जान स्काट एलडन
जान स्काट एलडन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 249 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | मुहम्मद अजहर असगर असारी |
एलडन, जान स्काट अर्ल एलडन 1751 में न्यूकासल में पैदा हुए। उनके पिता वहाँ कोयले का व्यापार किया करते थे। इसमें उन्होंने अधिक धन पैदा किया। जान स्काट की आरंभिक शिक्षा न्यूकासल ग्रामर स्कूल में हुई। तत्पश्चात् यूनिवर्सिटी कालेज, आक्सफ़र्ड में दाखिल हो गए, जहाँ उन्हें एक अंग्रेजी लेख पर पुरस्कार भी मिला। 1776 में उन्होंने बैरिस्ट्री पास की और लंदन में वकालत करने लगे। 1782 तक वह सफल बैरिस्टर हो गए थे और उनके पास अधिक संख्या में मुकदमे आने लगे थे। इसी वर्ष पार्लामेंट के ये मेंबर भी बने और पिट के सहायक हो गए। पार्लामेंट में उन्होंने पहली बार फ़ाक्स के इंडिया बिल का विरोध किया, जिसका शेरीडन ने बहुत मजाक उड़ाया। 1788 में उनको सालिसिटर जेनरल का पद दिया गया और साथ ही 'सर' की उपाधि भी मिली। 1793 में एटर्नी जेनरल बना दिए गए और उनकी सारी शक्ति फ्रांसीसी राज्यक्रांति के सहायकों पर मुकदमा चलाने में लगने लगी। 1799 में वह चीफ़ जस्टिस नियुक्त हुए और उनको बैरन एलडन की उपाधि मिली। इसी वर्ष वह आर्लिग्टन के मंत्रिमंडल में लार्ड चांस्लर हुए और पिट के काल में भी इसी पद पर रहे। ये 20 वर्षो तक कैबिनेट के मेंबर रहे। 1821 में उनको अर्ल की उपाधि मिली। 1837 में जब कैनिंग ने मंत्रिमंडल बनाया तब उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। उनका विचार था कि वे वेलिंग्टन के मंत्रिमंडल में फिर से ले लिए जायँगे, जो नहीं हो सका। इसका उन्हें बड़ा शोक रहा।
उनको अपनी पत्नी से बड़ा प्रेम था। एलडन का देहांत 13 जून, 1838 को लंदन में हुआ। वे अपने विचारों में नरम दल के थे और प्रगतिशील विचारों का विरोध करते थे। उनकी चांस्लरी के काल में कागजात अधिक समय तक दबे रहते और ये उनपर अपनी कोई अनुमति न देते।
टीका टिप्पणी और संदर्भ