चिमनी

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लेख सूचना
चिमनी
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 229
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक रामप्रसाद त्रिपाठी
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक विश्वंभर प्रसाद गुप्त

चिमनी का काम प्राचीन काल में छत में बने हुए छेद से ही लिया जाता था। इसे धुआँरा कहा जा सकता है। आदिवासियों के घरों में अब भी यही रूप देखने में आता है। चिमनियों का प्रचार धीरे धीरे यूरोप में प्रारंभ हुआ और दिनों दिन बढ़ता गया। गॉथिक और एलिज़ाबेथन पद्धति में चिमनियाँ ऊँचाई में भी अपना विशेष स्थान रखती हैं। प्रारंभ में चिमनी शब्द का प्रयोग अँगीठी सहित धूमनाली के लिये होता था, किंतु बाद में यह केवल नाली के लिये ही सीमित रह गया। गोल छिद्र सर्वोत्तम है और वर्गाकर मध्यम।

चिमनी के भीतर की गरम हवा बाहर की ठंढी हवा की अपेक्षा हलकी होने के कारण ऊपर उठती है; फलत: रिक्त स्थान की पूर्ति के लिये नीचे से ताजी हवा आती है। चिमनी की ऊँचाई जितनी ही अधिक होगी, यह प्रवह उतना ही तेज होगा, क्योंकि प्रवाह भीतर और बाहर की हवा के भार के अंतर के अनुपात में होता है। बहुमंजिले भवनों में नीचे की चिमनियों की अपेक्षा ऊपर की मंजिल की चिमनियें के धुआँ देने की संभावना अधिक रहती है। कारखानों में न केवल आग जलाए रखने के उद्देश्य से, बल्कि धुआँ दूर फेंकने के उद्देश्य स भी ऊँची चिमनियाँ बनाई जाती हैं, जिससे निकटवर्ती निवासियों के स्वास्थ्य को हानि न पहुँचे।

चिमनी का निर्माण कार्य भी आजकल वैज्ञानिक रूप ले चुका है। संतोषजनक काम करने के लिये यह आवश्यक है कि :

धूमरध्रं पर्याप्त चौड़ा हो। गोल सर्वोत्तम है; वर्गाकार मध्यम है। आयताकार भी संतोषजनक है, किंतु चिपटे छिद्रवाली चिमनी तो निकृष्ट होती है। चिमनी का शीर्ष मकान की छत से कम से कम दो फुट उपर हो। चिमनी नीची रहने से, हवा चलने पर धुआँ ऊपर चढ़ने के बजाय नीचे ही आ सकता है। धूमरध्रं नीचे से ऊपर तक एक समान हो और यथासंभव उसमें दरार न हों। चिकना और अरध्रं अस्तर लगा हो तो अच्छा है। घर की कई अँगीठियों का धुआँ एक ही चिमनी में न आए। सबके लिये अलग अलग नालियाँ ऊपर तक हों, नहीं तो एक का धुआँ दूसरी में खिंचकर नीचे आ सकता है। और अँगीठी के ऊपर धूआँ और कालिख एकत्र हो सकने की समुचित व्यवस्था हो। चिमनी यदि नीची हो तो हवा चलने पर धुआँ ऊपर न चढ़कर नीचे आ सकता है।

बिजली के हीटर और चूल्हे आविष्कृत हो जाने से निवासस्थानों में चिमनी का प्रयोग कम होता जा रहा है। आतिशदान बनते भी हैं, तो बहुधा केवल दिखाऊ, या सजावट के लिये। किंतु उष्माचालित कारखानों में अभी तक चिमनी का महत्वपूर्ण स्थान है और आगे भी रहेगा। चिमनी के अंदर के प्रवाह का चिमनी की ऊँचाई से घनिष्ठ संबंध है, यद्यपि ईधंन और चिमनी के मोड़ों के कारण भी प्रवाह में अवरोध उत्पन्न हो सकता है। प्रवाह सीमित ताप के अंदर (बाहर का ताप 15° सें. और अंदर का ताप 290° सें.) निम्नलिखित सूत्र सेपरिगणित किया जाता है :

प्र= 0.0071 ऊँचाई (H= 0.0071 L)

जहाँ प्र (H)= प्रवाह की दाब पानी की इंचों में तथा ऊँ (L)= चिमनी की ऊँचाई फुटों में हैं।

केंट महोदय के सूत्र के अनुसार, जिसका अमरीकी इंजीनियर प्राय: प्रयोग करते हैं, प्रवह ऊँचाई के वर्गमूल के अनुपात में होता है और इस आधार पर कि चिमनी की दीवार और गैसों के बीच घर्षण के कारण प्रवाह की कुछ हानि होती है, धूमरध्रं का गणनीय क्षेत्रफल,

ग= व- 0.60 Ö व (E= A- 0.60Ö A)

माना जाता है, जहाँ ग (E)= कार्यसाधक क्षेत्रफल तथा व (A) धूम्ररध्रं का वास्तविक क्षेत्रफल है। इस सूत्र के अनुसार अश्वशक्ति से चिमनी का निम्नलिखित संबंध स्थापित किया गया है :

अश्वशक्ति, अ.श.= क गÖ ऊँ (h. p.= CEÖ L), जिसमें स्थिरांक 'क' (C) का मान परीक्षण और अनुभव से निश्चित किया जाता है, ग (E)= कार्यसाधक क्षेत्रुल तथा ऊँ (L)= चिमनी की ऊँचाई है। प्रति बॉयलर अश्वशक्ति के लिये प्रति घंटा 5 पाउंड कोयला जलाने के लिये स्थिरांक 'क'= 3.33 होता है। इस प्रकार,

अ.श.= 3.33 ग Ö ऊँ= 3.33 (व- 0.6 Ö व) Ö ऊँ

(h.p.= 3.33 E Ö L= 3.33 (A- 0.6 Ö A) Ö L)

अथवा, ग= 0.3 अ.श. ¸ Ö ऊँ

(E= 0.3 h. p. ¸ Ö L)

यहाँ अ.श. (h.p.)= अश्वशक्ति है।

कारखानों की चिमनियाँ प्राय: ईटं की चिनाई, कंक्रीट या लोले की बनती हैं। 150' से 300' की ऊँचाई तक लोहे की स्वावलंबी चिमनियाँ प्राय: सस्ती पड़ती हैं। मजबूती, सुरक्षा, स्थान की बचत की दृष्टि से भी ये उत्तम होती हैं। ईटं या कंक्रीट की चिमनियों के निर्माण में यह ध्यान रखना होता है कि हवा के झोंके और चिनाई के भार के संमिलित प्रभाव से यदि एक ओर दबाव बढ़ता है तो दूसरी ओर घटता भी है। यह कभी कभी ऋणात्मक होकर तनाव बन जाता है, और चिनाई अधिक तनाव नहीं ले सकती। किसी भी ऊँचाई पर अधिकतम या न्यूनतम दबाव

होता है; जहाँ 'भ' (W)= ऊपर से पड़नेवाला भार है; क्ष(a)= चिनाई का क्षेत्रुल, घ(M)= हवा के झोंके से उत्पन्न घूर्ण; त्र(r)= त्रिज्या या सुदूर सिरे की बलशून्य रेखा (neutral axis) से दूरी और 'ज' (I) जड़ताघूर्ण हैं।

ईटं की चिनाई के लिये 150' उँचाई तक अधिकतम तनाव की सीमा, 2 से 2.1/2टन प्रति वर्ग फुट, 150' से 200' ऊँचाई तक 1 से 1.1/2 टन प्रति वर्ग फुट, और 200' से ऊपर 0 है। अधिकतम दबाव की सीमा ईटं की चिनाई के लिये 200' ऊँचाई तक 19 टन प्रति वर्ग फुट, और अधिक ऊँची चिमनियों के लिये 21 टन प्रति वर्ग फुट तक मानी जाती है। प्रचलित कंक्रीट के लिये अधिकतम दबाव 350 पाउंड प्रति वर्ग इंच तक ही रखा जाता है।

संसार की कुछ विशालतम चिमनियाँ निम्नलिखित हैं:

अमरीका में 1. अनाकोंडा कापर कं. (निर्मित 1918 ई.) ऊँचाई 585' , चोटी पर भीतरी व्यास 60' ;

2. अमरीकन स्मेटिंल्ग ऐंड रिफाइनिंग कं., टकोमा, वाशिंगटन (निर्मित 1917 ई.), ऊँचाई 573' , चोटी पर भीतरी व्यास 25' ;

3. बोस्टन ऐंड मौंटाना कंसालिडेटेड कॉपर ऐंड सिलवर माइनिंग कं., ग्रेट फाल्स (निर्मित 1907), ऊँचाई 506' , चोटी पर भीतरी व्यास 50' ।

जापान में, ओरिएंटल कंप्रेसॉल कं., सगानोसाकी (निर्मित 1917 ई.), ऊँचाई 570' , चोटी पर भीतरी व्यास 26.1/4'।


टीका टिप्पणी और संदर्भ