खारवेल

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लेख सूचना
खारवेल
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 316
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक परमेश्वरीलाल गुप्त

खारवेल मौर्य साम्राज्य की अवनति के पश्चात्‌ कलिंग में उदय होनेवाले चेदि राजवंश का प्रख्यात्‌ नरेश। अनुमान किया जाता है कि यह वंश बुंदेलखंड के चेदि वंश की ही कोई उपशाखा थी जो कलिंग में स्थापित हो गई थी। खारवेल इस वंश का तीसरा नरेश था और इसे कलिंग चक्रवर्ती कहा जाता है। उदयगिरि में हाथीगुफा नामक लयण के ऊपर एक अभिलेख है जिसमें इसकी प्रशस्ति अंकित है। उस प्रशस्ति के अनुसार यह जैन धर्म का अनुयायी था। उसे 10 वर्ष की आयु में युवराज पद प्राप्त हुआ था; 24 वर्ष की अवस्था में वह महाराज पद पर आसीन हुआ। राज्यभार ग्रहण करने के दूसरे ही वर्ष सातकर्णि की उपेक्षा कर अपनी सेना दक्षिण विजय के लिए भेजी और मूषिक राज्य को जीत लिया। चौथे वर्ष पश्चिम दिशा की ओर उसकी सेना गई और भोजको ने उसकी अधीनता स्वीकर की, सातवें वर्ष उसने राजसूय यज्ञ किया।

उसने मगध पर भी चढ़ाई की। उस समय मगध नरेश वृहस्पति मित्र था। इस अभियान में वह उस जिनमूर्ति को उठाकर वापस ले गया जिसे नंदराज अपने कलिंग विजय के समय ले आया था। उसने पंडितों की एक विराट् सभा का भी आयोजन किया था, ऐसा उक्त प्रशस्ति से प्रकट होता है। इसके समय के संबंध में मतभेद है। उसकी प्रशस्ति में जो संकेत उपलब्ध हैं उनके आधार पर कुछ विद्वान्‌ उसका समय ईसा पूर्व दूसरी शती में मानते हैं और कुछ उसे ईसा पूर्व की प्रथम शती में रखते हैं। इन पंक्तियों का लेखक इस दूसरे मत को ही समीचीन स्वाकीर करता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ