ज्वारशक्ति

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लेख सूचना
ज्वारशक्ति
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5
पृष्ठ संख्या 93-94
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेवसहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1965 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक फूलदेवसहाय वर्मा

ज्वारशक्ति ज्वार के उत्पन्न होने के कारणों पर ज्वार लेख में विचार हो चुका है। ज्वार के उठने और गिरने से शक्ति उत्पन्न होने की ओर अनेक वैज्ञानिकों का ध्यान समय समय पर आकर्षित हुआ है और उसको काम में लाने की अनेक योजनाएँ समय समय पर बनी हैं। पर जो योजना आज सफल समझी जाती है, वह ज्वार बेसिनों का निर्माण है। ये बेसिन बाँध बाँधकर या बराज बनाकर समुद्रतटों के आसपास बनाए जाते हैं। ज्वार आने पर इन बेसिनों को पानी से भर लिया जाता है, फिर इन बेसिनों से पानी निकालकर जल टरबाइन चलाए जाते और शक्ति उत्पन्न की जाती है। अब तक जो योजनाएँ बनी हैं वे तीन प्रकार की है। एक प्रकार की योजना में केवल एक जलबेसिन रहता है। बाँध बाँधकर इसे समुद्र से पृथक्‌ करते हैं। बेसिन और समुद्र के बीच टरबाइन स्थापित रहता है। ज्वार उठने पर बेसिन को पानी से भर लिया जाता है और जब ज्वार आधा गिरता है तब टरबाइन के जलद्वार का खोलकर उससे टरबाइन का संचालन कर शक्ति उत्पन्न करते हैं।

यदि बेसिन का क्षेत्रफल क वर्ग फुट है, ज्चार का परास प फुट है और कार्यकारी ऊँचाई फ फुट मान ली जाए और टरबाइन तब तक कार्य करे जब तक ज्वार बिलकुल गिर न जाय, तब ज्वार के गिर जाने तक जल का क्षेत्रफल क (प-फ) वर्ग फुट होगा और प्रति ज्वार जल से प्राप्त ऊर्जा होगी :

६४ क (प-फ) ´ फ फुट पाउंड।

इसका महत्तम मान तब होगा जब फ, प का आधा हो। तब ऊपर का समीकरण १६ क प२ फुट पाउंड हो जाता है।

यदि क वर्ग मील में हो और टरबाइन की दक्षता ७५% हो तो प्रति ज्वार शक्ति की प्राप्ति : चित्र:Jwarshakti.gif अश्वशक्ति प्रति घंटा होगी।

एक अन्य बेसिन में ज्वार के उठने और गिरने दोनों समय टरबाइन कार्य करता है। जल नालियों द्वारा बेसिन भरा जाता है और दूसरी नालियों से टरबाइन में से होकर खाली किया जाता है।

दूसरे प्रकार की योजना में प्राय: एक ही क्षेत्रफल के दो बेसिन रहते हैं। एक बेसिन ऊँचे तल पर, दूसरा बेसिन नीचे तल पर होता है। दोनों बेसिनों के बीच टरबाइन स्थापित रहता है। उपयुक्त नालियों से दोनों बेसिन समुद्र से मिले रहते हैं तथा सक्रिय और अविरत रूप से चलते रहते हैं। ऊँचे तलवाले बेसिन को उपयुक्त तूम फाटक (Sluice gates) से भरते और नीचे तलवाले बेसिन के पानी को समुद्र में गिरा देते हैं। तीसरे प्रकार की योजना में भी दो ही बेसिन रहते हैं। यहाँ समुद्र से बेसिन को अलग करनेवाली दीवार में टरबाइन लगी रहती है। एक बेसिन से पानी टरबाइन में आता और दूसरे बेसिन से समुद्र में गिरता है। दोनों बेसिनों के शीर्ष स्थायी रखे जाते हैं। एक बेसिन से पानी टरबाइन में आता और दूसरे बेसिन से समुद्र में गिरता है। दोनों बेसिनों के शीर्ष स्थायी रखे जाते हैं। १९२८ ईo में सेवर्न (Severn) में ज्वारशक्ति के उपयोग के लिये एक समिति बनी थी। यहाँ बेसिन का क्षेत्रफल २,५०० वर्ग मील रखा गया था। सडबरी (Sudbury) के निकट बराज बनाकर बेसिन का निर्माण हुआ था। फंडी की खाड़ी जिससे ५,००,००० से ७,००,००० अश्वशक्ति उत्पादन की योजना थी। ज्वारशक्ति और नदीशक्ति को मिलाकर ब्रिटैनी (Brittany) के तट पर ऐबर ब्रैक (Aber-Vrach) में शक्ति उत्पन्न करने की योजना बनी थी, जहाँ १,२०० अश्वशक्ति उत्पन्न हो सकती है। इससे चार मील दूर डिऔरिस (Diouris) नदी में बाँध बाँधकर अधिक से अधिक २,७०० अश्वशक्ति प्राप्त करने की योजना थी।

टीका टिप्पणी और संदर्भ