नमाज़
नमाज़
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 6 |
पृष्ठ संख्या | 242 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | राम प्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1966 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | अमजद अली |
नमाज़ फारसी शब्द है, जो उर्दू में अरबी शब्द सलात का पर्याय है। कुरान शरीफ में सलात शब्द बार-बार आया है और प्रत्येक मुसलमान स्त्री और पुरुष को नमाज़ पढ़ने का आदेश ताकीद के साथ दिया गया है। इस्लाम के आरंभकाल से ही नमाज़ की प्रथा और उसे पढ़ने का आदेश है। यह मुसलमानों का बहुत बड़ा कर्तव्य है और इसे नियमपूर्वक पढ़ना पुण्य तथा त्याग देना पाप है।
नमाज़ पढ़ने के समय
प्रत्येक मुसलमान के लिए प्रति दिन पाँच समय की नमाज़ पढ़ने का विधान है। नमाज़ प्रात: काल सूर्य के उदय होने के पहले पढ़ी जाती है, जिसका नाम नमाज़ फजर (उषाकाल) है। दूसरी नमाज़ सूर्य के ढलने के बाद पढ़ी जाती है, जिसका नाम नमाज़ जुह्ल (अवनतिकाल) है। तीसरी नमाज़ सूर्य के अस्त होने के कुछ पहले होती है, जिसे नमाज़ अस्र (दिन का अंत) कहते हैं। चौथी नमाज़ सूर्यास्त के तुरंत बाद होती है। इसका नाम नमाज़ मगरिब (पश्चिम) है। अंतिम पाँचवीं नमाज़ सूर्यास्त के डेढ़ घंटे बाद पढ़ी जाती है, जिसको नमाज़ एशाए (रात्रि का अंधकार) कहते हैं।
नमाज़ पढ़ने का तरीका
नमाज़ पढ़ने के पहले प्रत्येक मुसलमान वुजू (अर्धस्नान) करता है अर्थात् कुहनियों तक हाथ का धोता है, मुँह व नाक साफ करता है, पूरा मुख धोता है। यदि नमाज़ किसी मस्जिद में हो रही है तो 'अजाँ' भी दी जाती है। नमाज़ तथा अजाँ के बीच में लगभग १५ मिनटों का अंतर होता है। उर्दू में अजाँ का अर्थ पुकार है। नमाज़ के पहले अजाँ इसलिए दी जाती है कि आस-पास के मुसलमानों को नमाज़ की सूचना मिल जाए और वे सांसारिक कार्यों को छोड़कर कुछ मिनटों के लिए मस्जिद में खुदा का ध्यान करने के लिए आ जाएँ। नमाज़ अकेले भी पढ़ी जाती है और समूह के साथ भी। यदि नमाज़ साथ मिलकर पढ़ी जा रही है तो उसमें एक मनुष्य सबसे आगे खड़ा हो जाता है, जिसे इमाम कहते हैं और बचे लोग पंक्ति बाँधकर पीछे खड़े हो जाते हैं। इमाम नमाज़ पढ़ता है और अन्य लोग उसका अनुगमन करते हैं।
नमाज़ पढ़ने के लिए मुसलमान मक्का की ओर मुख करके खड़ा हो जाता है, नमाज़ की इच्छा करता है और फिर 'अल्लाह अकबर' कहकर तकबीर कहता है। इसके अनंतर दोनों हाथों को कानों तक उठाकर छाती पर नाभि के पास बाँध लेता है। वह बड़े सम्मान से खड़ा होता है। वह समझता है कि वह खुदा के सामने खड़ा है और खुदा उसे देख रहा है। कुछ दुआ पढ़ता है और कुरान शरीफ से कुछ लेख पढ़ता है, जिसमें फातिह: (कुरान शरीफ का पहला बाब) का पढ़ना आवश्यक है। ये लेख कभी उच्च तथा कभी मद्धिम स्वर से पढ़े जाते हैं। इसके अनंतर वह झुकता है, फिर खड़ा होता है, फिर खड़ा होता है, फिर सजदा में गिर जाता है। कुछ क्षणों के अनंतर वह घुटनों के बल बैठता है और फिर सिजदा में गिर जाता है। फिर कुछ देर के बाद खड़ा हो जाता है। इन सब कार्यों के बीच-बीच वह छोटी-छोटी दुआएँ भी पढ़ता जाता है, जिनमें अल्लाह की प्रशंसा होती है। इस प्रकार नमाज़ की एक रकअत समाप्त होती है। फिर दूसरी रकअत इसी प्रकार पढ़ता है और सिजदा के उपरांत घुटनों के बल बैठ जाता है। फिर पहले दाईं ओर मुँह फेरता है और तब बाईं ओर। इसके अनंतर वह अल्लाह से हाथ उठाकर दुआ माँगता है और इस प्रकार नमाज़ की दो रकअत पूरी करता है अधिकतर नमाज़ें दो रकअत करके पढ़ी जाती हैं और कभी-कभी चार रकअतों की भी नमाज़ पढ़ी जाती है। पढ़ने की चाल कम अधिक यही है।
नमाज़ के प्रकार
प्रतिदिन की पाँचों समय की नमाज़ों के सिवा कुछ अन्य नमाज़ें हैं, जो समूहबद्ध हैं। पहली नमाज़ जुम्मअ (शुक्रवार) की है, जो सूर्य के ढलने के अनंतर नमाज़ ज्ह्रु के स्थान पर पढ़ी जाती है। इसमें इमाम नमाज़ पढ़ाने के पहले एक भाषण देता है, जिसे खुतबा कहते हैं। इसमें अल्लाह की प्रशंसा के सिवा मुसलमानों को नेकी का उपदेश दिया जाता है। दूसरी नमाज़ ईदुलफित्र के दिन पढ़ी जाती है। यह मुसलमानों का वह त्योहार है, जिसे उर्दू में ईद कहते हैं और रमजान के पूरे महीने रोजे (दिन भर का उपवास) रखने के अनंतर जिस दिन नया चंद्रमा (शुक्ल द्वितीया का) निकलता है उसके दूसरे दिन मानते हैं। तीसरी नमाज़ ईद अल् अजा के अवसर पर पढ़ी जाती है। इस ईद को कुर्बानी की ईद कहते हैं। इन दिनों के अवसरों पर निश्चित नमाज़ों का समय सूर्योदय के अनंतर लगभग बारह बजे दिन तक रहता है। ये नमाज़ें सामान्य नमाज़ों की तरह पढ़ी जाती हैं। विभिन्नता केवल इतनी रहती है कि इनमें पहली रकअत में तीन बार और दूसरी रकअत में पुन: तीन बार अधिक कानों तक हाथ उठाना पड़ता है। नमाज़ के अनंतर इमाम खुतबा देता है, जिसमें नेकी व भलाई करने के उपदेश रहते हैं।
कुछ नमाज़ें ऐसी भी होती हैं जिनके न पढ़ने से कोई मुसलमान दोषी नहीं होता। इन नमाज़ों में सबसे अधिक महत्व तहज्जुद नमाज़ को प्राप्त है। यह नमाज़ रात्रि के पिछले पहर में पढ़ी जाती है। आज भी बहुत से मुसलमान इस नमाज़ को दृढ़ता से पढ़ते हैं।
इस्लाम धर्म में नमाज़ जिनाज़ा का भी बहुत महत्व है। इसकी हैसिअत प्रार्थना सी है। जब किसी मुसलमान की मृत्यु हो जाती है तब उसे नहला धुलाकर श्वेत वस्त्र से ढक देते हैं, जिसे कफन कहते हैं और फिर जिनाज़ा को मस्जिद में ले जाते हैं। वहाँ इमाम जिनाज़ा के पीछे खड़ा होता है और दूसरे लोग उसके पीछे पंक्ति बाँधकर खड़े हो जाते हैं। नमाज़ में न कोई झुकता है और न सिजदा करता है, केवल हाथ बाँधकर खड़ा रह जाता है तथा दुआ पढ़ता है।
इस्लाम धर्म में नमाज़ की हैसिअत सामूहिक है और इस कारण मस्जिद में समूह के साथ नमाज़ पढ़ना सबसे उत्तम धर्म है, यद्यपि घर पर अकेले भी पढ़ी जा सकती है। संसार भर के मुसलमान नमाज़ें अरबी भाषा में पढ़ते हैं, अज़ाँ अरबी भाषा में दी जाती है तथा खुतबा भी अरबी भाषा में पढ़ते हैं, अज़ाँ अरबी भाषा में दी जाती है तथा खुतबा भी अरबी भाषा में दिया जाता है जिसका अनुवाद कभी-कभी स्थानीय भाषा में कर दिया जाता है। इससे ज्ञात होता है कि मुसलमानों की धार्मिक भाषा अरबी है और इस सहभाषा के कारण संसार के सब मुसलमानों के मध्य एक विशेष प्रकार का संबंध स्थापित है।
इस धर्म में सबसे बड़ा पद तौहीद को प्राप्त है अर्थात् अल्लाह को केवल एक समझना और किसी दूसरे को पूजा के योग्य न समझना। इसके अनंतर ही नमाज़ का स्थान आता है। मरने के उपरांत दूसरे लोक में नमाज़ स्वर्ग प्राप्त करने की कुंजी है, खुदा के सामने उपस्थित होने का माध्यम है। यह मुस्लिम जाति में धैर्य तथा दृढ़ता की आदत डालती है और उन्हें इस बात की शिक्षा देती है कि वे सब काम सामूहिक रूप से करें। नमाज़ से ही अल्लाह के अस्तित्व की पहचान मिलती हैं तब उससे वास्तविक वंदन का संबंध उत्पन्न हो जाता है और यही संबंध हमको सारी सांसारिक तथा सामाजिक बुराइयों से बचाता है। इसी से नमाज़ को शुद्ध पूजा के नाम से पुकारा जाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ