चिंंपैंजी
चिंंपैंजी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 210 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | रामप्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | सुरेश सिंह कुंअर |
चिंपैंज़ी (Chimpanzee - Pan troglodytes) प्राइमेट् गण (Order primate) का प्रसिद्ध स्तनपोषी जीव है, जो अफ्रीका के घने जंगलों में, गिनी से लेकर कांगो तथा पश्चिमी यूगैंडा तक के जंगलों में पाया जाता है। अफ्रीका का यह प्रसिद्ध (ape) कद में गोरिल्ला से कुछ छोटा होता है, किंतु बुद्धिमानी में सब वानरों से आगे है।
अन्य सब वानरों की अपेक्षा चिंपैंज़ी की आकृति मनुष्यों से अधिक मिलती है, किंतु वाक्शक्ति का अभाव होने के कारण ये मनुष्यों जैसे समाजनिर्माण तथा संस्कृति के विकास से वंचित हैं। फिर भी सिखाए जाने पर ये मनुष्यों की भाँति मेज कुरसी पर बैठकर कांटे छुरी से भोजन कर लेते हैं और आदमियों की तरह और भी बहुत से काम करना सीख लेते हैं। वैसे तो वे वानरों की तरह चारों टाँगों के बल ही चलते हैं, किंतु सिखाए जाने पर ये अपनी पिछली टाँगों के सहारे खड़े होकर भी चल फिर लेते हैं। खड़े होने पर इनकी ऊँचाई चार साढ़े चार फुट तक की हो जाती है।
चिंपैंज़ी की एक बौनी जाति पैनपैनिस्कस (Pan paniscus) अफ्रीक में काँर्गो नदी के दक्षिणी भागों में पाई जाती हैं, किंतु इस जाति के चिंपैंज़ी बहुत कम मिलते हैं।
चिंपैंज़ी घने जंगलों में छोटे-छोटे गरोह बनाकर रहते हैं। गरोह में एक नर, कई मादाएँ तथा कई बच्चे और युवक रहते हैं। इनके बच्चों को प्रौढ़ होने से 9 से लेकर 12 वर्ष तक लग जाते हैं और एक गरोह जंगल में रहने के लिये लगभग 10 वर्ग मील का क्षेत्रफल अपने कब्जे में कर लेता है।
चिंपैंज़ी का मुख गोरिल्ला की तरह भयानक न होकर हँसोड़ जैसा लगता है और उसमें खूँखारी की जगह सभ्यता तथा बुद्धिमानी टपकती है। यह गोरिल्ला से अधिक समय पेड़ों पर बिताता है तथा किसी बड़े और ऊँचे पेड़ पर अपना भद्दा सा मचानुमा घर बनाता है। गोरिल्ला से यह कम बलवान होता है।
चिंपैंज़ी के नर मादा से कुछ बड़े होते हैं और उनका वजन करीब डेढ़ मन के होता हैं। इनके कान लंबे, रंग कलछौंह, पेट के बाल काले और चेहरे के चारों ओर का हिस्सा सफेदी लिए रहता है। अन्य वानरों की तरह ये भी फलाहारी जीव हैं। इनका मुख्य भोजन गन्ना, अनन्नास, कोको, केला तथा अन्य फल हैं, लेकिन उसी के साथ ये कीड़े, मकोड़े और अंडे भी मजे में खाते हैं। बचपन से पालतू किए जाने पर ये मांस मछली से भी परहेज नहीं करते।
टीका टिप्पणी और संदर्भ