क्रोमाइट
क्रोमाइट
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 225 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | विद्यासागर दुबे |
क्रोमाइट जिसे क्रोम अयस्क, क्रोम लौह अयस्क, क्रौमिक लौह अयस्क आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है, क्रोमियम धातु का मुख्य अयस्क है। यह उन गिने गिनाए कुछ खनिजों में से एक है, जिसका उपयोग वर्तमान धंधों में अनेक प्रकार से किया जाता है। यह संसार के कुछ ही देशों में मिलता है, जिसमें भारत भी सम्मिलित है। सामान्यत: सोवियत रूस को छोड़कर, जहाँ क्रोम अयस्क का उत्पादन अधिक होता है, अधिकांश देश इस धातु को अन्य उत्पादक देशों से आयात करके अपनी आवश्यकता पूरी करते हें। इसी लिये द्वितीय विश्वयुद्ध में संमिलित अधिकांश देशों की सामरिक खनिजों की सूची में क्रोमाइट का उच्च स्थान था। सामान्य दिनों में भी, क्रोमाइट की अच्छी मांग रहती है। इस धातु का अधिकांश भाग फेरोक्रोम, स्टेनलेस इस्पात, रफ्रेिक्टरी तथा चमड़ा उद्योग में रसायन के रूप में प्रयुक्त होता है।
क्रोम अयस्क या क्रोमाइट (Fe O. Cr2 O3) को लोहे का क्रोमेट माना जा सकता है, जिसमें सिद्धांतत: 68 प्रतिशत क्रोमिक सेस् क्वीआक्साइड (Cr2 O3) तथा 32 प्रतिशत लौह आक्साइड होना (Fe O) चाहिए। किंतु प्रकृति में यह अयस्क कभी भी शुद्ध रूप में नहीं मिलता, इसमें क्रोमियम के स्थान पर फेरिक लौह तथा ऐल्यूमिनियम और फेरस आयरन के स्थान पर फेरिक लौह तथा ऐल्यूमिनियम और फेरस आयरन के स्थान पर मैग्नीशियम विभिन्न मात्राओं में प्रवेश कर जाते हैं। फलस्वरूप इसमें 50-52 प्रतिशत से अधिक क्रोमिक आक्साइड नहीं रहता।
क्रोमाइट (आ. घ., 4.0-4.6; कठोरता 5.5) में अष्टभुजाकार क्रिस्टल होते हैं, परंतु साधारणतया इसका गठन स्थूल दानेदार से लेकर संहत तक होता है और साधारणतया भूरा निशान छोड़ता है। इस खनिज में धात्विक से लेकर अल्पधात्विक चमक होती है। यह कुछ कुछ चुंबकीय होता है। यह काफी कठोर होता है और चाकू द्वारा कठिनाई से खुरच जा सकता है। संघटन के अनुसार इसका गलनांक 15450 से 17300 तक होता है।
क्रोमाइट को फुँकनी परीक्षण (ब्लो-पाइप टेस्ट) द्वारा आसानी से पहचाना जा सकता है। उपचायक ज्वाला में यह खजिन गर्म रहने पर सुहागा-मनका को रक्ताभ पीत कर देता है। और ठंडा होने पर पीताभहरा रंग प्रदान करता है (लौह की अभिक्रिया) और उपचायक ज्वाला में माणिक हरित (क्रोमियम की अभिक्रिया)। माइक्रोकास्मिक लवण का मनका क्रोमाइट के साथ उपचायक तथा अपचायक दोनों ही ज्वालाओं में, गर्म रहने पर गंदा हरा रंग और ठंडा होने पर निखरा हरा रंग उत्पन्न करता है। सोडियम कार्बोनेट के साथ गलाने पर क्रोमाइट अपारदर्शी पीला मनका बनाता है।
इसके निक्षेप मैसूर, आंध्र में किस्तिना, मद्रास में सेलम, बिहार में सिंहभूम (चायबासा) तथा उड़ीसा में क्योंझर जिलों में प्राप्त हुए हैं। कुछ नवीन निक्षेप उड़ीसा के कटक तथा ढेंकानल जिलों में मिले हैं। सुकिंदा में सभी वर्गों के क्रोमाइट की मात्रा दो लाख टन तथा ढेंकानल में 1 लाख 20 हजार टन है। सेलम में 20 फुट तक की गहराई में क्रोमाइट की अनुमानित मात्रा 2 लाख 20 हजार टन है। कुछ साधारण निक्षेप काश्मीर राज्य में भी प्राप्त हुए हैं। संपूर्ण भारत में क्रोमाइट की अनुमानित निधि 13 लाख टन आँकी गई है। उच्च श्रेणी के क्रोमाइट की, जिसमें 45% अथवा उससे अधिक क्रोमियम आक्साइड की मात्रा होती है, अनुमानित निधि प्राय: दो लाख टन आँकी गई है।
भारत में सन् 1968 ई. में क्रोमाइट का कुल उत्पादन 2,05,659 टन हुआ जिसका मूल्य 13,306 हजार रुपए बताया गया है। इसमें से 1,08,822 टन क्रोमाइट का निर्यात किया गया जिससे 19,456 हजार रु पए की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई है।
क्रोमाइट का अधिकतम उपयोग धातुकर्मीय तथा रासायनिक उद्योगों में होता है। इसके निम्न श्रेणी के अयस्कों का उपयोग दुर्गलनीय पदार्थ (रफ्रैिक्टरी) के लिये होता है। इसके लवण फोटोग्राफी, चमड़े तथा कपड़े के उद्योगों में एवं रंजक और दियासलाई बनाने के काम आते हैं।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ निरंकार सिहं