जेन आस्टिन
जेन आस्टिन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 466 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. मोहनलाल तिवारी |
आस्टिन, जेन अंग्रेजी कथासाहित्य में आस्टिन का विशिष्ट स्थान है। इनका जन्म सन् 1775 ई. में इंग्लैंड के स्टिवेंटन नामक छोटे से गांव में हुआ था। मां बाप के सात बच्चों में ये सबसे छोटी थीं। इनका प्राय: सारा जीवन ग्रामीण क्षेत्र के शांत वातावरण में ही बीता। सन् 1817 में इनकी मृत्यु हुई। प्राइड ऐंड प्रेजुडिस, सेंस ऐंड सेंसिबिलिटी, नार्देंजर, अबी, एमा, मैंसफील्ड पार्क तथा परसुएशन इनके छह मुख्य उपन्यास हैं। कुछ छोटी मोटी रचानाएं वाट्संस, लेडी सूसन, सडिशन और लव ऐंड फ्रेंडशिप उनकी मृत्यु के सौ वर्ष बाद सन् 1922 और 1927 के बीच छपीं।
जेन आस्टिन के उपन्यासों में हमें 18वीं शताब्दी की साहित्यिक परंपरा की अंतिम झलक मिलती है। विचार एवं भावक्षेत्र में संयम और नियंत्रण, जिनपर हमारे व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन का संतुलन निर्भर करता है, इस क्लासिकल परंपरा की विशेषताएं थीं। ठीक इसी समय अंग्रेजी साहित्य में इस परंपरा के विरुद्ध रोमानी प्रतिक्रिया बल पकड़ रही थी। लेकिन जेन आस्टिन के उपन्यासों में उसका लेशमात्र भी संकेत नहीं मिलता। फ्रांस की राज्यक्रांति के प्रति भी, जिसका प्रभाव इस युग के अधिकांश लेखकों की रचनाओं में परिलक्षित होता है, ये सर्वथा उदासीन रहीं। इंग्लैंड के ग्रामीण क्षेत्र में साधारण ढंग से जीवनयापन करते हुए कुछ इने गिने परिवारों की दिनचर्या ही उनके लिए पर्याप्त थी। दैनिक जीवन के साधारण कार्यकलाप, जिन्हें हम कोई महत्व नहीं देते, उनके उपन्यासों की आधारभूमि है। असाधारण या प्रभावोत्पादक घटनाओं का उनमें कतई समावेश नहीं।
जेन आस्टिन की रचनाएं कोरी भावुकता पर मधुर व्यंग्य से ओतप्रोत हैं। स्त्री-पुरुष-संबंध उनके उपन्यासों का केंद्रबिंदु है, लेकिन प्रेम का विस्फोटक रूप वे कहीं भी नहीं प्रदर्शित करतीं। उनके नारी पात्रों का दृष्टिकोण इस विषय में पूर्णतया व्यावहारिक है। उनके अनुसार प्रेम की स्वाभाविक परिणति विवाह एवं सुखी दांपत्य जीवन में ही है।
शिक्षा देने या समाजसुधार की प्रवृत्ति जेन आस्टिन में बिलकुल नहीं थी। अपने आसपास के साधारण जीवन की कलात्मक अभिव्यक्ति ही उनका ध्येय थी। अन्य दृष्टिकोणों से भी उनका क्षेत्र सीमित था। फिर भी उनके उपन्यासों में मानव जीवन की नैसर्गिक अनुभूतियों का व्यापक दिग्दर्शन मिलता है। कला एवं रूपविधान की दृष्टि से भी उनके उपन्यास उच्च कोटि के हैं।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं.ग्रं.-डेविड सेसिल, लॉर्ड: जन आस्टिन; कॉर्निश, फ्रांसिस वारेन: जेन आस्टिन (इंग्लिश मेन ऑव लेटर्स सीरीज़); स्मिथा, गोल्ड्विन: लाइफ ऑव जेन आस्टिन; सीमूर, बीट्रिस बीन: जेन आस्टिन; स्टडी फॉर ए पोट्रेंट; लैसेल्स, मेरी: जेन आस्टिन ऐंड हर आर्ट।