जॉन कीट्स
जॉन कीट्स
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 40 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | बृजमोहन लाल साहनी |
जॉन कीट्स (1795-1821 ई.) अंगरेजी के सुविख्यात कवि। 31 अक्टूबर, 1795 को लंदन में एक अश्वशालापालक के घर जन्म। 1803 से 1811 इ. तक एन्फील्ड स्थित क्लार्क विद्यालय में छात्र रहे। पश्चात् एड्मांटन के एक शल्यशास्त्रज्ञ की देखरेख में चिकित्सा विज्ञान सीखने लगे। अध्ययन समाप्त करने के उपरांत कुछ वर्ष तक वे लंदन के अस्पतालों में प्रयोगात्मक चिकित्साशास्त्र का अध्ययन करते रहे। चिकित्साशास्त्र की परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने पर उन्हें लंदन के दो अस्पतालों से प्रमाणपत्र मिले। किंतु कीट्स की नैसर्गिक रूचि चिकित्सा में नहीं, काव्यरचना में थी। उनकी ले हंट से मैत्री हुई। उन्होंने उनका शेली, हैज्ल्ट़ि तथा वर्ड् स्वर्थ से परिचय कराया।
कीट्स का प्रथम काव्यसंग्रह पोएम्स बाई जॉन कीट्स के नाम से 1817 में प्रकाशित हुआ। अगले वर्ष उनकी ‘एंडिमियन’ नामक कविता प्रकाशित हुई जिसकी ‘ब्लैकवुड’ तथा ‘क्वार्टर्ली’ पत्रिकाओं में लोक्हार्ट तथा क्रोकर ने अत्यंत कटु आलोचना की। इसे पढ़कर कीट्स को बड़ा आघात लगा, किंतु शीघ्र ही उनका स्वाभाविक आत्मविश्वास पुन: जाग्रत हुआ और उन्होंने कहा, मेरा विश्वास है कि मैं अपनी मृत्यु के पश्चात् अंग्रेजी कवियों के मध्य रहूँगा। उनकी यह आत्मालोचना सिद्ध हुई।
कीट्स के लिए काव्य ही एकमात्र व्यवसाय था। अपनी प्राणनाशक बीमारी के पूर्व इन्होंने अपने एक पत्र में लिखा था, मैं काव्य के बिना जीवित नहीं रह सकता-शाश्वत काव्य के बिना। इसी काव्यनिष्ठा से उन्हें अंत में प्रतिकूल परिस्थितियों तथा कुंठा के वातावरण पर विजय प्राप्त हुई। किंतु इसी बीच इनका स्वास्थ सर्वथा बिगड़ गया। इसके कारण थे-इनकी आर्थिक चिंता, अनुज की राजयक्ष्मा रोग से अकाल मृत्यु तथा इनका फ़ैनी बॉन नामक युवती से प्रेम। सन् 1820 में इनका अंतिम कवितासंग्रह प्रकाशित हुआ जिसमें ‘लेमिया’, ‘आइज़ाबेला’, ‘दि ईव ऑव सेंट एग्नीज़’ तथा अन्य सुप्रसिद्ध कविताएँ थीं। इसी वर्ष उन्हें राजयक्ष्मा हो गया और वे डाक्टरों की सलाह पर इटली गए। जहाज पर उन्होंने अंतिम कविता, ‘ब्राइट स्टार’ नामक चतुर्दशपदी लिखी। 23 फरवरी, 1821 ई. को अत्यधिक रुधिरस्त्राव के कारण रोम में उनका स्वर्गवास हो गया और उनका शव रोम के प्रसिद्ध प्रोटेस्टेंट श्मशान में दफना दिया गया। इनकी समाधि पर इन्हीं का लिखा हुआ समाधिलेख अंकित है-‘इस गर्त में एक ऐसा पुरुष निविष्ट है जिसका नाम विधाता ने जल पर लिखा था।’ कीट्स को काव्यसृष्टि के लिए केवल चार वर्ष मिले थे; इस अल्पकाल में ही उन्होंने ऐसी रचनाएँ कीं जो अमर रहेंगी। ‘लेमिया’, ‘आइज़ाबेला’ तथा ‘दि ईव ऑव सेंट एग्नीज’ इनकी अत्यंत उच्च कोटि की कथात्मक कविताएँ हैं। मिल्टन के महाकाव्य के बाद उनके अपूर्ण महाकाव्य ‘हाइपीरियन’ को ही महत्व दिया जाता है। इनकी चतुर्दशपदियाँ शेक्सपियर एवं मिल्टन की चतुर्दशपदियों के समकक्ष मानी जाती हैं। ‘बुलबुल के प्रति’ और ‘पतझड़ के प्रति’ शीर्षक इनके ‘ओड’ संपूर्ण अंग्रेजी काव्य में अद्वितीय हैं। ‘ला बेल डेम सेंस मर्सी’ शीर्षक गेय कविता जो आल्हा काव्य की शैली में हैं, अद्भुत है। ‘ईव ऑव सेंट मार्क्स’ शीर्षक अपूर्ण कविता ने अंग्रेजी के सुप्रसिद्ध ‘प्रीरैफ़िलाइट’ काव्यसंप्रदाय को अत्यंत प्रभावित किया। वस्तुत: इनकी काव्यप्रतिभा सर्वतोमुखी थी। कीट्स ने ‘ऑथो दि ग्रेट’ तथा ‘किंग स्टीफ़न’ नामक दो काव्यनाटक भी लिखे थें। इनमें से दूसरा अपूर्ण है। इसमें केवल चार ही दृश्य हैं, किंतु इसका स्वर इतना नाटकीय है, चरित्र-चित्रण इतना स्पष्ट है तथा इग्लैंड की 12वीं शताब्दी के संघर्षात्मक जीवन का चित्र इतना सच्चा एवं सजीव है कि पाठकों के हृदय में शेक्सपीयर के ऐतिहासिक नाटकों की स्मृति जागृत हो उठती हैं। इसी कारण आलोचकों की धारणा है कि यदि कीट्स दीर्घायु होते तो वे आगे चलकर नाटकरचना में भी अत्यंत उच्च स्थान प्राप्त करते।
कीट्स की सबसे बड़ी विशेषता उनकी सर्वव्यापक इंद्रियमूलकता है। उनकी चित्रोपम शैली अपूर्व थी। वे अतिकुशल कलाकार थे। वे सौंदर्य के उपासक थे, केवल पार्थिव सौंदर्य के नहीं, अपितु उस सौंदर्य के भी जो चिरंतन आनंद हैं, सर्वशक्तिमान है, सनातन सत्य है। ये वस्तुत: इंग्लैंड के सर्वोतम सौंदर्य कवि हैं। कीट्स ने जो पत्र लिखे हैं वे भी अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं। वे उनके जीवन तथा काव्य को समझने के लिये अनिवार्य हैं। उनकी शैली सरल, सीधी तथा संलापप्रवण है और उनमें उन्होंने यथार्थ जीवन के अनेक तथ्यों तथा राजनीतिक समस्याओं पर पर्याप्त प्रकाश डाला है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं. ग्र.-द कंप्लीट वर्क्स, एच. बी.फ़ोरमैन द्वारा संपादित, 5 खंड, ग्लासगो, कंप्लीट पोएटिकल वर्क्स, एम. बी. फ़ोरमैन और एल. बेकन द्वारा संपादित , न्यूयॉर्क; द लेटर्स, एम. बी. फ़ोरमैन द्वारा संपादित, 2 ,खंड ऑक्सफ़ोर्ड; सर एस. कॉल्विन : जॉन कीट्स; एच. आई. ए. फ़ोट: कीट्स, ए स्टडी इन डेवलपमेंट; एच. डब्ल्यू. गेरॉड : कीट्स, ऑक्सफ़ोर्ड; टी. सेटो: कीट्स व्यू ऑवद पोएट्री; द जॉन कीट्स मेमोरियल वाल्यूम, जी. सी. विलियम्सन द्वारा संपादित।