क्लीस्थेनीज़ क्लेइस्थेनीस
क्लीस्थेनीज़ क्लेइस्थेनीस
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 239 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कांतिचंद्र सौनरेक्सा |
क्लीस्थेनीज़ क्लेइस्थेनीस यूनान में ईसा के पूर्व छठीं शताब्दी में इस नाम के दो महान राजनीतिज्ञ हुए। सीसियन का क्लेइस्थेनीस (ई. पू. 600-570) और दूसरा एथैंस का क्लेइस्थेनीस्।
पहला दूसरे का नाना था। दौहित्र क्लेइस्थेनीस ने ही अधिक यश कमाया और प्रसिद्धि पाई। सीसियन की प्रजा के पराजित आयोनियाई वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में प्रथम क्लेइस्थेनीस अत्यंत अत्याचारी कुख्यात हुआ। उसने दोरियाई प्रभुत्व को नष्ट करने के लिये उनके कबीलों को ‘सुअर के बच्च’ और ‘गधे के बच्चे’ जैसी गालियों से दूषित किया। दोरियाई वीरों की गाथा गानेवालों का उसने दमन किया। ई. पू. 590 में जो धर्मयुद्ध हुआ, उसमें उसने देल्फी के देवताओं का पक्ष लेकर कीसा नगर का सर्वनाश कर दिया। तत्पश्चात् देल्फी ही देल्फी के संसद सदस्यों का सभास्थल बन गया। नई शान शौकत से पाइथियाई खेल पुन: स्थापित किए गए और 582 ई. पू. में क्लेइस्थेनीस ने ही रथों की प्रथम दौड़ जीती। सीसियन में भी उसने ये खेल चलाए और सीसियन का एक नया धनकोष भी देल्फी में स्थापित किया। कालांतर में क्लेइस्थेनीस की ऐसी धाक जमी कि यूनान के अति संभ्रांत सामंत भी उससे अपना संबंध जोड़ने के लिये लालायित रहने लगे। जब उसकी पुत्री अगारिस्ते के विवाह की बात चली, तब यूनान के श्रेष्ठतम कुलीन युवकों ने उससे विवाह का प्रस्ताव किया। तब अल्कमीयोनिद वंश के संभ्रांत युवक मेगाक्लीज से अगारिस्ते का विवाह हुआ। इस विवाह से जो पुत्र उत्पन्न हुआ, वह ‘एथेस का क्लेइस्थेनीस’ के नाम से विख्यात हुआ। अल्कमीयोनिदी परिवार को पीसिसवातिद के अत्याचारी राजा ने देश निकाला दे दिया था, किंतु देल्फी के मंदिर के पुनर्निर्माण में अति उदार योग देने के कारण स्पार्ता के राजा क्लीमीनिस को धर्मगुरू का आदेश हुआ कि इस परिवार को देश में पुन: स्थापित किया जाय। प्ररस्तूकृत ‘एथेस का संविधान’ में तत्कालीन यूनान के शक्तिशाली वंशों के पारस्परिक वैमनस्य और स्पर्धा से संत्रस्त एथेंस की दुर्दशा का विशद वर्णन मिलता है।
निष्कासन से स्वदेश लौटने पर क्लेइस्थेनीस को लगा कि एथेंस अब किसी नए अत्याचारी राजा को सहने के लिये तैयार नहीं है; एथेंस के अन्य सामंत भी किसी एक वंश की इजारेदारी स्वीकार करने को प्रस्तुत न थे । एथेंस का शासन जनता के सहयोग से ही चल सकता था। पीसिसतस ने कई प्रकार से जनसहयोग का अपने शासन में उपयोग किया था, किंतु सोनोन के सुधार असफल सिद्ध हुए; वह भूमिधर सामंतों की शक्ति पर कोई अंकुश नहीं लगा सका। क्लेइस्थेनीस ने इसी काँटे को उखाड़ फेंकने का बीड़ा उठाया। भूपतियों ने इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए अपना बल संगठित किया और उनके नेता ईसागोरास ने स्पार्ता राज की सहायता भी माँगी। किंतु गणतंत्रवादी जनता ने डटकर मोर्चा लिया और क्लियोमेनिस तथा ईसागोरास को ऐक्रोपोलिस में घेर लिया। तत्पश्चात् उन्हें क्षमादान कर जान बचाने के लिये भाग जाने दिया और जो परिवार निष्कासित कर दिए गए थे, उन्हें स्वदेश वापस बुला लिया।
क्लियोस्थेनीस ने अनुभव किया कि जब तक कबायली कुनबों की धार्मिक सांप्रदायिकता राजनीति के मार्ग में पथरीला रोड़ा बनकर पड़ी रहेगी, तब तक गणतंत्र की प्रगति अवरुद्ध रहेगी। इसलिए उसने राजनीति को देशप्रभुत्व और बिरादरीवाद से मुक्त करने का निश्चय किया। उसने निर्वाचन के लिए मतदान की एक नई विधि निकाली, जिससे वंशवाद और संप्रदायवाद के रूढ़ स्वार्थ कुंठित हो सकें। इसलिये उसने चार प्रधान सोलोनियाई कबीलों को भंगकर दस टुकड़ों में विभाजित कर दिया। प्रत्येक का एक जनपद बना दिया। किंतु इस योजना से कबीलों की मूल सांप्रदायिक काया पर कोई आँच नहीं आई और उनका धार्मिक प्रभुत्व भी यथापूर्व बना रहा। उनके राजनीतिक पंख अवश्य कट गए। नवविभक्त कबीलों का उसने यूनान के प्रसिद्ध पौराणिक वीरों के नाम पर नामकरण किया। इस प्रकार स्थानीय स्वार्थो से निरपेक्ष एक वीर उनको पूजा करने तथा प्रेरणा देने को मिल गया। उनके अपने अपने देवताओं के मंदिर भी बने। फलस्वरूप प्रभुत्वशाली परिवारों की राजनीतिक चौधराई समाप्त हो गई। नए जनपदों में राष्ट्रीय एकता की भावना स्थापित करने के उद्देश्य से क्लेइस्थेनीस् ने एथेस के बड़े बाजार में आदर्श पौराणिक वीरों की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करा दीं।
पश्चात् क्लेइस्थेनीस् ने प्रत्येक जनपद के संगठन का कार्य हाथ में लिया। जनपदों की जनगणना की गई। प्रत्येक जनपद का एक राजपाल निर्वाचित किया गया। जिसका शासनकाल केवल एक वर्ष रखा गया उसका कार्य स्थानीय शासन के लिये निर्वाचित जनसभा की अध्यक्षता करना और देश की नौसेना के लिये सैनिक जुटाना था। एथेंस के संविधान में अरस्तू ने बताया है कि क्लेइस्थेनीस ने अत्तिका (प्राचीन यूनान) को तीन जिलों में विभक्त किया यथा (1) नागरिक तथा उपनागरिक, (2) अंत:प्रदेश, (3) समुद्रतटवर्ती प्रदेश । प्रत्येक विभाग के उसने फिर दस उपविभाग किए। प्रत्येक कबीले के भी तीन हिस्से किए और प्रत्येक को अलग अलग जिले में रखा। इस सुधार का ध्येय कबीलों की धार्मिक गुटबंदी को छिन्न भिन्न करना था, जिससे धर्मनिरपेक्षता के आधार पर जनता को मतदान का अधिकार दिया जा सके। फलस्वरूप यूपात्रिद परिवारों की प्रभुत यूनान में दुर्बल हो गई। इससे हानि यह हुई कि एथेंस नगर तथा उसके पड़ोसी उपनगरों के निवासियों की चुनावों में प्रधानता हो गई और एथेंस नगर तथा उसके पड़ोसी उपनगरों के निवासियों की चुनावों में प्रधानता हो गई और एथेस से दूर अंतरप्रदेशीय उपमंडलों और समुद्रतटवर्ती प्रांतों के निवासियों का निर्वाचनमहत्व गौण हो गया। अन्य दुष्परिणाम यह भी हुआ कि सोलोन के सुधारों के कारण एथेंस में जो एक नया व्यावसायिक वर्ग उत्पन्न हो गया था, उसे कबायली छिन्नता से बल मिला और वह व्यापारी वर्ग शीघ्र ही नगरों और उपनगरों के शासन में अपने प्रभाव का जाल फै लाने लगा।
क्लेइस्थेनीस् ने मतदान संबंधी जो सुधार किया, उसके अनुसार यूनान में प्रवासी विदेशियों तथा परतंत्रता से मुक्त गुलामों को भी नागरिकता के अधिकार मिल गए। इन नवीन नागरिकों में अनेक कुशल शिल्पी थे। अरस्तु ने क्लेइस्थेनीस् के इस सुधार को अपने संविधान में समस्त जनता को नागरिक अधिकारदान कहकर विशेष रूप से सराहा। इस प्रकार यूनानी अभिजात वर्ग का एक प्रतिद्वंद्वी खड़ा हो गया और गणतंत्रवाद यूनान में प्रबल हो गया।
कबायलियों का विभाजन एवं वितरण क्लेइस्थेनीय राजनीति की आधारशिला रही, जिसका आदर्श और व्यवहार दोनों ही प्रारंभ में स्तुत्य, किंतु कलांतर में क्रमश: पतित होता गया। पाँचवीं शताब्दी ई. पू. आते आते वह शासनारूढ़ शक्तिशाली राजनीतिक दल के हाथ में अपने विपक्षी एवं प्रतिद्वंद्वी दलों को नष्ट करने के लिये एक खतरनाक कूटनीतिक युक्ति बन गई।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं.ग्रं. - एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका; अरस्तूकृत राजनीति और एथेंस का संविधान ; हेरोडोटस : पंचम कांड, 63-73 तथा पृष्ठ कांड 131; यूनान के विविध इतिहास और केंब्रिज एंश्येंट हिस्ट्री के चुतर्थ भाग के छठे परिच्छेद में ई. एम. वाकर लिखित टिप्पणी- क्लेइस्थेनीस के सुधार।