तोष
तोष
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5 |
पृष्ठ संख्या | 441 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | राम प्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1965 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | रामफेर त्रिपाठी |
तोष इस नाम के दो कवि हुए हैं - तोषनिधि और तोषमणि।
तोषनिधि
कंपिला (जिला फर्रुखाबाद) के रहने वाले कान्यकुब्ज ब्राह्मण ताराचंद अवस्थी के पुत्र थे। मिश्रबंधुओं के अनुसार गिरधरलाल इनका पुत्र था। शिवनंदन अवस्थी, जो इनके वंशज थे, अभी कुछ दिनों पूर्व तक कंपिला में रहते थे। 'दिग्विजयभूषण' की भूमिका में डॉo भगवतीप्रसाद सिंह ने तोषनिधि की व्यंग्यशतक, रतिमंजरी और नखशिख संज्ञक तीन और मिश्रबंधुओं ने 'विनोद' में रसराज, कामधेनु भइयालाल पचीसी, कमलापति चालीसा, दीनव्यंग्यशतक, और महाभारत छप्पनी नामक छह कृतियों का उल्लेख किया है। 'मिश्रबंधु विनोद', में कवि का जन्मकाल संवत् 1830 और काव्यकाल संवत् 1794 है, अत: कवि का कविताकाल भी इसी के थोड़ा इधर उधर माना जा सकता है।
तोषमणि
जैसा कि कवि के आत्मकथन 'शुक्ल चतुर्भुंज को सुत तोष, बसै सिंगरौर जहाँ रिषि थानो। दच्छिन देव नदी निकटै दस कोस प्रयागहि पूरब मानौ' से प्रकट है कि वे प्रयाग से पूर्व दस कोस दूर गंगा तट पर स्थित सिंगरौर (श्रृंगवेरपुर) गाँव के निवासी चतुर्भुज शुक्ल के लड़के थे। यह सिंगरौर वही है जिसका जिक्र रामायण में आया है और जो ऋषि श्रृंगी की तपोभूमि भी रहा। तोषमणि ने प्रसिद्ध रीतिग्रंथ 'सुधानिधि' की रचना संवत् 1691 आषाढ़ पूर्णिमा गुरुवार को की। इसके महत्व का अनुमान इसलिये भी लगाया जा सकता है कि केशवदास के पश्चात् समस्त रसों का इतना सुंदर वर्णन करनेवाला कोई दूसरा ग्रंथ नहीं है। 'सुधानिधि' की संवत् 1948 की एक प्रति अयोध्यानरेश के पुस्तकालय में देखी गई है। ग्रंथ में कुल 183 पृष्ठ और 560 नाना छंद हैं। इसके मुख्य प्रतिपाद्य विषय हैं - नौरस, भाव, भावोदय, भावशांति, भावशबलता, रसाभास, रसदोष, वृत्ति, नायिकाभेद, सखा-सखी-भेद और हाव आदि। 'विनयशतक' और 'नखशिख' कवि की दो अन्य कृतियाँ भी खोज में मिली हैं।
तोषमणि में कवित्व एवं आचार्यत्व का अच्छा संयोग मिलता है किंतु उनका कवित्वपक्ष जितना प्रौढ़ और पुष्ट है उतना रीति-काव्य-विवेचन नहीं। अपनी सारी खूबियों के साथ कवि-अपेक्षित सरसता और काव्यनिपुणता उसमें विद्यमान है। सघन होने पर भी कवि का भावविधान कहीं फँसता और अटकता नहीं है। हाँ, कहीं कहीं मिल जानेवाली ऊहात्मक अत्युक्तियाँ मजा किरकिरा कर देती हैं। भाषा, भाव, अलंकार तथा अभिव्यंजनाकौशल के प्राय: सभी तत्वों से उसकी कविता अपूर्ण है। सहृदयसंवेद्य सरसता और हृदयहारी उक्तिचमत्कार रसखान की याद दिलाता है। कवि की ब्रजभाषा में स्वाभाविक प्रवाह और प्रांचलता के साथ आलंकारिक सौंदर्य सहज रूप में आया है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संदर्भ ग्रंथ -- हिंदी साहित्य का इतिहास : पंo रामचंद्र शुक्ल; दिग्विजयभूषण : संपादक, डाo भगवतीप्रसाद सिंह; मिश्रबंधु, विनोद (भाग दो); मिश्रबंधु, हिंदी साहित्य कोश (भाग 2) संo - धीरेंद्र वर्मा आदि, हिंदी काव्यशास्र का इतिहास : डाo भगीरथ मिश्र; हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास (षष्ठ भाग), संपादक - डाo नगेंद्र।