क्षयार्षा
क्षयार्षा
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 264 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | चंद्रभान पांडे |
क्षयार्षा (ज़रक्सीज) फ़ारस (ईरान) नरेश दारयवौष (दारा) प्रथम का पुत्र और उत्तराधिकारी। दारयवौष प्रथम की प्रथम पत्नी की तीन संतानें थी। उनमें ज्येष्ठ आर्तज़ेबीज़ो को उसने उत्तराधिकारी बनाया था। किंतु खब्बास के विद्रोह के समय उसकी दूसरी पत्नी अत्तोस्स (कुरूष की कन्या) ने अपने ज्येष्ठ पुत्र क्षयार्षा को उत्तराधिकारी मनोनीत करवा दिया। क्षयार्षा की नसों में कुरूष का भी राजरक्त था अत उसके उत्तराधिकारी होने में कोई कठिनाई नहीं हो सकी। दारयवौष के पश्चात् राज्यारोहण के समय वह किसी भी देश पर आक्रमण करने के पक्ष में नहीं था, किंतु प्रमुख राजपुरुषों ने उसे स्मरण दिलाया कि मराथन की पराजय का बदला अभी नहीं लिया जा सका है। उधर मिश्र में विद्रोह की आग भडक उठी थी। खब्बास ने उस विद्रोह का पूरा इंतजाम कर रखा था। निरंतर दो वर्षो तक डेल्टा तथा सीमावर्ती भाग पर मोर्चेबंदी की थी। क्षयार्षा को सर्वप्रथम इसी विद्रोह को दबाने के लिये प्रयास करना पड़ा। खब्बास का सारा प्रयास व्यर्थ सिद्ध हुआ। क्षयार्षा ने विद्रोह दबा दिया, पुजारियों को मुक्त कर दिया गया तथा उसके मंदिर का खजाना ले लिया गया। राजा का भाई आखमीनस वहाँ का क्षत्रप बनाया गया। खब्बास भाग निकला उसकी मृत्यु ना होने से क्षयार्षा को मिश्र की पूरी शक्ति नहीं प्राप्त हो सकी। अनुश्रुति है कि उसने एक बार पुन आकर खलदों को चौंका दिया। किंतु वह अपने मनचाहे नरेश को सिंहासन पर न बैठा सका। यदि जनश्रुति सत्य न भी हो तो भी प्रतीत होता है कि मिश्र में एक बार विद्रोह हुआ था। जोपरिस के पुत्र मेगाबीसस ने, जो वहाँ का आनुवंशिक क्षत्रप था, बड़ी निर्दयता से विद्रोह को शांत किया। बेलुश का मंदिर लूट लिया गया। देवता की मूर्ति निकाल ली गई। पुजारियों का वध कर दिया गया जनता को अंशत दास बना लिया गया।
मिस्र से लौटने के पश्चात् क्षयार्षा ने एक विशाल सेना एकत्र की। हेरोदोतस के अनुसार इस सेना की संख्या, जिसको उसने अपने विशाल साम्राज्य के सभी प्रांतों से एकत्र किया था, बहुत बड़ी थी। वह इस सेना के साथ अपने पिता की मराथन की पराजय का बदला लेने के लिये चल पड़ा। इस अभियान की तिथि 480 ई. पू. है। क्षयार्षा ने अपनी सेना को समुद्र के पथ से संचालित किया। तटवर्ती प्रदेश से जिस प्रकार इस विशाल सेना को रसद पहुँचाई गई उसकी प्रशंसा इतिहासकार करते हैं। क्षयार्षा स्वयं सैन्यसंचालन कर रहा था। इस संभावित युद्ध का पता यूनानियों को लग चुका था। वे सभी सम्मिलित रूप से फारसियों की सेना को रोकने के लिये प्रस्तुत हो गए। केवल वे ही उसमें सम्मिलित नहीं हो सके जो तब तक फारस के अधीन हो चुके थे। 1401 वीर लियोदिनस के संरक्षण में थर्मापिली के तंग रास्ते पर आ डटे जो फारस की सेना के अवरोध के लिये सर्वोत्तम था। एक ओर गहरा समुद्र दूसरी ओर अभ्रंलिहाग्र पर्वतश्रृंखला और इन्हीं दोनों के बीच में थर्मापिली का तंग रास्ता। यूनानियों ने फारसियों के आक्रमण के पूर्व ही इस स्थान पर और सेना भेजना चाहा। किंतु फारसियों ने कुछ पहले ही आक्रमण कर दिया एक ओर असंख्य सेना दूसरी ओर केवल 1400 वीर। यूनानी कुछ घबड़ाए और लौटने का इरादा किया। किंतु वीर लियोदिनस ने कहा--यदि आप लोग चाहें तो लौटें पर हमें और स्पार्ता के इन वीरों को इस दर्रे पर अड़े रहना है, हम यहीं रहेंगे। एक भी न हटा। सभी अड़े रहे। घनघोर युद्ध हुआ और दो दिन तक अस्त्र शस्त्रों की खनखनाहट में यह निश्चित न हो पाया कि विजय किसकी होगी। विश्व के इतिहास में विश्वासघातियों का भी अपना स्थान रहा है। इतिहास के क्रम को बदलने में इन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। एफियाल्तीस नामक एक गड़ेरिए ने क्षयार्षा की सेना को भेड़ों का पहाड़ी रास्ता दिखा दिया। फलस्वरूप फारसियों की सेना के कुछ भाग ने पहाड़ियों को पारकर वीर लियोनिदस पर पीछे से आक्रमण किया। लियोनिदस ने तुरंत वीरों को छाँटकर मुकाबला करने के लिए भेजा और स्वयं स्पार्ता के केवल 300 वीरों के साथ सामने से फारसियों का मुकाबला किया। पर थर्मापिली की रक्षा न हो सकी। सभी यूनानी वीर खेत रहे। फारसियों की सेना दर्रे से होकर यूनान में उमड़ पड़ी। थीब्ज ने बिना लड़े ही घुटने टेक दिए तथा फारसियों की शर्तें स्वीकार कर ली। एथेंसवासियों को आकाशवाणी से आदेश मिला कि उनकी रक्षा केवल एलामीज के काष्ठप्राचीरों के भीतर ही संभव है। सचमुच यहीं से यूनानियों का पासा पलटा। थेमिसथोक्लीज ने 20 सितंबर, सन् 400 ई. को फारसियों को सलामीज की खाड़ी की राह लेने के लिए बाध्य कर दिया। यदि क्षयार्षा सलामीज पर विजय प्राप्त कर लेता तो पूरा ग्रीस उसके चरणों में होता। अत एथैंस की सेना का कप्तान कौंसिल से छिपाकर बाहर निकला और गुप्त रूप से क्षयार्षा के पास झूठा संदेश भेजा कि य़ूनानी सेना के आधे लोग भागने के पक्ष में हैं। यह खबर पाकर क्षयार्षा ने ठीक वही किया जैसा थेमिसथोक्लीज ने सोचा था। उसने जलडमरूमध्य के मुहाने से अपनी सेना के कुछ भाग को हट जाने का आदेश दिया। इस तरह चालाकी से और वीरता से यूनानी विजयी हुए। फारसियों की सेना बड़ी वीरता से लड़ी पर उनकी विशाल संख्या और उनके उत्साह तथा साहस ने उनकी सहायता न की। उनकी नौसेना बिखर गई। क्षयार्षा एग्लिओज के पर्वतशिखर पर सिंहासन पर बैठा फारसियों की इस पराजय को देखकर बौखला उठा और अपने वस्त्रों को फाड़ डाला। वह अपनी सेना के साथ सूसा वापस लौटा किंतु यूनान को इस अविजित स्थिति में छोड़ने से पूर्व उसने मार्दोनियस को उसकी प्रार्थना पर, बची हुई सेना के साथ युद्ध करने की आज्ञा दे दी। दोनों सेनाओं की भिड़ंत प्लातिया केमैदान पर हुई। हेरोदोतस के अनुसार यूनानियों की ओर 1,10,000 तथा फारसियों की ओर 3,00,000 आदमी थे। कई दिनों तक दोनों सेनाओं की मुठभेड़ें होती रहीं। मार्दोंनियस मारा गया। मकदुनिया के राजा ने विश्वासघात किया था। फारसियों की पराजय हुई।
क्षयार्षा ने राजधानी लौटकर अपने अवशिष्ठ साहस और बुद्धिमत्ता को अंतपुर की स्त्रीपरायणता में खपा दिया। उसके जीवन के अंतिम दिनों में राज्य में विरोध तथा विद्रोह उठ खड़े हो रहे थे। उसकी अंगरक्षक सेना के कप्तान आर्तबानिस् ने 465 ई. पूर्व में उसका वध कर दिया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ