पीटर अलेक्सेविच क्रोपोत्किन
पीटर अलेक्सेविच क्रोपोत्किन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 224 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्रीमति रत्नकुमारी |
पीटर अलेक्सेविच क्रोपोत्किन (1842-1921 ई.)। रूस का प्रख्यात भौगोलिक, क्रांतिकारी और समाज दर्शन का विद्वान। इसका जन्म मास्कों में 9 दिसंबर, 1842 ई. को राजकुमार अलेक्ज़ी पेट्रोविच क्रोपोत्किन के घर हुआ था। पंद्रह वर्ष की अवस्था में 1857 ई. में वह जार अलेक्जेंडर द्वितीय के यहाँ ‘पेज’ बन गया। वहाँ उसे सैनिक चरित्र के साथ साथ राजदरबार की मर्यादा का परिचय प्राप्त हुआ। किंतु आरंभ से ही रूस के किसानों के जीवन के प्रति सहानुभूति के भाव उसके मन में जाग रहे थे। विद्यार्थी जीवन के अंतिम दिनों में उदार क्रांतिकारी साहित्य से उसका परिचय हुआ और उसमें उसे अपने भाव प्रतिबिंबित होते दिखाई पड़े जो आगे चलकर उसके क्रांतिकारी बनने में सहायक हुए।
1862 ई. में वह साइबेरियन कजाक रेजिमेंट के सैनिक के रूप में नवविजित अमूर जिले में भेजा गया। कुछ दिनों वह चिता में ट्रांसबैकालिया के प्रशासक का सचिव रहा, बाद में वह ईकुटस्क में पूर्वी साइबिरिया के गवर्नर जनरल का कज्जाकी मामले का सचिव नियुक्त हुआ। 1864 ई. में उसने एक भौगोलिक सर्वेक्षण अभियान का संचालन किया और उत्तरी मंचूरिया को पारकर ट्रांसबैकालिका से आमूर तक गया। उसके बाद उसने एक दूसरे अभियान में भाग लिया जो मंचूरिया के भीतर सुंगरी नदी तक गया। इन दोनों अभियानों से महत्वपूर्ण भौगोलिक जानकारी प्राप्त हुई।
1837 में सैनिक सेवा से विलग होकर विश्वविद्यालय में प्रविष्ट हुआ और रूसी भौगोलिक सोसाइटी के प्राकृतिक भूगोल विभाग का मंत्री बना। 1873 ई. में उसने एक शोध निबंध तथा नक्शा प्रस्तुत किया जिसमें उसने यह सिद्ध किया कि एशिया के जो नक्शे हैं उनमें देश के प्राकृतिक स्वरूप का गलत अंकन हुआ है। उसने प्रचलित धारणा के विपरीत प्रतिपादित किया कि मुख्य संरचना की रेखा दक्षिणपश्चिम से उत्तरपूर्व है उत्तरदक्षिण नहीं। उसने ज्योग्राफ़िकल सोसाइटी की ओर से 1871 ई. में फिनलैंड और स्वीडन के ग्लेशियल डिपाजिट्स की खोज की। इसी समय उससे सोसाइटी के मंत्री का भार सँभालने को कहा गया किंतु उसने आगे कोई नई खोज न कर ज्ञात ज्ञान का ही जनप्रसार करने का निश्चय किया और मंत्री पद अस्वीकार कर दिया। सेंट पीटर्सवर्ग लौटकर क्रांतिकारी दल में सम्मिलित हो गया।
1872 ई. में स्वीटज़रलैंड गया और वहाँ जिनेवा में वह अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संघ का सदस्य बन गया। कुछ दिनों वहाँ नेताओं के संपर्क में रहकर उनके कार्यक्रम का अध्ययन किया और पूरी तरह क्रांतिकारी बन गया। रूस लौटकर उसने निहलिस्ट प्रचार में सक्रिय भाग लेना आरंभ किया। 1874 ई. में वह गिरफ्तार जेल भेज दिया गया। 1876 ई. में वह जेल से भाग निकला और पहले इंग्लैंड फिर स्वीजरलैंड चला गया और जूरा फेडरेशन में सम्मिलित हो गया। 1877 ई. में वह पेरिस गया जहाँ उसने समाजवादी आंदोलन में भाग लिया। 1878 ई. में स्वीजरलैंड लौटकर वह ‘ले रिवोल्ते’ नामक क्रांतिकारी पत्रिका का संपादक हो गया। और अनेक क्रांतिकारी पुस्तिकाएं प्रकाशित की। जार अलेक्जेंडर (द्वितीय) की हत्या के कुछ ही दिन बाद स्विस सरकार ने उसे अपन देश से निर्वासित कर दिया। तब वह कुछ दिनों फ्रांस में रहकर लंदन चला गया और 1882 ई. के अंत में वह पुन: फ्रांस लौट आया। वहाँ फ्रांस सरकार ने उस पर लियान में मुकदमा चलाया और अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संघ के सदस्य होने के अपराध में उस पाँच वर्ष की सजा हुई। 1886 ई. में, जब फ्रेंच चैंबर (संसद्) में उसकी ओर से निरंतर आंदोलन हुए तब वह 1886 ई. में रिहा किया गया और वह लंदन जाकर बस गया और साहित्यिक कार्य करने तथा अपने ‘प्रास्परिक सहायता’ के सिद्धांत को विकसित करने लगा।
क्रोपोत्किन भूगोल और कृषि का एक आधिकारिक विद्वान था। उसने उनके विकास के लिये अनेक व्यावहारिक सुझाव प्रस्तुत किए। उसकी ‘ऑटोग्राफी ऑव एशिया’ भूगोल संबंधी प्रसिद्ध पुस्तक है। क्रोपोत्किन का समाज संबंधी अपना एक दर्शन था। इस विषय पर उसकी कुछ पुस्तकें हैं-----(1) रोटी पर विजय, (2) अराजकतावाद और उसका दर्शन, (3) राज्य----उसका इतिहास में स्थान, (4) सहकारिता विकास का तत्व, (5)आधुनिक विज्ञान और अराजकतावाद। रूस के अराजकतावादी लेखकों में उसे सबसे अधिक ख्याति प्राप्त है। उसको अराजकतावादी साम्यवाद का अग्रदूत कहा जाता है। उसने उत्तर क्रांतिकालीन समाज की जिस धारणा का प्रतिपादन किया है, उससे आधुनिक साम्यवाद अत्यधिक प्रभावित है। क्रोपोत्किन ने जीवन तथा आचरण का जो सिद्धांत बताया है उसके अंतर्गत समाज शासनविहीन होगा। उस समाज में सामंजस्य उत्पन्न करने के लिये किसी कानून अथवा सत्ता के आदेशों और उनके पालन की आवश्यकता नहीं होगी। यह सामंजस्य उत्पादन तथा उपभोक्ताओं और अन्य सभ्य व्यक्तियों की विभिन्न एवं अनंत आवश्यकताओं और इच्छाओं की संतुष्टि के लिये स्वतंत्र आत्मप्रेरणा तथा स्वेच्छा से संगठित प्रादेशिक, स्थानीय, राष्ट्रीय और व्यावसायिक व्यापारिक समुदायों के ऐच्छिक तथा स्वतंत्र समझौते से उत्पन्न होगा। अत: क्रोपोत्किन के अनुसार व्यवस्था एवं संगठन में अनिवार्यता नहीं होगी, कोई कानून नहीं होगा, और कोई शासन नहीं होगा। अराजकतावादी समाज का उद्देश्य ऐसे समाज की स्थापना करना है जो राज्य एवं वर्गरहित हो। इस समाज में व्यक्तिगत संपत्ति अथवा उत्पादन के व्यक्तिगत साधन जैसे कोई मूल्य नहीं होंगे। कोपोत्किन के विचारानुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने का अधिकार होगा। ऐसे समाज में प्रति योगिता और संघर्ष का अंत होगा और नए समाज में नए मूल्यों का सृजन होगा, समाज में व्यक्ति व्यक्ति के संबंध में पारस्परिक सहायता, सहयोग एवं सौहार्द्र ही जीवन का आधार होगा।
क्रोपोत्किन के दर्शन का मूल तत्व यह था कि हर एक की सत्ता या अनिवार्यता व्यक्ति की स्वतंत्रता को कम कर देती है। सत्ता या बल अनुचित एवं अन्यायपूर्ण होता है। वह राज्य, व्यक्तिगत संपत्ति एवं धर्म का निंद एवं परम विरोधी था। उसका विश्वास था कि राजनीतिक संगठन की कोई आवश्यकता नहीं है; फलत: राज्य का अस्तित्व अनावश्यक ही नहीं वरन् मनुष्य के विकास एवं स्वतंत्रता की दृष्टि से हानिकारक भी है। राज्य के न सहने से संगठित सेनाएँ नहीं रहेगी, इस प्रकार संसार से युद्ध का अंत हो जायगा। राज्य की असंतुलित आर्थिक व्यवस्था मनुष्य को अपराध की ओर प्रवृत करती है। राज्य तथा कानून निर्बलों के शोषण के निमित्त बनाई हुई व्यवस्था है। राज्य के कानून इस प्रकार बनाए गए हैं जिससे विशेषाधिकारसंपन्न वर्ग के व्यक्ति अधिकारों का अनुचित उपयोग करके अपनी सत्ता बनाए रखें। वर्तमान कानून का उद्देश्य उत्पादक से उत्पादन का अधिक से अधिक भाग छीन लेना है। बाह्य क्षेत्र में स्वार्थपरता एवं महत्वाकांक्षाएँ युद्ध, संघर्ष एवं विनाश को जन्म देती है। आंतरिक क्षेत्र में राज्य, कानून या संपत्ति द्वारा प्राप्त शक्तिसंपन्न सत्ता नागरिकों में उत्तम प्रवृतियों को कुचल देती है। मानव का उत्साह निर्वाह कर उसे आज्ञापालन का एक यंत्र सा बना देती है।
क्रोपोत्किन अराजकतावादी समाज को कोरी आदर्श कल्पना नहीं मानता था। उसका विश्वास था कि अराजकतावादी समाज तर्कयुक्त, न्यायोचित और व्यावहारिक है। अराजकतावादी समाज का आर्थिक संगठन पूर्णतया साम्यवादी प्रणाली पर आधारित है। भूमि तथा उत्पादन के समस्त साधनों पर समाज का स्वामित्व होगा। क्रोपोत्किन के अनुसार प्रत्येक वस्तु पर प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार होगा। ‘प्रत्येक व्यक्ति उत्पादन क्रिया में अपना उचित योग देगा और प्रत्येक व्यक्ति को उत्पादन में से उचित हिस्सा पाने का अधिकार होगा’। अर्थात् अराजकतावादी समाज में प्रत्येक व्यक्ति समाज में अपनी आंतरिक प्रेरणा, प्रवृति एवं क्षमता के अनुसार काम करेगा और अपनी आवश्यकता के अनुसार पुरस्कृत होगा। अराजकतावादी समाज में सभी व्यक्तियों को जीवन की आवश्यकताएँ पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होगी। प्रत्येक व्यक्ति को उचित अवकाश मिलेगा, जिस अवकाश को वह विज्ञान, कला तथा जीवन की अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये तथा अपने विकास के लिये प्रयुक्त करेगा।
जब रूस में क्रांति आरंभ हुई तब उसने स्वदेश लौटने का निश्चय किया और जून, 1917 ई. में रूस लौटकर मास्को के निकट बस गया। उसने क्रांति में किसी प्रकार का कोई भाग नहीं लिया। उसने ‘मेमायार्स ऑव ए रिवोल्यूशनिस्ट’ शीर्षक अपने संस्मरण और फ्रांस की राज्यक्रांति पर एक पुस्तक लिखी। 8 फरवरी, 1921 ई. को उसकी मृत्यु हुई।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कुमारी शुभदा तेलंग