गोथ

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लेख सूचना
गोथ
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 19
भाषा हिन्दी देवनागरी
लेखक टी. हाजकिन
संपादक फूलदेव सहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
स्रोत टी. हाजकिन : इटली ऐंड हर इन्वेडर्स; जे.बी.बरी : हिस्ट्री ऑव दि लेटर रोमन एंपायर।
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक पद्मा उपाध्याय

गोथ एक मिश्रित प्राचीन जर्मन भाषा बोलनेवाली त्यूतन अथवा जर्मन जाति जिसने ईसा के प्रांरभिक सदियों में यूरापीय इतिहास पर, विशेष कर, रोमन साम्राज्य को नष्ट कर, पर्याप्त प्रभाव डाला। अपने प्राचीनतम युगों में यह जाति विश्चुला नदी की बीच की घाटी में बसी हुई थी जो संभवत: स्वीडन की ओर से आई थी, और जिसने पूर्वी पोमेरानियामें फैलकर बंदल जाति के पास पड़ोस को जीत लिया। गोथों का शासन, कबीलाई होने के बावजूद राजसत्ताक था। उनका प्राचीन साहित्य में पहला उल्लेख ईसा की प्रांरभिक सदियों में ही मिलता है जबकि उनपर उनका राजा मारोबोदुअस राज करता था। तीसरी सदी ईसवी में वे दानूब नदी की निचली घाटी में भी धावे बोलने लगे और इस प्रकार रोमनों से जब तब टकराने लगे। रोमन सम्राट् गोर्दियन ने उन्हें एक बार परास्त कर 'गोथोरम विजयी' उपाधि धारण की थी पर सम्राट् देसियस को निश्चय उन्होंने मार डाला था और सम्राट् गोंलस को तो उन्होंने वार्षिक कर देने को भी मजबूर किया। अनेक टक्करों के बाद सम्राट् कोंस्तांतीन ने गोथों को हराकर उनके राजा अरियारिक से संधि कर ली। गोथों के इतिहास के उन प्रांरभिक दिनों में सबसे प्रसिद्ध राजा हरमनारिक हुआ जिसका नाम जर्मन ख्यातों में अमर हो गया है। गोथों के प्रसिद्ध इतिहासकार जेरदानिज़ का कहना है कि उस राजा ने दक्षिणी रूस में बसनेवाली अनेक जातियों पर विजय प्राप्त की। उसके शासन की सीमा पश्चिम में होल्स्टाइन तक पहुँच गई थी। चौथी सदी ईसवी के हूणों के हमलों का, अपनी मातृभूमि विश्चुला की घाटी में अनेक गोथ वीरों ने सामना कर, अमरकीर्ति अर्जित की। स्वयं राजा हरमनारिक ने हूणों के आक्रमण की चोट न सह सकने के कारण 370 ई. के लगभग आत्मघात कर लिया।

गोथों के साधारणत: दो अंग माने जाते हैं जिनमें से पूर्व में रहनेवाले ओस्त्रोगोथ कहलाते थे और पश्चिम के रहनेवाले विजीगोथ। इन्हीं पश्चिमी गोथों ने अपने राजा अलोरिक के नेतृत्व में पश्चिमी रोमन साम्राज्य की रीढ़ तोड़ दी थी। चौथी सदी ईसवी से गोथों की पूर्वी पश्चिमी दोनों शाखाओं के इतिहास अलग हो जाते हैं। उस सदी के चौथे चरण के आरंभ में ही रोमन साम्राज्य में पश्चिमी गोथ घुस आए और सम्राट् वालेंस को मारकर अद्रियानोपुल की प्रसिद्ध लड़ाई उन्होंने जीती। इसके बाद रोमनों तथा गोथों में संधि हो गई जिससे गोथ रोमन सेना में बड़ी संख्या में भरती किए गए। सम्राट् थियोदोसियरा महान्‌ की 395 ई. में मृत्यु के बाद गोथ रोमनों से झगड़कर अलग हो गए और उन्होंने अलारिक को अपना राजा चुना। अलारिक का यश उसकी विजयों के साथ रोमन साम्राज्य में फैल चला। कालांतर में वह रामन सम्राटों का विधाता बना और एक बार तो अमर नगर रोम तक उसके चरणों में लोट गया।

अलारिक के उत्तराधिकारी अतौल्फ ने रोम के सहायक के रूप में गोथों पर राज किया, यद्यपि यदि वह चाहता तो रोमन साम्राज्य के एक बड़े भाग पर अधिकार कर सकता था। उसने सम्राट् थियोदोसियस की पोती को ब्याहा और कुछ अजब न था कि यदि उनका बेटा थियोदोसियस जीवित रहता तो वह रोमनों एवं गोंथों का संयुक्त सम्राट् होता। 415 ई. में बार्सिलोना में अतौल्फ की हत्या हो गई और अगली पीढ़ी के गोथ प्रदेश जीत रोमनों के हवाले करते गए। पाँचवीं सदी के मध्य अत्तिला हूण के मुकाबिले थियोदोरिक प्रथम के नेतृत्व में गोथ रोमनों के फिर मित्र बन गए। पर उनके उत्साह का बाँध टूट गया, जब उन्होंने देखा कि उन्हीं की जाति के गोथ हूणों के झंडे के नीचे उनसे लड़ रहे हैं। थियोदोरिक 451 ई. में युद्ध में मारा गया और पश्चिमी तथा पूर्वी गोथ फिर एक दूसरे से बहुत दूर हट गए। धीरे धीरे गॉल और स्पेन में उनके राज कायम हुए और धीरे धीरे रोमन संस्कृति स्वीकार कर पश्चिमी गोथ कैथोलिक ईसाई हो गए।

पूर्वी गोथों ने अत्तिला हूण के मरते ही फिर अपनी आजादी कायम की। पाँचवीं सदी के अंत में पूर्वी गोथों के इतिहास में प्रसिद्ध इनका महान्‌ राजा थियोदोरिक हुआ। थियोदोरिक महान्‌ भी पश्चिमी गोथों की ही भाँति पश्चिमी साम्राज्य का कभी मित्र बना, कभी शत्रु बना। रोमन साम्राज्य के प्रति उसकी राजनीति चाहे जैसी भी रही हो, वह अंत तक अपनी जाति का राष्ट्रीय वीर और राजा बना रहा। 493 ई. तक पूर्वी गोथों की सत्ता इटली, सिसिली, दालमेशिया आदि पर पूर्णत: स्थापित हो गई। इस काल तक फिर एक बार थियोदोरिक की कन्या का पश्चिमी गोथों के राजा अलारिक द्वितीय से विवाह होने के पश्चात्‌ पूर्वी गोथों के राजा अलारिक द्वितीय से विवाह होने के पश्चात्‌ पूर्वी और पश्चिमी गोथों में मित्रभाव स्थापित हुआ और अगली पीढ़ी में तो जैसे दोनों राज्य संयुक्त हो गए। इस काल तक पूर्वी गोथों का साम्राज्य अत्यंत विस्तृत हो गया था। थियोदोरिक का शासन बर्बर न होकर सभ्य था जिसने गोथों के नेतृत्व के साथ रोमन साम्राज्य की प्रभुता पश्चिम में भोगी। पूर्वी और पश्चिमी गोथों के रीति रस्म, आचार व्यवहार, एक दूसरे से भिन्न थे, पर दोनों अंगों में प्रत्येक के अनुकूल विधि व्यवहार आदि की दिशा में आचरण करता था। थियोदोरिक की मृत्यु[१]के बाद पूर्वी और पश्चिमी गोथ फिर पृथक्‌ हो गए। अमालारिक पश्चिमी गोथों पर राज करने लगा और अथालारिक पूर्वी गोथों पर। शीघ्र ही पूर्वी गोथों की सत्ता मिट गई।

पश्चिमी गोथों का राज्य स्पेन में दीर्घकाल तक बना रहा और रोमन साम्राज्य को नष्ट करने में धीरे धीरे सफल होता रहा। ल्योविगिल्ड[२]का शासनकाल पश्चिमी गोथों की शक्ति के विशेष उत्कर्ष का था। उसने अपने राज्य की सीमाएँ पर्याप्त बढ़ा लीं और गोथ सामंतों की शक्ति अपने नेतृत्व में संगठित कर ली। अगली पीढ़ी में गोथों के राजा ने अपनी जाति की अधिकतर संख्या के साथ कैथोलिक ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया जिससे यह जाति अधिकतर रोमन प्रभाव में सर्वश: आ गई। 711 में अरबी मुसलमानों की चोट से पश्चिमी गोथों के राज्य का सदा के लिये लोप हो गया।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 526
  2. 568-586