गंडमाला
गंडमाला
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 345 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | राम प्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कपिल देव मालवीय |
गंडमाला (Scrofula, गलगंड)-इस रोग में मनुष्य के शरीर की लसीका ग्रंथियों, विशेषत: ग्रीवा की लसीका ग्रंथियों में दोष उत्पन्न हो जाता है। यक्ष्मा प्रकृति के बच्चों में यह रोग प्राय: अधिक होता है।
लक्षण
इस रोग में लसीका ग्रंथियाँ बढ़ जाती हैं। रोगी को ज्वर आने लगता है और स्वास्थ्य शनै: शनै: गिरता जाता है।
कारण
संतुलित तथा पुष्टिकारक भोजन का अभाव, अस्वस्थ तथा दूषित वातावरण में रहने तथा दूषित दूध के उपयोग से रोग की अवस्था उपस्थित हो सकती है। बच्चों में जब भी शरीर में रोग से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है, गंडमाला होने की संभावना रहती है। यह रोग अधिकतर यक्ष्माजीवाणु के शोथ के कारण होता है। यदि उचित उपचार न किया जाए तो लसीका ग्रंथियाँ फोड़े का उग्र रूप धारण कर लेती हैं।
उपचार
इस रोग का मुख्य उपचार स्वच्छ वायु का सेवन, प्रकाशयुक्त वातावरण में रहना तथा पुष्टकर भोजन है। यह केवल रोग का उपचार ही नहीं, वरन् इससे रोग की रोकथाम भी की जा सकती है। स्ट्रेप्टोमाइसीन तथा अन्य औषधियों का जो यक्ष्मा में प्रयुक्त होती हैं। इस रोग में भी उपयोग करने से लाभ होता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ