गाँठ
गाँठ
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 385 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | राम प्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
गाँठ विभिन्न बस्तुओं को बाँध कर जोड़ने के लिये रस्सी, सूत, या डोर का अंतर्ग्रथन गाँठ कहलाता है। यह शब्द गाँठ की तरह दिखाई पड़नेवाले किसी भी दृढ़ पिंड के लिए भी प्रयुक्त हो सकता है; उदाहरणार्थ पेड़ के तने पर शाखा फूटने के स्थान पर बने पिंड को भी गाँठ कहते हैं। आलंकारिक अर्थ में टेंट या गठरी तथा वैर-मन की गाँठ-के संबंध में भी इस शब्द का प्रयोग होता है।
गाँठ, बंध, फंदा, शिरबंधन तथा अभिग्रहण बंध
ये सभी एक या अधिक रस्सियों, डोरियों आदि के भागों को जोड़ने, या रस्सी के किसी हिस्से को छल्ले या बल्ली से जोड़ने के प्रकार हैं। संकीर्ण अर्थ में गाँठ, रस्सी के एक छोर के बल को खेलकर जोड़ने से, या फंदे द्वारा रस्सी पर बनी हुई घुंडी का नाम है। बंध तथा फंदे के द्वारा रस्सियों को आपस में या बल्ली से जोड़ा जाता है। दो रस्सियों के छोर के बल को खोलकर जोड़ने से शिराबंधन बनता है। दो बल्लियों, दो रस्सियों, या एक ही रस्सी के दो भागों को जोड़ने से अभिग्रहण बंध बनाता है। इन भिन्न भिन्न नामों का प्रयोग स्वेच्छ है। साधारणत: गाँठ तथा अभिग्रहण बंध स्थायी होते हैं और इन्हें उधेड़कर ही खोला जा सकता है। बंध तथा फंदे को सुलझाने के लिए पकड़ की उलटी दिशा में खींचना भर पड़ता है। इनके अभिकल्प (design) का सिद्धांत यह है कि जो तनाव उन्हें दूर खींचता है वही उन्हें मिलाता भी है।
गाँठ के प्रकार
गाँठें कई प्रकार से बनाई जाती हैं। इनमें से कुछ चित्र में प्रदर्शित हैं। सर्जन की गाँठ कटी नस पर पट्टी बाँधने के लिये अत्यंत उपयुक्त है। गिरह द्वारा रस्सी की लंबाई अस्थायी रूप से घटाई बढ़ाई जा सकती है।
जोड़ बंधन
प्रत्येक रस्सी के छोर के बल खोल लिए जाते हैं, फिर एक के सूत को दूसरी के सूत से बट लिया जाता है।
नेत्राकार जोड़ बंधन
एक छोर से सूतों को खींचकर पीछे लाते हैं ताकि इच्छित आकार का नेत्र बन जाए, फिर उस स्थान के बल को कील से उभाड़कर बिना बल के सूत को ठूंस देते हैं। पाल में इसका प्रयोग किया जाता है।
अभिग्रहण बंध
बल्लियों या रस्सों या रस्से के हिस्सों को आपस में जोड़ने के लिये अभिग्रहण बंध बनाया जाता है।
विविध
रस्से से कुंदे को बाँधने के कई तरीके हैं। सबसे सरल तरीका यह है कि रस्सी के एक छोर पर उचित आकार का जोड़ बंधन बनाकर, उसमें कुंदे को फँसाकर, अभिग्रहण बंध द्वारा फँस स्थिर कर लिया जाय। एक लघुजोड़ बंधन से रस्सी के छोर को मिलाकर पट्टी बना ली जाती है। इस पट्टी को कुंदे पर चढ़ाकर अभिग्रहण बंध से जकड़ दिया जाता है। बहुधा हुकवाले थिंबल (जोड़नल) को कुंदे से जोड़ना होता है। इसके लिए पट्टे को हुक में से निकालकर थिंबल की नाली के ऊपर से पिरो दिया जाता है और थिंबल तथा कुंदे के बीच अभिग्रहण बंध लगा दिया जाता है।
ग्रोमेट फीता
फीते की परिधि के तिगुने से अधिक लंबाई के सूत से बनता है। सूत के एक छोर को लपेटकर छल्ला बना लिया जाता है और फिर शेष सूत को छल्ले से बटकर तीन लड़ का बना लिया जाता है। छोरों को चीरकर, गाँठ बाँधकर, बची डोर को बट में ठूँस दिया जाता है।
विभिन्न गाँठें- 1. ओवरहैंड गाँठ (सरलतम गाँठ); 2. बोलाइन ऑन एक बाइट (Bowline on a Bight) : यह ऐसी गाँठ है कि खींचने पर फंदा अधिक कसता नहीं; 3. शीप शैंक (Sheep Shank): यह गाँठ रस्से को छोटा बड़ा करने के काम आती हैं ; 4. सेनिट (Sennit) : रस्सी के तीन सूतों को एक में गूँथकर बनाया जाता है ; 5. और 6. नेत्र शिरोबंधन (Eye Splice); 7. और 8. रैकिंग अभिग्रहण (Racking Seizing); 9. और 10. गोल अभिग्रहण (Round Seizing); 11. पीपा उद्बंधन (Barrel Sling); 12. चोर (Thief) गाँठ खुले हुए सिरों को खींचने पर खुल जाती हैं। 13. ग्रैनी (Granny); 14. स्टडिंग सेल हैलयार्ड बेंड (Studding Sail Halyard Bend); 15. खूँटा गाँठ या राज गाँठ (Clove Hitch, or Builder s Hitch); 16. लपेटा और दोचकरी गिरह (Round Turn and Two Half Hitches) तथा 17. फ़िगर ऑव ऐट नॉट (Figure of Eight kuot)।
सेल्वाजी फीता
गियर पर रस्से-कप्पियाँ चढ़ने के काम आता है। यह आनम्य होती है। दो या इससे अधिक खूँटियाँ उचित दूरी पर रखकर उनके चारों ओर सूत लपेटा जाता है। जब लपेटकर इच्छित मजबूती का फीता बना लिया जाता है तब उसे मारलीन से जोड़ लिया जाता है।
सेनिट
तीन सूतों को मिलाकर बनाया जाता है। इसे इसकी बनावट के कारण चिपटी रस्सी कह सकते हैं।
गाँठ का गणितीय सिद्धांत
स्थितीय विश्लेषण (Analysissitus) के दृष्टिकोण से गाँठ त्रिविमितीय अवकाश में एक ऐसा बंद वक्र है जो अवकाश के किसी एक बिंदु से एक बार से अधिक होकर नहीं जाता। दूसरे शब्दों में हम यों भी कह सकते हैं कि गाँठ एक ऐसा बंद वक्र है जो किसी बिंदू प से आरंभ होकर अंत में फिर उसी बिंदु में पर्यवसित होता है। यदि किसी ग्रंथि को दूसरी ग्रंथि की प्रारंभिक स्थिति में ले जाने वाले अवकाश की सतत विकृति (Continuous deformation of space) हो, तो दोनों ग्रंथियाँ एक ही वर्ग की समझी जाती हैं। यदि गाँठ वृत्त के वर्ग की हो तो वह बेगाँठ होती हैं।
पूर्णत: व्यापक गणितीय वक्र (perfectly general mathematical curve) की संरचना अत्यधिक जटिल हो सकती है, अत: गाँठ की चर्चा के प्रसंग में प्राय: युक्ति संगत समत्वसंपन्न वक्र (curves of reasonable degree of regularity) ही विचार्य होते हैं। यदि युक्तिसंगत समत्वसंपन्न वक्र को स्वेच्छा से मरोड़ा, उलझाया हुआ, तथा सिरों को जोड़कर बंद किया हुआ भौतिक सूत्र (physical thread) कहा जाय तो कोई गंभीर त्रुटि न होगी। इस भौतिक दृष्टि से गाँठ के वर्गीकरण की समस्या घटकर, झुकाने, खीचने तथा संकुचन द्वारा किन्हीं दो सूत्रों में से एक को दूसरे के आकार में विकृत करना किन प्रतिबंधों पर संभव है, इसका पता लगाने में परिवर्तित हो जाती है।गाँठदार सूत्र में कुछ आभासी संकरण बिंदु (apparent crossing points) दिखाई पड़ते हैं जिनमें, निरीक्षण बिंदु से सूत्र की एक शाखा दूसरे के सामने से
गुजरती है। प्रत्येक गाँठ के लिये संकरण बिंदु की एक न्यूनतम संख्या भी होती है जो गाँठ को विकृत कर प्राप्त की जा सकती है। इसे ग्रंथिनिश्चर कहते हैं तथा क से प्रदर्शित करते हैं। यह गाँठ के अ्ह्रास्य संकरणों (irreducible crossings) की संख्या है। आर्टिन (Artin) ने गूँथन (Braids) का संतोषजनक वर्गीकरण किया है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ