तिरुच्चिराप्पल्लि
तिरुच्चिराप्पल्लि
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5 |
पृष्ठ संख्या | 380 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | राम प्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1965 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कृष्णमोहन गुप्त |
तिरुच्चिराप्पल्लि
- भारत में मद्रास राज्य के दक्षिणी भाग में यह जिला है जिसे त्रिचिराप्पल्ली भी कहते है। यहाँ की जनसंख्या 31,90,078 (1961) तथा क्षेत्रफल 5,514 वर्ग मील है। इस क्षेत्र का जलनिकास कावेरी नदी के द्वारा होता है। यहाँ की जलवायु उष्ण है तथा वार्षिक वर्षा का औसत 34 है। समीपवर्ती पचाइमलाय पर्वत पर मैगनेटाइट की खान है। उत्तरी क्षेत्र में धान, मूँगफली, कपास, मक्का, तिलहन, की खेती होती है। इसमें तिरुच्चिराप्पल्लि, करूर, गोल्डेन रॉक, श्री रंगम् आदि प्रसिद्ध नगर हैं। 1948 ई० में पुढ्ढु काट्टै को मिला देने से इसका क्षेत्रफल बढ़ गया। इसके पूर्व केवल 4,329 वर्ग मील था।
- नगर, स्थिति : 10° 30' उत्तरी अंक्षाश तथा 76° 18' पूर्वी देशांतर। कावेरी नदी पर स्थित यह जिले पर केंद्र है। जनसंख्या 2,49,832 (1961) है। यह मद्रास से 180 मील दक्षिण पश्चिम में है। यह रेलों तथा सड़कों का केंद्र है। यहाँ हवाई अड्डा भी है। सूती वस्त्र, सिगरेट तथा चमड़े का काम यहाँ होता है और चाँदी सोने के आभूषणों का निर्माण भी होता है।
यहाँ तीन कालेज है:
- सेंट जॉसेफ कालेज
- बिशप टीबर कालेज
- नैशनल कालेज। गोल्डेन रॉक के क्षेत्र में रेलवे कार तथा इंजन बनाने का कारखाना है। काटने के औजार, जवाहिरात और घोड़े के साज भी बनाए जाते हैं। समीपवर्ती क्षेत्र में जिप्सम, अभ्रक, तथा चूने के पत्थर की खानें है। नगर के उत्तरी क्षेत्र में 17 वीं शताब्दी के किले के खंडहर तथा उसी काल का द्रविड़ मंदिर है। तमिल राजाओं की यह राजधानी थी। नगर तथा जिले दोनों को तिरुचि के संक्षिप्त नाम से भी व्यक्त करते हैं।
इतिहास
इसका पौराणिक नाम 'त्रिशिरापल्ली' था जो कि संभवत: त्रिशिरा नाम के एक असुर के कारण पड़ा। इतिहासकार यह मानते हैं कि ईसा से पाँचवी शती पूर्व से बहुत काल तक यह स्थान चोलवंश के आधिपत्य में था। त्रिचिनापल्ली से केवल एक मील दूर उरेयूर नामक स्थान में चोल राजाओं की राजधानी थी। 11वीं शती में युद्धों और राजनीतिक उथलपुथल के कारण चोल राजधानी उरेयूर से कुंभकोणम् चली गयी। तंजोर नरेश वीरशेखर ने त्रिचिनाप्ल्ली ओर मदुरा को अपने राज्य में मिलाया था, बाद में तंजोर त्रिचिनापल्ली और मदुरा विजयनगर के नायकों के हाथ में चले गये। तब से चाँदा साहब की विजय (1736) तक त्रिचिनापल्ली नायक राजाओं के अधिकार में रहा। तदुपरांत इस पर अर्काट के नवाबों का आधिपत्य हुआ। अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच भी त्रिचिनापल्ली हुआ। अंग्रजों और फ्रांसीसियों के बीच भी त्रिचिनापल्ली के लिये संघर्ष हुआ, और अंत में यह दुर्ग अंग्रेजों के हाथ आ गया।
1731 में सुलतान हैदरअली मैसूर का वास्तविक शासक हुआ। 1781 में उसने कर्णाटक, त्रिचिनापल्ली और मदुरा पर आक्रमण किया, तथा त्रिचिनापल्ली पर अधिकार भी कर लिया, किंतु अंततोगत्वा हैदरअली पराजित हुआ और त्रिचिनापल्ली अंग्रेजों का हो गया। 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद त्रिचिनापल्ली मद्रास राज्य का एक नगर रह गया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ