक भूलभूलैया का खंडहर मिला है; विद्वानों ने उसे ग्रीक पुराणों की परंपरा में राजा मिनोस के वृभष मिनोतौर के कारागार की संज्ञा दी है। मिनोस संभवत: मिस्री फराऊनों के प्रथम राजवंश का समकालीन था। ग्रीक परंपरा के अनुसार मिनोतौर मानवीय रति का उपासक था जिसके प्रसादन के लिये प्राचीन ग्रीस को अभिजातकुलीय सात तरुण और सात तरुणियाँ प्रतिवर्ष भेजनी पड़ती थीं। ग्रीक वीर थीसियस ने उसका वधकर ग्रीस को इस ऋणयंत्रणा से मुक्त किया। यह प्रसंग आर्यग्रीकों द्वारा क्रीटी सत्ता और ईजियाई सभ्यता के विध्वंस की ओर संकेत करता है। क्रीट के प्राचीन नगरों की खुदाइयों में जो वस्तुएँ मिली हैं उनसे उस सभ्यता की गतिविधि ज्ञात होती है। उनसे प्रकट है कि जीवन उस काल में उन्मुक्त बहता था, नारी स्वतंत्र थी, सुखी जीवन की सुविधाएँ प्राप्त थीं और कम से कम महलों में सुख सुविधा की सभी प्रकार की वस्तुएँ उपलब्ध थीं। महलों की दीवालों पर जो चित्र बने हैं उनसे तो उस कला का सौंदर्य प्रकट है ही, अनेक प्रकार के बर्तन भाँडों, खिलौनों, हाथीदाँत की मूर्तियों आदि से भी तत्कालीन कला के गौरव का ज्ञान प्राप्त होता है। क्रीट के भग्नावशेषों में अनेक अभिलेख मिले हैं जिनसे एक नई लिपि, क्रीटियों की अपनी लिपि, का पता चला है। पर अब तक न तो वह लिपि पढ़ी जा सकी है और न क्रीटियों की भाषा पर ही कोई प्रकाश पड़ा है।
क्रीट का द्वीप यद्यपि विशेष ऋद्ध नहीं है फिर भी वहाँ सभ्यता का विकास अत्यंत प्राचीन काल में हुआ और एक के बाद एक अनेक जातियों का अधिकार उसपर होता गया। प्राचीन क्रीटियों के बाद उस क्रीट का शासन आर्यग्रीकों के हाथ आया जिनसे ई. पू. पहली सदी में रोमनों ने राजसत्ता छीन उसे अपने साम्राज्य का अंग बना लिया। कालांतर में उसे पूर्वी रोमन साम्राज्य का भोज्य बनना पड़ा जिससे अरबों ने कुछ काल के लिये छीन लिया। फिर उसे वेनिस के सौदागरों ने भोगा और फिर तुर्कों ने। अंत में उनपर अंग्रेजी प्रभाव से अभिभूत ग्रीस का अधिकार हुआ, फिर पिछले महायुद्ध में ग्रीक और अंग्रेज सेनाओं को हराकर क्रीट को जर्मनों ने जीत लिया। बाल्कन युद्ध की समाप्ति के बाद 1913 ई. में क्रीट ग्रीस के शासन में मिला दिया गया।[१][२][३]
भाषा----क्रीट द्वीप की प्राचीन भाषा क्रीटी है। सर आर्थर ईवांस आदि पुराविदों के अध्यवसाय से क्रीट की प्राचीन सभ्यता के भग्नावशेष खोद निकाले गए हैं। इसी सभ्यता के लघुएशिया के पूर्वोत्तरी संतरी त्राय नगर के ध्वंसावशेषों को खोदकर श्लीमान ने पुरातत्व के विज्ञान की नींव डाली थी। लघुएशिया का यह त्राय और ग्रीस का माइसीनी (मिकीनी) इसी क्रीटी सभ्यता के नगर थे जिनके दूसरे नाम ईजियाई और मिनोसी (मिनोअन) भी हैं।
क्रीटी भाषा और लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी जिससे उसकी भाषा के प्राचीन रूप का पता चल सकना संभव न हो सका है। किंतु अधिकतर विद्वानों का मत है कि प्राचीन क्रीट की यह भाषा आर्येतर थी। वहाँ तक आर्यों की पहुँच होने से पहले ही वह मर चुकी थी। उसके दक्षिण सागर पार प्राचीन मिस्रियों की हामी सभ्यता थी, पूर्व में सुमेरियों और बाबुलियों की सामी सभ्यता उसे छापे हुए थी, जिससे आर्यों के संपर्क से वह वंचित रहा। क्रीट और उसके ग्रीक, लघुएशियाई नगरों का 15वीं सदी ई. पू. के लगभग आर्यों से संपर्क हुआ और वह उनके लिये मारक सिद्ध हुआ। एशियाई और दोरियाई आर्य ग्रीक जातियों ने अपने आक्रमणों द्वारा उन्हें नष्ट कर दिया।
क्रीटी सभ्यता के नगरों की खुदाइयों में प्राय: दो हजार मिट्टी, चूने आदि की बनी मुहरें मिली हैं। इनके अध्ययन से पता चलता है कि क्रीटी भाषा की प्रारंभिक लिपि चित्रमय थी जो धीरे धीरे रेखांकित हो गई। ये रेखाएँ क्या ध्वनित करती हैं, इसका अनुमान कर सकना कठिन है। बाद की सदियों की मुहरों पर जो आकृतियाँ बनी हैं उनसे अनुमान किया गया है कि वे संभवत: उस वर्ग की है जिसे ‘आइडियोग्राफ़’ (शब्दचित्र, ध्वनिनाम -चित्र) कहते हैं, जो चित्रलिपि और वर्णलिपि के बीच की लिपि है। इन आकृतियों से स्पष्ट है कि अभी तक क्रीट में वर्णमाला लिपि का उदय नहीं हुआ था। जब तक इन मुहरों की लिपि पढ़ ली नहीं जाती, ईजियाई सभ्यता की भाषा के संबंध में किसी प्रकार का भी अनुमान केवल काल्पनिक होगा।