चार्नाक जॉब

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
लेख सूचना
चार्नाक जॉब
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 195
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक रामप्रसाद त्रिपाठी
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक राजेंद्र नागर

चार्नाक जॉब (मृत्यु 1613 ई.) जीविकोपार्जन के उद्देश्य से 1656 या '57 में भारत आया। ईस्ट इंडिया कंपनी में प्रथमत: कासिमबाजार काउंसिल के जूनियर मेंबर के पद पर उसकी नियुक्ति हुई। फिर, कंपनी की फैक्ट्ररी के मुख्य अधिकारी के रूप में वह पटना स्थानांतरित हुआ। वहीं एक भारतीय महिला से उसने विवाह भी किया। एक तत्सामयिक अंग्रेज, कैप्टेन हैमिल्टन, के कथनानुसार उक्त महिला अपने पूर्वपति की मृत देह के साथ सती होने जा रही थी कि चार्नाक की दृष्टि उसपर पड़ी। उसके सौंदर्य पर मुग्ध हो, चार्नाक ने चिता से ही उसका हरण कर लिया तथा बाद में, वैवाहिक जीवन के अनेक सुखद वर्ष उसके साथ व्यतीत किए। उसकी मृत्य पर चार्नाक ने उसे समाधिस्थ किया तथा स्थानीय प्रथा के अनुसार, प्रति वर्ष समाधि पर मुर्गे की बलि अर्पित करता रहा। तदनंतर वह कासिमबाजार फैक्टरी का चीफ एजेंट नियुक्त हुआ। किंतु, बंगाल के सूबेदार नबाब शाइस्ता खाँ का कोपभाजन बनने के कारण उस हुगली भागना पड़ा। मुख्य अधिकारी के नाते हुगली में उसने कंपनी के व्यवसाय की व्यवस्था की। मुगल राज्य से कंपनी का संघर्ष छिड़ जाने पर विवश होकर, चार्नाक ने दलबल सहित कुछ दूर नीचे नदी के तटवर्ती स्थान सुतानुती पर डेरा डाला। इस समय यद्यपि सुतानुती एक छोटा, अविकसित, ग्राम मात्र था, किंतु चार्नाक ने उसका युद्धोपयोगी महत्व समझकर, उसे अंग्रेजी अधिवास से परिणत करने का निश्चय कर लिया। यही वह बीज था जो निकट भविष्य में फोर्ट विलियम तथा कलकत्ता नगर के रूप में पल्लवित हुआ।

सुतानुती में, अपर्याप्त साधन के बावजूद चार्नाक ने कुशलतापूर्वक मुगल सेना का विरोध किया। संकटापन्न परिस्थिति में कैप्टेन डेनहम के नेतृत्व में सैनिक सहायता (सत्तर सिपाह) प्राप्त होने पर, चार्नाक ने उन्हीं सैनिकों को बार बार गुप्त रूप से किले के बाहर, और नदी तट पर उतारकर मुगल सेनानायक अब्दुस्समद का भ्रम में डाल दिया कि चार्नाक के सहायतार्थ यथेष्ट सैनिक आ पहुँचे हैं। हतोत्साह हो, अब्दुस्समद ने संधिवार्ता आरंभ कर दी। इस प्रकर प्राय: एक वर्ष तक चार्नाक मुगल सेना का विरोध करता रहा। अंतत: उसे साथियों सहित सुतानुती छोड़, मद्रास जाने के लिये विवश होना पड़ा१ किंतु बंगाल में अंग्रेजों से व्यावसायिक आमदनी बंद हो जाने के कारण, सम्राट् औरंगजेब ने अंग्रेजों से व्यावसायिक आमदनी बंद हो जाने के करण सम्राट् औरंगजेब ने अंग्रेंजों को पुन: बंगाल लौटने तथा व्यवसाय स्थापित करने की अनुमति दे दी (10 फरवरी, 1692)। चार्नाक ने पुन: बंगाल लौट, सुतानुती में अंग्रेजी अधिवास का पुनर्निर्माण किया। अनेक प्रारंभिक कठिनाइयों के होते हुए भी, अब अधिवास का जीवन सुरक्षित था। भारत में दीर्घकाल तक निवास करते रहने तथा सतत संघर्षमय जीवन व्यतीत करते करते अब चार्नाक का स्वास्थ्य नष्ट हो चुका था। प्रकृति से भी वह विष्ण्ण और क्रूर हो गया था। 10 जनवरी, 1693 को उसकी मृत्यु हो गई।[१]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं. ग्रं- जे. टी. ह्वीलर : अर्ली रेकार्ड्स ऑव ब्रिटिश इंडिया ; सी. आर. विल्सन : दि अर्ली एनल्स ऑव दि इंग्लिश इन बंगाल।